Manipur News: मणिपुर की खूबसूरत वादियों के बीच बहने वाली तारेटलोक नदी ने हाल ही में विज्ञान जगत को एक नया तोहफा दिया है. यहां शोधकर्ताओं की एक टीम ने मीठे पानी की मछली की नई प्रजाति खोजी है, जिसका नाम गारा नंबाशिएन्सिस (Garra nambashiensis) रखा गया है. यह खोज न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए अहम है, क्योंकि इस प्रजाति को वैज्ञानिकों ने अब तक दर्ज की गई दुर्लभ मछलियों की सूची में शामिल किया है.
नई प्रजाति की खोज कैसे हुई?
यह खोज धनमंजुरी यूनिवर्सिटी (DMU), मणिपुर के एसोसिएट प्रोफेसर बुगडोन शांगनिंगम और उनकी टीम ने की. टीम में शोधार्थी कोंगब्राइलत्पम बेबीरानी देवी, थोनबामलियु अबोनमाई और ख राजमणि सिंह शामिल थे. टीम ने मार्च 2025 में इस नई प्रजाति पर अपना शोध पत्र तैयार कर जर्नल को भेजा था. हाल ही में यह शोध अंतरराष्ट्रीय जर्नल Zootaxa में प्रकाशित हुआ और इस खोज को औपचारिक मान्यता मिली.
गारा नंबाशिएन्सिस की खासियत
नई खोजी गई मछली 9 से 14 सेंटीमीटर आकार की होती है. स्थानीय अनाल जनजाति की बोली में इसे नुतुंगनु कहा जाता है. इस प्रजाति को प्रोबोसिस स्पीशीज ग्रुप में रखा गया है क्योंकि इसके पास चौकोर आकार की सूंड जैसी संरचना (प्रोबोसिस) होती है. इसके अलावा, इसमें कई अनोखी विशेषताएं पाई गई हैं, जैसे- इसके मुंह के आगे हिस्से पर 7-8 नुकीले और शंक्वाकार उभार होते हैं. गलफड़ों के पास दोनों ओर काला धब्बा मौजूद रहता है. इसकी पीठ पर मौजूद पंख का आखिरी हिस्सा पीछे तक फैला रहता है. शरीर पर छह काली धारियां साफ दिखाई देती हैं, जो इसकी पहचान को और खास बनाती हैं.
कहां पाई जाती है यह मछली?
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह नई मछली तारेटलोक नदी में पाई गई है, जो मणिपुर की नंबाशी घाटी से बहकर चिंडविन नदी में मिलती है. यह मछली तेज बहाव वाले हिस्सों (Riffles) में पाई जाती है, जहां नदी का पानी उथला होता है और नीचे की सतह पर शैवाल जमी होती है. नदी की तलहटी में छोटे-बड़े पत्थर, बजरी, रेत और गाद मौजूद रहती है, जो इस प्रजाति के लिए आदर्श वातावरण तैयार करती है.
पहले से मौजूद समूह और तुलना
गारा नंबाशिएन्सिस (Garra Nambashiensis) को उस समूह में शामिल किया गया है, जिसमें फिलहाल कुल 32 प्रजातियां मान्य हैं. यह समूह भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों के कई बड़े नदी तंत्रों जैसे चिंडविन, ब्रह्मपुत्र, बराक और कालदान नदी में फैला हुआ है. इसके अलावा भूटान, तिब्बत (चीन) और बांग्लादेश में भी इस समूह की प्रजातियां मिलती हैं. नई प्रजाति को इन सभी प्रजातियों से तुलना करने के बाद ही अलग और विशिष्ट घोषित किया गया.
वैज्ञानिक और स्थानीय महत्व
नई प्रजाति की खोज से जैव विविधता के क्षेत्र में भारत की पहचान और मजबूत हुई है. इससे न सिर्फ वैज्ञानिकों को नई जानकारी मिलेगी बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी यह गौरव की बात है. अनाल जनजाति पहले से इस मछली को जानती थी और अपनी भाषा में इसे नुतुंगनु कहती थी, लेकिन अब इसे वैज्ञानिक मान्यता मिल गई है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह की खोजें हमें याद दिलाती हैं कि नदियों और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कितना जरूरी है.
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