गोबर में छिपा है बीमारी का राज! एक जांच से बच सकती है पूरी पशुधन की कमाई

गांवों में पशुओं की कमजोरी और दूध उत्पादन में गिरावट अक्सर छुपे हुए परजीवियों की वजह से होती है. समय पर जांच और दवा से पशु स्वस्थ रहता है और किसान की आमदनी सुरक्षित रहती है.

धीरज पांडेय
नोएडा | Published: 18 Jul, 2025 | 04:20 PM

गांवों में पशुपालक अक्सर शिकायत करते हैं कि दूध कम हो गया है, पशु कमजोर हो रहा है, खूब चारा डालते हैं, फिर भी असर नहीं दिखता. अगर आप भी ऐसा कुछ महसूस कर रहे हैं तो समस्या चारे या देखभाल की नहीं, बल्कि छुपे हुए परजीवियों की हो सकती है. ये परजीवी पशु के शरीर के अंदर और बाहर दोनों जगह हमला कर सकते हैं. अच्छी बात यह है कि इसका इलाज आसान है, बस एक छोटा-सा टेस्ट कराना होता है- गोबर की जांच.

पेट के अंदर के दुश्मन

हिमाचल प्रदेश सरकार के पशुपालन विभाग के मुताबिक, पशुओं के पेट, आंत और खून में पाए जाने वाले परजीवी उनके शरीर से पोषक तत्व चूसते रहते हैं. ये परजीवी इतने सूक्ष्म होते हैं कि आंखों से दिखते नहीं, लेकिन असर इतना बड़ा कि पशु धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है. वह बार-बार बीमार पड़ता है, दूध देना कम कर देता है और कभी-कभी तो उसकी जान भी जा सकती है.

अगर पशु को अच्छा चारा और समय पर देखभाल  देने के बावजूद वो थका-थका सा दिखे तो गोबर की जांच जरूरी हो जाती है. पशु चिकित्सक गोबर में परजीवियों के अंडे देखकर दवा देते हैं, जिससे परजीवी खत्म हो जाते हैं और पशु फिर से स्वस्थ हो सकता है.

बाहर के खून चूसने वाले दुश्मन

पशु के शरीर पर दिखने वाले जुएं, किलनी और पिस्सू (खून चूसने वाला कीट) भी गंभीर खतरा बन सकते हैं. ये त्वचा में चिपककर खून चूसते हैं, जिससे पशु कमजोर  होने लगता है. लगातार खुजलाहट, बेचैनी और वजन घटना इनके लक्षण हैं. ऐसे परजीवी न केवल खून की कमी करते हैं बल्कि कई बार टिक फीवर जैसे खतरनाक रोग भी फैला देते हैं.

इनसे बचाव के लिए बाजार में कई दवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह से ही करना चाहिए. सही समय पर दवा देने से न केवल परजीवी मर जाते हैं बल्कि अन्य बीमारियों से भी बचाव हो जाता है.

छोटी लापरवाही से बड़ी हानि

कई बार किसान यह मानकर चलते हैं कि परजीवी कोई गंभीर समस्या नहीं है, लेकिन यही लापरवाही पशुधन की पूरी कमाई पर पानी फेर सकती है. क्योंकि दूध उत्पादन में कमी, जानवर की कमजोरी और इलाज पर बढ़ता खर्च परिवार की आमदनी को सीधा प्रभावित करता है. इसीलिए, अगर समय पर गोबर की जांच करवा ली जाए तो बड़ी समस्या से बचा जा सकता है.

परजीवियों से बचाव के लिए करें ये काम

  • हर 3 से 4 महीने में पशु के गोबर की जांच नजदीकी पशु चिकित्सालय में कराएं.
  • पशु की त्वचा पर जुएं, पिस्सू या किलनी दिखें तो डॉक्टर से दवा लेकर तुरंत उपचार करें.
  • नए खरीदे गए जानवरों को पहले जांचें, फिर उन्हें अपने पशु समूह में मिलाएं.
  • परजीवियों से बचाव के लिए साफ-सफाई और नियमित दवाई बेहद जरूरी है.

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