वो दौर बीत गया जब किसान अपने बच्चों को खेती करते हुए नहीं देखना चाहते थे. आज के आधुनिक समय में किसानों के बच्चे पढ़-लिखकर, अपनी उच्च शिक्षा का इस्तेमाल कर खेती को और ज्यादा फायदेमंद बना रहे हैं. फतेह रूरल लिमिटेड के अध्यक्ष सरबजीत सिंह पुरी का कहना है कि किसानों के पढ़े-लिखे बच्चे टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपना कर पर्यावरण अनुकूल खेती की ओर अपना रुख कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि आज के समय में किसान भी अपने खेतों में केमिकल फ्री खेती कर रहे हैं और ऐसे उत्पादों का चुनाव कर रहे जो बिना किसी केमिकल के भी उन्हें अच्छा उत्पादन दे रहे हैं.
आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे किसान
फतेह रूरल लिमिटेड के अध्यक्ष सरबजीत सिंह पुरी ने बताया कि आज देश के किसान बड़े पैमाने पर निर्यात की जाने वाली फसलों की खेती कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि, इन नकदी फसलों की खेती में पानी की खपत को नियंत्रित करने के लिए किसान खेतों में सेंसर और IoT (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) जैसे आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल करने लगे हैं. इसके साथ ही किसानों ने केमिकल खाद और उर्वरकों पर अपनी निर्भरता कम करते हुए पर्यावरण के अनुकूल खेती का हाथ थाम लिया है.
ग्रामीण इलाकों की खेती में आ रहे बड़े बदलाव
बिजनेसलाइन के साथ एक ऑनलाइन बातचीत में अध्यक्ष पुरी ने कहा कि पिछले 10 सालों में ग्रामीण इलाकों की खेती में बड़े बदलाव आए हैं. उन्होंने बताया कि गांवों में स्मार्टफोन का चलन बढ़ गया है. आज इन इलाकों में 60 से 70 साल के किसानों समेत गांव में रहने वाले लगभग हर आदमी के पास स्मार्टफोन हैं. उनका कहना है कि इस बदलाव से किसानों को फायदा भी हुआ है. उन्होंने आगे बताया कि इंटरनेट और यूट्यूब की मदद से किसान आज देश के अन्य राज्यों से भी खुद को जोड़ पा रहे हैं.

फतेह रूरल के अध्यक्ष सरबजीत सिंह पुरी
किसानों को सेवा देती है फतेह रूरल
सरबजीत सिंह पुरी की अध्यक्षता वाली कंपनी फतेह रूरल एक कॉल सेंटर है जिसकी शुरुआत साल 2010 में हुई थी. बता दें कि, फतेह रूरल एक विज्ञापन और ब्रांडिंग कंपनी है जो अपने कॉल सेंटरों के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में मार्केटिंग एक्टीविटीज करती है. अध्यक्ष पुरी ने बताया कि उनकी कंपनी की खासियत है कि वहां काम करने वाले 150 से ज्यादा कर्मचारी ग्रामीण इलाकों में रहने वालीं महिला स्नातकों को किसानों के साथ अलग-अलग इलाकों की बोलियों में बात करने के लिए ट्रेनिंग देती है. ताकि किसानों को अपनी समस्याओं को समझाने में किसी तरह की समस्या न हो.