जलवायु परिवर्तन के चलने आने वाले कुछ सालों में महाराष्ट्र के अंदर फसल की पैदावार प्रभावित होगी. ‘महाराष्ट्र स्टेट एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज 2030’ नाम की एक नई रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से राज्य की खेती पर बुरा असर पड़ सकता है. अगले 15 सालों में गन्ना, कपास और सोयाबीन जैसी फसलों का उत्पादन 20 फीसदी से 80 फीसदी तक घट सकता है. साथ ही रत्नागिरी की मशहूर हापुस आम की खेती को दूसरी जगह ले जाना पड़ सकता है, जिससे किसानों को भारी नुकसान होगा. इससे किसानों की इनकम भी प्रभावित हो सकती है.
हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक, गन्ना उष्णकटिबंधीय फसल है, जिसे 27 से 38 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है. लेकिन 2040 तक तापमान काफी बढ़ने की आशंका है, जिससे मराठवाड़ा में इसका उत्पादन 40 फीसदी से 80 फीसदी और मध्य महाराष्ट्र में 20 फीसदी से 40 फीसदी तक घट सकता है. इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले 15 वर्षों में ज्यादा बारिश आम बात बन सकती है, जिससे कपास के फलों के विकास, परिपक्वता और फटने की प्रक्रिया पर बुरा असर पड़ेगा. इससे न केवल उत्पादन घटेगा, बल्कि गुणवत्ता भी खराब होगी.
90 फीसदी तक कम हो जाएगा आम का उत्पादन
वहीं, सोयाबीन की पैदावार भी तेजी से घटने की संभावना है, क्योंकि तापमान में सिर्फ 1 डिग्री की बढ़ोतरी से उत्पादन में 3 फीसदी से 7 फीसदी की गिरावट आती है. रिपोर्ट के अनुसार, उस्मानाबाद, सोलापुर और जालना जैसे कुछ जिलों में बारिश बढ़ने की वजह से प्रति एकड़ गन्ने का उत्पादन 20 से 40 फीसदी तक बढ़ सकता है. लेकिन इसकी गुणवत्ता खराब होने के कारण प्रति टन गन्ने की उत्पादकता घट सकती है. वहीं, रत्नागिरी, जो हापुस आम का मुख्य केंद्र है, वहां तापमान और नमी बढ़ने के कारण आम का उत्पादन 80 फीसदी से 90 फीसदी तक घट सकता है. इसलिए हापुस की खेती को किसी और जगह शिफ्ट करना पड़ सकता है.
तापमान में हो सकती है 2 फीसदी की बढ़ोतरी
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि आने वाले 15 से 20 सालों में तापमान में करीब 2 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है. जलवायु परिवर्तन के कारण मिट्टी में नमक की मात्रा बढ़ेगी, जिससे कपास, गन्ना, ज्वार, गेहूं, मक्का और बागवानी फसलों की पैदावार पर असर पड़ेगा. क्योंकि ज्यादा नमक फसल के अंकुरण, पत्तियों की बढ़त और फूल-फल बनने की प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाता है. इसके अलावा, ज्यादा बारिश वाले दिनों की वजह से मिट्टी का कटाव और पोषक तत्वों की कमी होगी, जिससे मिट्टी की उर्वरता और फसलों की पैदावार दोनों कम हो जाएंगी.