ICAR में टकराव: बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न पर कौन करेगा शोध, कृषि या बागवानी विभाग?

बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न की बढ़ती लोकप्रियता और बाजार की मांग को देखते हुए यह विवाद महत्वपूर्ण है. किसान चाहते हैं कि उन्हें योजनाओं का लाभ तुरंत मिले, जबकि शोध संस्थान यह तय करने में लगे हैं कि किस विभाग के अंतर्गत इसे रखा जाए.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 8 Oct, 2025 | 10:09 AM

Corn Debate: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) में इस समय बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न को लेकर बड़ा विवाद चल रहा है. सवाल यह है कि इन खास मकई की किस्मों का शोध किस विभाग के अंतर्गत होना चाहिए- कृषि फसलों के तहत या बागवानी/सब्जियों के अंतर्गत. इस बहस ने न केवल आईसीएआर के अंदर हलचल मचा दी है, बल्कि किसानों और शोधकर्ताओं के लिए भी नए सवाल खड़े कर दिए हैं.

शुरुआत एक किसान के पत्र से हुई

इस पूरी बहस की शुरुआत जून में हरियाणा के किसान कन्वल सिंह चौहान के एक पत्र से हुई. उन्होंने कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा और अनुरोध किया कि बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न को “इंटीग्रेटेड मिशन फॉर डेवलपमेंट ऑफ होर्टिकल्चर (MIDH)” के तहत शामिल किया जाए. यह योजना किसानों को वित्तीय मदद और सब्सिडी प्रदान करती है. उनके पत्र को ICAR के डायरेक्टर-जनरल तक पहुंचाया गया, और इसके बाद विभागों के बीच बहस शुरू हो गई.

बागवानी विभाग की दलील

ICAR के बागवानी विभाग का कहना है कि बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न वास्तव में सब्जियों की श्रेणी में आते हैं, क्योंकि आम तौर पर उपभोक्ता इन्हें सलाद, सूप और अन्य व्यंजनों में सब्जी की तरह इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा, वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान पहले ही बेबी कॉर्न पर कई परियोजनाएं चला रहा है. बागवानी विभाग का यह भी कहना है कि वैश्विक बाजार में इनकी मांग बढ़ रही है, और 2024 में 1.46 बिलियन डॉलर से यह 2030 तक 2.3 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है.

कृषि विभाग की प्रतिक्रिया

वहीं, कृषि फसलों का विभाग इसे मकई की एक विशेष किस्म मानते हुए शोध को लुधियाना स्थित भारतीय मकई अनुसंधान संस्थान (IIMR) के तहत रखने का पक्षधर है. उनका तर्क है कि दोनों किस्में मूल रूप से मकई हैं और उनका वैज्ञानिक अध्ययन भी उसी आधार पर होना चाहिए.

हरियाणा के बागवानी विश्वविद्यालय की भूमिका

बागवानी और कृषि विभाग के इस मतभेद को और बढ़ावा तब मिला जब हरियाणा के महाराणा प्रताप हर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी (MHU) के वाइस-चांसलर सुरेश कुमार मल्होत्रा ने अगस्त 20 को ICAR को पत्र लिखा. उन्होंने अनुरोध किया कि MHU को AICRP के तहत बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न पर प्रयोग करने के लिए स्वैच्छिक केंद्र के रूप में मान्यता दी जाए. IIMR के डायरेक्टर ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शोध केंद्र बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया, जहां इन कॉर्न की मांग तेजी से बढ़ रही है.

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि विभागीय झगड़ा किसानों के लिए फायदेमंद नहीं है. एक पूर्व ICAR अधिकारी का कहना है, “किसानों के लिए यह ज्यादा मायने नहीं रखता कि कौन शोध कर रहा है. महत्वपूर्ण यह है कि MIDH जैसी योजनाओं के फायदे सीधे किसानों तक पहुंचें.”

वहीं, बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न की बढ़ती लोकप्रियता और बाजार की मांग को देखते हुए यह विवाद महत्वपूर्ण है. किसान चाहते हैं कि उन्हें योजनाओं का लाभ तुरंत मिले, जबकि शोध संस्थान यह तय करने में लगे हैं कि किस विभाग के अंतर्गत इसे रखा जाए. इस बहस का नतीजा केवल प्रशासनिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि कृषि और बागवानी अनुसंधान की दिशा पर भी असर डालेगा.

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