Pig Farming : सूअर पालन आज देश भर में तेजी से बढ़ता व्यवसाय बन रहा है. लेकिन पशुों की सेहत पर असर डालने वाली छोटी-सी बीमारी भी किसानों को बड़ा नुकसान कर सकती है. ऐसी ही एक बीमारी है पार्केराटोसिस (Parakeratosis), जो सूअरों की त्वचा, विकास और बढ़वार को बुरी तरह प्रभावित करती है. पशुपालन एवं डेयरी विभाग के अनुसार, इस बीमारी की सबसे बड़ी वजह है फीड में मिनरल बैलेंस का बिगड़ना, खासतौर पर जब जिंक कम और कैल्शियम ज्यादा हो. लेकिन अच्छी बात यह है कि समय पर पहचान, सही खुराक और नियमित पशु-चिकित्सक की सलाह से इस बीमारी को आसानी से रोका जा सकता है.
कैसे फैलती है यह त्वचा से जुड़ी समस्या?
पार्केराटोसिस कोई संक्रमण वाली बीमारी नहीं है, बल्कि यह पोषण से जुड़ी समस्या है. जब सूअरों को दिए जाने वाले दाने में जिंक की कमी हो जाती है, तो उनकी स्किन सूखने लगती है, रुखी दिखती है, और लाल चकत्ते बनने लगते हैं. धीरे-धीरे यह बीमारी उनकी बॉडी ग्रोथ, वजन और सेहत को भी प्रभावित करती है. पशुपालन एवं डेयरी विभाग की रिपोर्ट कहती है कि कई बार किसान अनजाने में ऐसा फीड दे देते हैं, जिसमें कैल्शियम बहुत ज्यादा होता है, जिससे जिंक शरीर में नहीं हो पाता और यहीं से परेशानी शुरू होती है.
बीमारी के लक्षण
जो किसान नए हैं, उन्हें शुरुआत में यह स्किन रोग साधारण खुजली या सूखापन जैसा लग सकता है. लेकिन पार्केराटोसिस के कुछ पहचानने योग्य संकेत हैं:-
- त्वचा का काला पड़ना
- बालों का झड़ना
- शरीर पर मोटी परत बनना
- सूअर का खाना कम कर देना
- वजन का तेजी से कम होना
अगर इन लक्षणों को नजरअंदाज किया गया तो सूअरों की बढ़वार रुक जाती है और वे जल्दी थकने लगते हैं-यानी सीधा आर्थिक नुकसान.
रोकथाम है आसान
पशुपालन एवं डेयरी विभाग के विशेषज्ञ बताते हैं कि इस बीमारी से बचने का सबसे आसान तरीका है-फीड को पोषक और संतुलित रखना. खासतौर पर:-
- दाने में जिंक (Zn) की पर्याप्त मात्रा हो
- कैल्शियम (Ca) जरूरत से ज्यादा न हो
- फीड में मिनरल मिक्स अनिवार्य रूप से मिलाएं
- हर 10-15 दिन पर पशु-चिकित्सक से सलाह लें
अगर बाड़े में साफ-सफाई भी सही रहे, तो सूअर कम तनाव में रहते हैं और उनकी ग्रोथ सामान्य रहती है.
किसान क्या करें?
पशुपालन एवं डेयरी विभाग ने सूअर पालकों को सलाह दी है कि:- जैसे ही त्वचा में बदलाव दिखे, तुरंत डॉक्टर से जांच करवाएं. जो किसान अपने दाने खुद तैयार करते हैं, वे मिनरल बैलेंस पर खास ध्यान दें. अगर पहले कोई सूअर प्रभावित हुआ है, तो बाकी जानवरों के फीड की भी जांच करें. विभाग का कहना है कि भारत में बढ़ते पिग फार्मिंग बिज़नेस को सुरक्षित रखने के लिए किसानों को जागरूक और वैज्ञानिक पद्धति अपनाने की जरूरत है. समय पर पहचान से न सिर्फ बीमारी रोकी जा सकती है बल्कि पूरा झुंड स्वस्थ और उत्पादक बनाकर रखा जा सकता है.