Uttar Pradesh News: बनारस का नाम सुनते ही लोगों के जेहन में सबसे पहले लंगड़ा आम और बनारसी पान की तस्वीर उभरकर सामने आती है. लोगों को लगता है कि बनारस में यही दो कृषि उत्पाद देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं. लेकिन ऐसी बात नहीं है. चिरईगांव करौंदा अपने आप में कम नहीं है. इसकी गुणवता और स्वाद काफी उमदा है. यही वजह है कि इसको भौगोलिक संकेत (जीआई टैग) भी मिला हुआ है. इससे इसकी खेती में बढ़ोतरी हुई है और किसानों की कमाई भी पहले के मुकाबले ज्यादा हो गई है. तो आइए आज जानते हैं चिरईगांव करौंदा के बारे में.
बनारस जिले के चिरईगांव क्षेत्र में करौंदा की खेती काफी प्रसिद्ध है. यह पौधा सूखे और गर्म जलवायु में अच्छी तरह उगता है. करौंदा आमतौर पर बागानों की बाड़ बनाने के लिए लगाया जाता है. इसका फल आयरन का अच्छा स्रोत होता है और इसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन C भी पाया जाता है. चिरईगांव का करौंदा पौधा लगभग 2 से 4 मीटर तक ऊंचा होता है. इसकी छाल मोटी और भूरे रंग की होती है, जिसकी शाखाओं पर नुकीले कांटे होते हैं. इसी वजह से इसे ‘क्राइस्ट्स थॉर्न’ भी कहा जाता है. इसके पत्ते लम्बे, शंकु जैसे आकार के और हरे-भूरे रंग के होते हैं, जिनसे छोटे-छोटे सफेद फूल खिलते हैं. जब करौंदा फल कच्चा होता है, तब उसका स्वाद खट्टा और कसैला होता है. और जैसे-जैसे पकता है, इसका स्वाद बदलता जाता है.
10 ग्राम होता है एक फल का वजन
करौंदे के एक फल का वजन करीब 10 ग्राम होता है. हर फल में औसतन 3 बीज होते हैं. इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है. ऐसे करौंदे में पेक्टिन की मात्रा अधिक होती है, जिससे यह जैम, जेली, स्क्वैश, सिरप, अचार और चटनी बनाने के लिए बहुत उपयुक्त होता है. बाजार में करौंदा और इससे बने उत्पादों की अच्छी मांग है. यह आयरन से भरपूर होता है, इसलिए पौष्टिकता के लिहाज से भी यह काफी फायदेमंद माना जाता है. चिरईगांव का करौंदा स्वाद, रंग, पोषण और इस्तेमाल की दृष्टि से एक बेहतरीन विकल्प है.
खेती शुरू करने से पहले ऐसे तैयार करें खेत
करौंदा लगाने से पहले खेत की जमीन को समतल करना जरूरी है और पुराने पौधों को हटा देना चाहिए. पौधे लगाने के लिए 3×3 फीट आकार के गड्ढे कम से कम एक महीने पहले तैयार कर लेने चाहिए. ये गड्ढे गोबर की खाद (FYM) और मिट्टी के बराबर मिश्रण से भरे जाते हैं. करौंदा की रोपाई का सही समय जून से जुलाई के बीच होता है. अगर हेज (बाड़) के रूप में करौंदा लगाना हो तो 2 फीट की दूरी पर 1×1 फीट के गड्ढे या खाई बनाकर पौधे लगाए जाते हैं. जबकि बाग लगाने के लिए 3×3 मीटर की दूरी पर चौकोर ढंग से पौधों की रोपाई की जाती है. बाग लगाने के लिए गड्ढे 2×2 फीट के बनाए जाते हैं और इन्हें बारिश से पहले तैयार कर लेना चाहिए.
इस तरह करें सिंचाई और इतनी मात्रा में दें खाद
पौधों को लगाने के बाद तुरंत पानी देना जरूरी होता है, ताकि वे ठीक से जम सकें. इसके बाद नियमित सिंचाई करनी चाहिए जब तक पौधे पूरी तरह स्थापित न हो जाएं. चिरैगांव करौंदा की खेती पारंपरिक तरीकों से होती है और इसमें जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट आदि का इस्तेमाल किया जाता है. बाग की अच्छी उपज और फल की गुणवत्ता के लिए संतुलित पोषण बहुत जरूरी होता है. करौंदा बाहर से दी गई खादों पर अच्छी प्रतिक्रिया देता है, जो मिट्टी और किस्म के अनुसार अलग-अलग हो सकती है. जैविक खाद समय-समय पर पौधों की जरूरत के अनुसार दी जाती है.
एक पौधा आमतौर पर 4-5 किलो फल देता है
करौंदा का पौधा तीसरे साल के बाद फल देना शुरू करता है. वेस्टर्न घाट क्षेत्र में इसमें दिसंबर से मार्च के बीच फूल आते हैं और अप्रैल से जून के बीच फल पकते हैं. फल के रंग बदलने से उसकी पकने की पहचान होती है. सारे फल एक साथ नहीं पकते, इसलिए 3-4 बार तुड़ाई करनी पड़ती है. तुड़ाई हाथों से की जाती है. अगर फल डंठल सहित तोड़े जाएं तो लेटेक्स का रिसाव कम होता है और फल की गुणवत्ता व स्टोरेज क्षमता बढ़ती है. एक पौधा आमतौर पर 4-5 किलो फल देता है, जबकि अच्छी किस्म के बागवानी पौधे 10-15 किलो तक फल दे सकते हैं. करौंदा के फल कमरे के तापमान पर 3-4 दिन तक सुरक्षित रह सकते हैं और इनका इस्तेमाल जैम, कैंडी और अचार बनाने में होता है.
क्या होता है जीआई टैग
चिरईगांव करौंदा को इसी साल अप्रैल महीने में भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा दिया गया है. ऐसे जीआई टैग का पूरा नाम Geographical Indication यानी भौगोलिक संकेत है. यह एक तरह का प्रमाणपत्र होता है जो यह बताता है कि कोई उत्पाद किसी खास क्षेत्र या भौगोलिक स्थान से जुड़ा हुआ है और उसकी विशिष्ट गुणवत्ता, पहचान या प्रतिष्ठा उस क्षेत्र की वजह से है.