Integrated Farming : आज खेती और पशुपालन में लगातार बढ़ती लागत से किसान परेशान हैं. फीड, खाद और पानी के खर्चों ने मुनाफा घटा दिया है. लेकिन अब एक ऐसा तरीका सामने आया है, जिससे किसान एक ही जगह से दोहरा फायदा उठा सकते हैं- तालाब के ऊपर मुर्गी पालन. यह मॉडल न सिर्फ मछलियों के लिए प्राकृतिक भोजन तैयार करता है, बल्कि मुर्गियों की देखभाल में भी खर्च घटाता है. देश के कई राज्यों में किसान इस तकनीक से सालाना लाखों की कमाई कर रहे हैं.
तालाब के ऊपर मुर्गी पालन क्यों है खास?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह मॉडल पारंपरिक तरीकों से कहीं ज्यादा किफायती है. जब मुर्गियां तालाब के ऊपर बने शेड में रहती हैं, तो उनकी बीट सीधे पानी में गिरती है. यही बीट मछलियों के लिए नेचुरल फीड का काम करती है. इससे किसान को बाजार से महंगा मछली आहार नहीं खरीदना पड़ता. विशेषज्ञों के मुताबिक, इस पद्धति से तालाब की मछलियों को करीब 30 से 40 प्रतिशत तक फीड मुफ्त में मिल जाती है. यानी खर्च घटेगा और मुनाफा बढ़ेगा.
कैसे बनाएं तालाब के ऊपर मुर्गी का शेड?
तालाब के ऊपर शेड बनाते समय कुछ बातों का खास ध्यान रखना जरूरी है. शेड पानी की सतह से लगभग 8 से 10 फीट ऊपर होना चाहिए ताकि मुर्गियों की बीट आसानी से नीचे गिर सके. शेड की छत टिन या घास की बनी हो सकती है ताकि गर्मी और बारिश से मुर्गियां बची रहें. दीवारों में वेंटिलेशन के लिए खुली जगह होनी चाहिए जिससे हवा आती-जाती रहे. शेड के नीचे जाल या लकड़ी की फर्श बनाना फायदेमंद होता है ताकि बीट सीधे तालाब में जाए और सफाई आसान रहे.
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कौन सी मुर्गी नस्लें इस मॉडल के लिए बेहतर हैं?
अगर आप तालाब के ऊपर मुर्गी पालन की सोच रहे हैं, तो सही नस्ल चुनना बहुत जरूरी है. अंडा उत्पादन के लिए लेगहॉर्न (Leghorn) और मांस उत्पादन के लिए बॉयलर (Broiler) मुर्गियां सबसे उपयुक्त मानी जाती हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि प्रति हेक्टेयर तालाब के लिए लगभग 500 से 600 मुर्गियां पर्याप्त होती हैं. इससे तालाब में खाद और फीड का संतुलन बना रहता है. मुर्गियों को साफ पानी, पर्याप्त रोशनी और संतुलित आहार मिलना चाहिए ताकि वे स्वस्थ रहें और अच्छा उत्पादन दें.
मछलियों को मिलता है फ्री फीड
मुर्गियों की बीट में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की मात्रा ज्यादा होती है. यह पानी में गिरने के बाद फाइटोप्लैंकटन (सूक्ष्म पौधे) और जूप्लैंकटन (सूक्ष्म जीव) पैदा करते हैं. यही मछलियों का प्राकृतिक भोजन बन जाता है. मछलियों की ग्रोथ तेज होती है और उनका वजन जल्दी बढ़ता है. आमतौर पर किसान तालाब में रोहू, कतला, और मृगल जैसी प्रजातियां पालते हैं. हालांकि, ध्यान रहे कि पानी बहुत अधिक हरा या गाढ़ा न हो जाए. अगर ऐसा दिखे, तो कुछ दिन बीट डालना बंद करें या पानी बदलें.
तालाब-मुर्गी मॉडल से कैसे मिलेगी दोहरी आय?
यह मॉडल वन स्टॉप इनकम सोर्स जैसा काम करता है. एक ओर मछलियों से किसान को साल में एक फसल का फायदा होता है, दूसरी ओर मुर्गियां हर हफ्ते अंडे या मांस देती हैं. इससे बाजार में सालभर आय का सिलसिला बना रहता है. अगर एक किसान सही प्रबंधन करे, तो प्रति हेक्टेयर तालाब से मछली और मुर्गी पालन से 1.5 से 2 लाख रुपये तक की अतिरिक्त आय हो सकती है. यानी, एक ही संसाधन से डबल फायदा.
किन बातों का रखना चाहिए ध्यान?
- तालाब-मुर्गी मॉडल अपनाने से पहले कुछ सावधानियां जरूरी हैं.
- तालाब का पानी नियमित जांचें ताकि अमोनिया और नाइट्रोजन का स्तर ज्यादा न हो.
- तालाब में ऑक्सीजन बनाए रखने के लिए एरेटर या पौधों का इस्तेमाल करें.
- मुर्गियों के लिए रोजाना साफ पानी उपलब्ध कराएं और शेड में नमी न जमने दें.
- साल में एक बार तालाब की मिट्टी की जांच कराएं ताकि उत्पादन बेहतर बना रहे.
इस मॉडल को सरकार भी इंटीग्रेटेड फिश एंड पोल्ट्री फार्मिंग के रूप में बढ़ावा दे रही है. कई राज्य सरकारें किसानों को सब्सिडी और तकनीकी मार्गदर्शन भी दे रही हैं.