GI Tag Special Story: जब भी उन्नत किस्म के चावल की बात आती है, तो लोगों के जेहन में सबसे पहले बासमती का नाम उभरकर सामने आता है. लोगों का लगता है कि सबसे महंगा और खाने में स्वादिष्ट चावल बामती ही होता है. लेकिन ऐसे बात नहीं है. बासमती की तरह सुगंधित और स्वादिष्ट चावल की कई किस्में हैं, जिसकी मार्केट में डिमांट और कीमत दोनों ज्यादा हैं. अगर किसान इन किस्मों की खेती करते हैं, तो उन्हें कम लागत में बंपर पैदावार मिलेगी. साथ ही कमाई भी जबरदस्त होगी. आज हम चावल की एक ऐसी ही किस्म के बारे में बात करने का जा रहे हैं, जिसका नाम ‘नगरी दुबराज चावल‘ है. इसको (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) जीआई टैग भी मिला है. इससे इसकी खेती करने वाले किसानों की कमाई और भी बढ़ गई है.
‘नगरी दुबराज चावल’ की खेती छत्तीगढ़ में होती है. इस मशहूर सुगंधित चावल ‘नगरी दुबराज’ को साल 2023 जीआई टैग मिला है. यह राज्य की दूसरी फसल है, जिसे यह मान्यता मिली है. इससे पहले सिर्फ सरगुजा जिले के ‘जीराफूल’ चावल को 2019 में जीआई टैग मिला था. वहीं, एक्सपर्ट का कहना है कि ‘नगरी दुबराज’ एक देसी किस्म का चावल है, जो खाने में बेहद नर्म, मुलायम और सुगंधित होता है. पहले इस चावल के पौधे की ऊंचाई करीब छह फीट होती थी, जिससे उत्पादन कम होता था. लेकिन अब इसमें सुधार कर पौधे की ऊंचाई घटा दी गई है. पहले यह 150 दिन में पकता था, अब यह 125 दिन में तैयार हो जाता है. इस चावल की खास पहचान उसका स्वाद और सुगंध है और इसका मूल स्थान धमतरी जिले के सिहावा इलाके का नगरी क्षेत्र माना जाता है.
जीआई टैग मिलने से किसानों की बढ़ी कमाई
‘नगरी दुबराज’ चावल धमतरी जिले के नगरी क्षेत्र की खास पहचान है और इसे छत्तीसगढ़ की बासमती भी कहा जाता है. जीआई टैग मिलने से किसानों को कम उत्पादन के बावजूद अच्छा दाम मिल रहा है. इस चावल का ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी देखा जा रहा है, ताकि यह तय हो सके कि बीपी और शुगर के मरीज इसे खा सकते हैं या नहीं. अगर इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स 55 फीसदी से कम रहता है, तो यह शुगर मरीजों के लिए भी फायदेमंद हो सकता है.
क्या होता है जीआई टैग
जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग एक तरह का बौद्धिक संपदा अधिकार है, जो किसी उत्पाद की खास पहचान और गुणवत्ता को उसके विशेष भौगोलिक क्षेत्र से जोड़ता है. यानी किसी उत्पाद की खासियत उसके उत्पादन स्थल की जलवायु, मिट्टी और पारंपरिक तरीके से जुड़ी होती है. इसी पहचान को कानूनी मान्यता देने के लिए GI टैग दिया जाता है. नवंबर 2019 में नगरी की ‘मां दुर्गा स्व सहायता समूह’ ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की मदद से नगरी दुबराज चावल के लिए जीआई टैग का आवेदन किया था. इस आवेदन में सिहावा स्थित श्रृंगी ऋषि आश्रम का एक पत्र भी शामिल किया गया था, जिसमें बताया गया कि आश्रम में दुबराज चावल की खिचड़ी का प्रसाद चढ़ाया जाता है. ऐसे कहा जाता है श्रृंगी ऋषि जब अयोध्या गए थे, तब वे अपने साथ यह विशेष दुबराज चावल भी लेकर गए थे.
इसी धान के चावल का बना था खीर
इसी दुबराज चावल से बनी खीर को यज्ञ में चढ़ाया गया था, जिससे अग्निदेव प्रकट हुए और उन्होंने राजा दशरथ की तीनों रानियों को खीर खाने को कहा जाता है. इसी खीर को खाने के बाद रानियां गर्भवती हुईं और भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ. रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने नगरी दुबराज चावल को जीआई टैग दिलाने में अहम भूमिका निभाई.
खबर से जुड़े फैक्ट फाइल
- नगरी दुबराज चावल को साल 2023 में मिला जीआई टैग
- इसकी खेती छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के नगरी क्षेत्र में होती है
- 125 दिनों में तैयार हो जाती है इसकी फसल
- कभी 6 फीट ऊंचा होता था इसका पौधा
- नगरी दुबराज चावल का रिश्ता भगवान राम से जुड़ा है