साल में सिर्फ एक बार खुलता है दशानन मंदिर, रावण की पूजा से जुड़ी है गजब की मान्यता

सुबह करीब 9 बजे जैसे ही मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है. लोग तेल के दीये जलाते हैं, फूल अर्पित करते हैं और मन्नतें मांगते हैं. खास बात यह है कि उसी शाम मंदिर के कपाट फिर से बंद कर दिए जाते हैं और अगले साल तक कोई दर्शन नहीं कर सकता.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 2 Oct, 2025 | 12:25 PM

Dussehra 2025: हर साल दशहरा पूरे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. इस दिन जगह-जगह रावण दहन किया जाता है और लोग उत्सव की खुशी में शामिल होते हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश के कानपुर में दशहरा का रंग कुछ अलग ही होता है. यहां शिवाला क्षेत्र में स्थित दशानन मंदिर में रावण को जलाने के बजाय उसकी पूजा और आराधना की जाती है. यही परंपरा इस मंदिर को अद्वितीय और खास बनाती है.

साल में सिर्फ एक बार खुलता है मंदिर

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके दरवाजे पूरे साल बंद रहते हैं और सिर्फ विजयादशमी यानी दशहरे के दिन ही खोले जाते हैं. सुबह करीब 9 बजे जैसे ही मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है. लोग तेल के दीये जलाते हैं, फूल अर्पित करते हैं और मन्नतें मांगते हैं. रावण की विशेष सजावट और आरती के साथ दिन की शुरुआत होती है. खास बात यह है कि उसी शाम मंदिर के कपाट फिर से बंद कर दिए जाते हैं और अगले साल तक कोई दर्शन नहीं कर सकता.

रावण की पूजा के पीछे 100 साल पुरानी मान्यता

इस मंदिर को बनवाने का श्रेय महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल को जाता है, जिन्होंने लगभग सौ साल पहले इसे स्थापित कराया था. मंदिर का निर्माण भगवान शिव के कैलाश मंदिर परिसर में किया गया था. मान्यता है कि रावण न केवल एक महान योद्धा और पंडित था, बल्कि भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त भी था.

कथाओं के अनुसार, रावण की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर मां छिन्नमस्तिका ने उसे यह वरदान दिया था कि जब भी उसकी पूजा होगी, तो उसकी पूजा के साथ रावण की भी आराधना करनी होगी. इसी मान्यता को निभाने के लिए यहां दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है.

प्रहरी के रूप में स्थापित है रावण की प्रतिमा

मंदिर परिसर में रावण की प्रतिमा लगभग पांच फीट ऊंची है, जो आज से करीब 200 साल पुरानी बताई जाती है. इसे संवत 1868 में तत्कालीन राजा ने मां छिन्नमस्तिका के मंदिर के साथ स्थापित कराया था. इस मूर्ति को मंदिर का प्रहरी यानी गार्ड माना जाता है.

दशहरे के दिन यहां मां छिन्नमस्तिका की पूजा के बाद रावण की आरती उतारी जाती है. श्रद्धालु रावण को पीले फूल और सरसों के दीपक अर्पित करते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से शक्ति और विद्या की प्राप्ति होती है.

देशभर से आते हैं भक्त

इस अनोखी परंपरा को देखने और इसमें शामिल होने के लिए न सिर्फ कानपुर बल्कि आस-पास के जिलों और दूसरे राज्यों से भी श्रद्धालु आते हैं. भक्तों का मानना है कि रावण की पूजा से व्यक्ति को नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है और जीवन में उन्नति के रास्ते खुलते हैं.

परंपरा जो आज भी जीवित है

जहां पूरे देश में दशहरे पर रावण का पुतला जलाकर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है, वहीं कानपुर का दशानन मंदिर यह संदेश देता है कि रावण सिर्फ बुराई का प्रतीक नहीं था, बल्कि एक महान विद्वान और भगवान शिव का अनन्य भक्त भी था. यही कारण है कि यहां रावण की पूजा को आज भी परंपरा और आस्था के रूप में निभाया जाता है.

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