आजकल दूध की कमी की वजह से कई लोग पैकेट का दूध खरीदने को मजबूर हैं, जिसमें मिलावट की आशंका हमेशा बनी रहती है. ऐसे समय में बुंदेलखंड के कुछ हिस्सों में पशुपालक अब भी पुराने देसी तरीकों का इस्तेमाल करके मवेशियों से भरपूर और शुद्ध दूध प्राप्त कर रहे हैं. इसका सबसे बड़ा राज है-एक खास देसी घास ‘गर्रु’, जो न सिर्फ दूध की मात्रा बढ़ाती है, बल्कि उसका स्वाद और गुणवत्ता भी निखार देती है.
क्या है गर्रु घास और क्यों है खास
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गर्रु एक हरी, पौष्टिक और तेजी से बढ़ने वाली देसी घास है, जो खासकर खेतों के किनारे, नमी वाले इलाकों और पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है. इसकी लंबाई लगभग 3 से 4 फीट होती है और एक पौधे में 10 से 15 मोटी गांठें होती हैं. साथ ही इसमें कई शाखाएं निकलती हैं, जिससे इसका आकार झाड़ी जैसा हो जाता है. यह घास विशेष रूप से गाय-भैंस के लिए उपयोगी मानी जाती है. स्थानीय पशुपालकों के अनुसार, गर्रु घास खिलाने से मवेशियों के दूध में 20 से 30 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी जाती है.
दूध की गुणवत्ता और स्वाद में सुधार
यह घास केवल दूध की मात्रा नहीं, गुणवत्ता को भी बेहतर बनाती है. इससे दूध ज्यादा गाढ़ा, स्वादिष्ट और पोषण से भरपूर हो जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार का दूध न सिर्फ जानवरों के लिए बल्कि इंसानों की सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है. इसके सेवन से दूध में फैट और SNF (Solids–not–fat) का स्तर संतुलित रहता है, जो बाजार में दूध की बिक्री और रेट तय करने में अहम होता है.
कैसे खिलाएं गर्रु घास–तरीका आसान
पशुपालक गर्रु घास मवेशियों को दो मुख्य तरीकों से खिलाते हैं. पहला तरीका है जानवरों को सीधे चरने देना. जहां यह घास खेतों या आसपास के नमी वाले क्षेत्रों में उगती है, वहां जानवरों को खुले में छोड़ दिया जाता है. दूसरा तरीका है घास को काटकर सुखाना और फिर उसे भूसे, गेहूं के आटे या चना चुनी में मिलाकर खिलाना. यह तरीका विशेष रूप से तब उपयोगी होता है जब चराई की सुविधा न हो. गर्रु घास स्वादिष्ट होती है, इसलिए पशु इसे आसानी से खा लेते हैं और पाचन में भी कोई समस्या नहीं आती.
क्यों नहीं है सिर्फ आटा या भूसा काफी?
आमतौर पर कई किसान मवेशियों को गेहूं का आटा, सरसों, चना चुनी और सूखा भूसा देते हैं. इससे सिर्फ दूध की मौजूदा मात्रा बनी रहती है, लेकिन उसमें कोई विशेष बढ़ोतरी नहीं होती. वहीं, गर्रु जैसी हरी घास दूध की क्वालिटी में प्राकृतिक रूप से सुधार करती है, जो किसी भी महंगी दवा या सप्लीमेंट से बेहतर है.
देसी घास से ही होगा विकास
पशुपालन विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसान गर्रु जैसी देसी घासों का महत्व समझें और सही तरीके से इसका उपयोग करें, तो यह उनके लिए बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है. गर्रु घास न केवल दूध की मात्रा बढ़ाती है, बल्कि जानवरों को पोषण भी देती है जिससे वे स्वस्थ रहते हैं. इससे दूध की गुणवत्ता सुधरती है और आम उपभोक्ताओं को भी शुद्ध और पौष्टिक दूध मिल पाता है. यह तरीका न तो महंगा है और न ही कठिन. थोड़ी जानकारी, सही देखभाल और नियमितता से किसान इसे आसानी से अपना सकते हैं और अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
आम किसान के लिए बड़ा फायदा
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, किसान इस देसी नुस्खे से काफी फायदा उठा रहे हैं. जो किसान अपने पशुओं को नियमित रूप से गर्रु घास खिला रहे हैं, उनका दूध उत्पादन बढ़ गया है और अब उन्हें बाजार से आटा या महंगे सप्लीमेंट खरीदने की जरूरत भी नहीं पड़ रही. इससे खर्च कम होता है और मुनाफा बढ़ता है. यही नहीं, जब जानवर स्वस्थ रहते हैं तो बीमारियों की संभावना भी कम हो जाती है, जिससे इलाज पर भी खर्च नहीं होता.