बरसात का मौसम जहां खेत-खलिहान और किसानों के लिए राहत लाता है, वहीं दुधारू पशुओं के लिए कई तरह की बीमारियों का खतरा भी लेकर आता है. इस मौसम में गीली जमीन, गंदगी और मच्छरों की अधिकता के कारण पशुओं को कई संक्रमण घेर सकते हैं. बिहार सरकार के पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग ने दुधारू पशुओं के प्रबंधन के लिए किसानों को कुछ जरूरी सलाह दी है, जिससे न सिर्फ पशुओं को बीमारियों से बचाया जा सके, बल्कि दूध की गुणवत्ता भी बरकरार रहे. आइए जानते हैं क्या हैं ये उपाय.
टीकाकरण और कृमिनाशन जरूरी
बिहार पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग के अनुसार, बरसात के समय दुधारू पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए नियमित टीकाकरण बेहद जरूरी है. पशुओं को समय-समय पर कृमिनाशक दवाएं दें, ताकि पेट से जुड़ी बीमारियां न हों. खासकर खुरपका-मुंहपका और गलघोटू जैसी बीमारियों का खतरा बरसात में ज्यादा होता है, इसलिए टीके समय पर जरूर लगवाएं.
मच्छरों और मक्खियों से सुरक्षा
बरसात में मच्छर और मक्खियों की संख्या बढ़ जाती है. ये पशुओं को परेशान करने के साथ कई रोग भी फैला सकते हैं. बचाव के लिए गोशाला के आसपास सफाई रखें और नीम का धुआं करें. इसके अलावा कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करने से भी पशुओं को इनसे राहत मिलेगी.
दूध निकालते समय सफाई रखें

दूध निकालते समय साफ-सफाई पर ध्यान दें.
बरसात में गंदगी और कीचड़ ज्यादा फैलती है. ऐसे में दूध निकालते समय खास सफाई जरूरी है. सबसे पहले हाथों को अच्छी तरह धोएं और पशु के थनों को साफ पानी से पोंछकर ही दुहाई करें. इससे दूध की गुणवत्ता बनी रहती है और थनैला रोग जैसी बीमारियों से भी बचाव होता है.
पशुओं के रहने का इंतजाम
बरसात के मौसम में गोशाला को हमेशा सूखा और साफ-सुथरा रखें. पानी जमने न दें और फर्श पर बिछावन को बार-बार बदलते रहें. गीली जगह पर बैठने से पशुओं को खुर-पांव की बीमारियां हो सकती हैं. बेहतर होगा कि गोशाला की खिड़कियां-दारियां खुली रखें, ताकि हवा और रोशनी अंदर आती रहे.
संतुलित आहार और देखभाल
बरसात के मौसम में दुधारू पशुओं की सेहत का खास ध्यान रखना जरूरी है. इस समय उन्हें संतुलित आहार देना बेहद जरूरी हो जाता है. पशुओं को हरे चारे के साथ-साथ सूखा चारा भी देना चाहिए, ताकि उनका पाचन तंत्र सही ढंग से काम करे. आहार में मिनरल मिक्सचर और नमक का प्रयोग करना भी जरूरी है, जिससे उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और वे बीमारियों से लड़ने में सक्षम बनते हैं. कमजोर या बीमार दिखने वाले पशुओं की तुरंत जांच करवानी चाहिए. समय पर इलाज मिलने से बीमारी फैलने का खतरा कम होता है और दूध उत्पादन भी प्रभावित नहीं होता.