पहाड़ के लिए बेस्ट है आलू की यह अगेती किस्म, 70 दिन में तैयार हो जाती है फसल.. कब करें बुवाई

सितंबर में पहाड़ी क्षेत्रों में आलू की अगेती बुवाई शुरू होती है. ऐसे में किसान कुफरी सूर्या किस्म चुन सकते हैं, जो कम समय में तैयार होती है. यह किस्म गर्मी सहन कर सकती है और रोग प्रतिरोधक है.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 1 Sep, 2025 | 03:02 PM

आज से सितंबर महीने की शुरुआत हो गई है. इसके साथ ही पहाड़ से लेकर प्लेन एरिया के किसानों ने आलू की बुवाई करने के लिए खेत की जुताई शुरू कर दी है. लेकिन कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो आलू की किस्मों को लेकर असमंजस में पड़े हुए हैं. खास कर पहाड़ी क्षेत्र के आलू किसान फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि वे आलू की किस किस्म की बुवाई करें, जिससे कम लागत में बंपर पैदावार मिले. लेकिन किसानों को अब असमंजस में रहने की जरूरत नहीं है. हम आलू की एक ऐसी उन्नत किस्म के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिसकी पहाड़ी इलाकों में बुवाई करने पर कम समय में अच्छी पैदावार मिलेगी. खास बात यह है कि ये किस्म अगेती भी है.

दरअसल, 15 से 25 सितंबर के बीच आलू की अगेती किस्म की बुवाई की जाती है और 15 से 25 अक्टूबर तक का समय आलू की पछेती बुवाई के लिए सही होता है. लेकिन उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों में किसान सितंबर में ही आलू की बुवाई शुरू कर देते हैं. ऐसे आलू की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है, जो पहाड़ी इलाकों में कई जगह मिलती है. ऐसे क्षेत्रों के किसान आलू की कुफरी सूर्या किस्म की बुवाई कर सकते हैं. खास बात यह है कि ये किस्म अगेती बुवाई के लिए ज्यादा अनुकूल है. इसकी खेती करने पर किसानों को ज्यादा मुनाफा होगा.

350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है पैदावार

अगर कुफरी सूर्या की खासियत की बात करें, तो आलू की एक अच्छी किस्म है जो जल्दी तैयार हो जाती है. यह गर्मी को सहन कर सकती है और हॉपर बर्न नामक रोग से बचाव करती है. इसके आलू लंबे और थोड़े चपटे होते हैं, जिनका छिलका सफेद और चिकना होता है. जबकि, अंदर का गूदा हल्का पीला होता है. खास बात यह है कि कुफरी सूर्या की पैदावार प्रति हेक्टेयर 200-350 क्विंटल होती है. बुवाई करने के बाद 70 से 80 दिनों में इसकी फसल तैयार हो जाती है.

तापमान सहन करने में सक्षम है यह किस्म

एक्सपर्ट का कहना है कि अगेती आलू की खेती के लिए 15 से 30 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सबसे अच्छा माना जाता है. इस समय ऐसी किस्में चुननी चाहिए जो ज्यादा तापमान में भी अच्छी तरह बढ़ सकें. कुफरी सूर्या ऐसी ही एक उन्नत किस्म है, जिसे सीपीआरआई, मोदीपुरम (उत्तर प्रदेश) ने तैयार किया है. यह गर्मी सहने में सक्षम है और जल्दी तैयार हो जाती है. किसान इसे अगेती फसल के रूप में उगाकर अच्छी पैदावार ले सकते हैं और अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

3 तरह से होती है आलू की खेती

बता दें कि आलू की खेती तीन तरह के बेड बनाकर की जाती है. फ्लैट बेड में आलू लगाने के बाद दो बार मिट्टी चढ़ानी होती है. जबकि, ट्रेंच में 15 से 20 दिन के बाद मिट्टी डाली जाती है. वहीं, मेड बेड में आलू लगाने के बाद 30 से 35 दिन में मिट्टी चढ़ानी पड़ती है. आलू लगाने के लिए 5 सेंटीमीटर तक के आलू को काटा जाता है और फिर उसे फफूंदनाशक से उपचारित किया जाता है. इसके बाद उसे खेत में लगाया जाता है. आलू की फसल में 8 से 10 दिन के अंतराल पर पानी देना होता है. जल्दी पकने वाली आलू की फसल 70 से 80 दिनों में तैयार हो जाती है.

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Published: 1 Sep, 2025 | 02:52 PM

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