Fish Disease: ठंड बढ़ते ही तालाबों में फैल रहीं खतरनाक बीमारियां, नमक के घोल से ऐसे बनाएं दवाई

सर्दी की शुरुआत होते ही तालाब का पानी ठंडा पड़ जाता है, जिससे कई खतरनाक संक्रमण मछलियों पर हमला करने लगते हैं. सरकार और विशेषज्ञों ने मछली पालकों को सचेत करते हुए सलाह दी है कि समय पर बीमारी पहचानने और पानी की गुणवत्ता संभालने से बड़े नुकसान से बचा जा सकता है. थोड़ी-सी सावधानी पूरी आमदनी बचा सकती है.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 22 Nov, 2025 | 08:00 PM

Fish Disease : ठंड का मौसम न सिर्फ इंसानों, बल्कि मछलियों के लिए भी चुनौती लेकर आता है. जैसे ही पानी का तापमान गिरता है, तालाबों में कई तरह के संक्रमण तेजी से फैलने लगते हैं. इनमें डेक्टाइलो गाइरोसिस और गाइरोडेक्टाइलोसिस सबसे खतरनाक माने जाते हैं. अगर समय पर पहचान और इलाज न मिले तो मछलियों की मौत का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. ऐसे में मछली पालकों को नवंबर से लेकर फरवरी तक खास सावधानी बरतनी चाहिए.

दो खतरनाक संक्रमण जो तेजी से बिगाड़ते हैं मछलियों की सेहत

डेक्टाइलोगायरस और गाइरोडेक्टाइलस नाम के ये सूक्ष्म परजीवी कार्प और हिंसक मछलियों पर हमला करते हैं. ये इतने छोटे होते हैं कि शुरुआत में पहचानना मुश्किल हो जाता है. डेक्टाइलोगायरस मछली के गलफड़ों  पर असर डालता है. इससे मछली का रंग बदरंग पड़ने लगता है, उसका वजन घटने लगता है और उसकी बढ़त रुक जाती है. मछली आसानी से सांस नहीं ले पाती और कमजोर होने लगती है. दूसरी ओर गाइरोडेक्टाइलस मछली की त्वचा पर हमला करता है. संक्रमित हिस्से पर छोटे-छोटे धाव यानी घाव बन जाते हैं, जिससे शल्क गिरने लगते हैं और त्वचा पर अतिरिक्त श्लेषक यानी चिपचिपा पदार्थ बनने लगता है. मछली सुस्त पड़ जाती है और ऊपर पानी पर तैरने लगती है, जो बीमारी का बड़ा संकेत है.

पहचान में देरी से बढ़ सकता है भारी नुकसान

इन बीमारियों का सबसे बड़ा खतरा यह है कि शुरू में सामान्य बदलाव दिखते हैं जो अक्सर मछली पालक  नजरअंदाज कर देते हैं. जब गलफड़े काले या भूरे होने लगते हैं, शल्क झड़ने लगते हैं और मछली खाने में रुचि नहीं दिखाती-तब तक संक्रमण काफी बढ़ चुका होता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि पानी की गुणवत्ता खराब होने, तापमान अचानक गिरने और ज्यादा भीड़ होने पर ये परजीवी तेजी से फैलते हैं. ऐसे में एक तालाब में बीमारी फैल जाए तो कुछ ही दिनों में दर्जनों मछलियां मर सकती हैं. इसलिए नियमित निरीक्षण, पानी की जांच और मछलियों की गतिविधि  पर नजर रखना बेहद जरूरी है.

इलाज आसान, लेकिन समय पर कदम उठाना सबसे जरूरी

अगर बीमारी का पता जल्दी चल जाए तो इसका इलाज संभव है. मछलियों को 1 पी.पी.एम. पोटेशियम परमैंगनेट के घोल में करीब 30 मिनट तक रखा जाता है. इससे परजीवी खत्म होने लगते हैं और गलफड़ों का संक्रमण धीरे-धीरे कम हो जाता है. इसके अलावा मछलियों को 1:2000 ऐसिटिक एसिड और 2 फीसदी नमक के घोल में दो-दो मिनट डुबोना भी काफी प्रभावी माना जाता है. यह प्रक्रिया बारी-बारी से दोहराई जाती है ताकि त्वचा और गलफड़ों दोनों पर असर करने वाले परजीवी पूरी तरह खत्म हों. तालाब के स्तर पर सुधार के लिए 0.25 पी.पी.एम. मेलाथियॉन का सात-दिन के अंतराल पर तीन बार छिड़काव करना भी जरूरी है. यह पूरे तालाब में फैले परजीवियों को मार देता है और पानी फिर से सुरक्षित हो जाता है.

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Published: 22 Nov, 2025 | 08:00 PM

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