तमिलनाडु सरकार भले ही अपने राज्य में भंडारण सुविधाएं बढ़ाने की कोशिशें कर रही है, लेकिन इसके बावजूद भी फसल की बर्बादी कम होने का नाम नहीं ले रही है. साल 2019-20 से 2023-24 के बीच तमिलनाडु में खरीदी के बाद 3.72 लाख मीट्रिक टन धान खराब हो गया. यह नुकसान सीधे खरीद केंद्रों और गोदामों में हुआ है, जिससे सरकार को कम से कम 840 करोड़ का नुकसान हुआ है. हालांकि, असली आंकड़ा इससे भी ज्यादा हो सकता है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, धान नुकसान की यह जानकारी एक RTI के जरिए सामने आई है. आंकड़ों से पता चला कि खरीद के बाद मंडियों और गोदामों में हर साल लगभग 65,000 से 1.25 लाख मीट्रिक टन धान खराब जाता है. सबसे अधिक फसल नुकसान तिरुवरूर, तंजावुर, नागपट्टिनम और पुदुकोट्टई जिलों में हुई है.
43.27 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद
साल 2021-22 में सबसे अधिक 1.37 लाख मीट्रिक टन धान बर्बाद हुआ. उस साल राज्य में 43.27 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद हुई थी, जिसे बाद में 28.5 लाख मीट्रिक टन चावल में बदला गया था. राज्य सरकार हर साल 5,000 करोड़ रुपये से 6,500 करोड़ रुपये धान की खरीद पर खर्च करती है, जो MSP और खेती के रकबे पर निर्भर करता है.
इन वजहों से धान हो जाता है खराब
वहीं, एक्सपर्ट का कहना है कि भंडारण में हुए नुकसान के पीछे कई कारण हैं, जिसमें ठीक से रखरखाव न होना और गोदामों का खस्ता हाल शामिल हैं. इसके अलावा धान को सही तरीके से नहीं सुखा पाने की वजह से भी वह खराब हो जाता है, क्योंकि ज्यादा नमी के चलते धान में कीड़े लग जाते हैं. तमिलनाडु सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन (TNCSC), जो राज्य और केंद्र सरकार दोनों के लिए PDS के तहत धान की खरीद की नोडल एजेंसी है, किसानों से सीधे या केंद्र सरकार की अधिकृत एजेंसी के माध्यम से धान खरीदती है. हालांकि, हाल के वर्षों में नुकसान में काफी कमी आई है.
बर्बादी को रोकने के लिए सरकार की तैयारी
TNCSC के अधिकारियों ने कहा कि धान की बर्बादी को रोकने के लिए नए गोदाम बनाए जा रहे हैं, ताकि समस्याओं को कम किया जा सके. उन्होंने कहा कि कीटों के हमले, खराब रखरखाव और प्रशासनिक लापरवाही से हुए नुकसान की भरपाई संबंधित अधिकारियों से की जा रही है. हालांकि, सरकार 1 फीसदी तक भंडारण नुकसान की अनुमति देती है. अधिकारियों ने यह भी कहा कि तमिलनाडु में भंडारण में होने वाला नुकसान अन्य राज्यों की तुलना में कम है. खुले में भंडारण और बारिश से अनाज खराब होने की समस्याएं पिछले चार वर्षों में काफी हद तक नियंत्रित की गई हैं.