केंद्र करेगा दलहन फसलों के MSP फॉर्मूले की समीक्षा, दालों के आयात पर होगा नियंत्रण

पिछले कुछ सालों में यह देखने को मिला है कि भारत में दलहनी फसलों जैसे अरहर, उड़द, चना और मसूर का उत्पादन या तो ठहर गया है या गिरा है. दूसरी ओर, देश को जरूरत पूरी करने के लिए बड़ी मात्रा में दालों का आयात करना पड़ रहा है.

नई दिल्ली | Published: 10 Jun, 2025 | 03:58 PM

भारत जैसे देश में दालें न सिर्फ हमारी थाली का अहम हिस्सा हैं, बल्कि लाखों किसानों की रोजी-रोटी भी इन्हीं पर टिकी है. लेकिन अब दालों की खेती से जुड़े कई सवाल खड़े हो रहे हैं जैसे कीमतों का सही लाभ न मिलना, उत्पादन में गिरावट और आयात पर बढ़ती निर्भरता. इन सबको ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने Minimum Support Price (MSP) यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य के मौजूदा फॉर्मूले की समीक्षा करने का फैसला लिया है.

क्या है मामला?

पिछले कुछ सालों में यह देखने को मिला है कि भारत में दलहनी फसलों जैसे अरहर, उड़द, चना और मसूर का उत्पादन या तो ठहर गया है या गिरा है. दूसरी ओर, देश को जरूरत पूरी करने के लिए बड़ी मात्रा में दालों का आयात करना पड़ रहा है. इससे किसानों को सही दाम नहीं मिल पा रहे और देश की विदेशी मुद्रा भी खर्च हो रही है.

क्यों हो रही है MSP फॉर्मूले की समीक्षा?

मिंट की रिपोर्ट के अनुसार सरकार अब यह देख रही है कि क्या MSP तय करने का मौजूदा तरीका किसानों की असल लागत और मेहनत को सही से दर्शा रहा है या नहीं. अभी जो फॉर्मूला है, वह लागत के हिसाब से तय होता है. लेकिन कई बार यह दाम इतना कम होता है कि किसान दलहन की खेती से मुंह मोड़ लेते हैं. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि MSP को सिर्फ लागत से नहीं, बल्कि मांग, खपत और फसल के उत्पादन चक्र से भी जोड़ा जाना चाहिए. इससे किसान प्रोत्साहित होंगे और देश में दलहन उत्पादन बढ़ेगा.

आंकड़े क्या कहते हैं?

आंकड़ों के अनुसार, अरहर की पैदावार पिछले चार सालों में कम होकर 43 लाख टन से घटकर 35 लाख टन हो गई है. इसके विपरीत, मूंग की पैदावार में बढ़ोतरी हुई है और यह 30 लाख टन से बढ़कर 38 लाख टन हो गई है. खपत के मामले में अरहर दाल सबसे ज्यादा मांग में है और इसकी मांग लगातार बनी हुई है. वहीं, दालों के आयात में भी तेजी आई है. 2023 में दालों का आयात 26 लाख टन था, जो 2025 में बढ़कर 67 लाख टन हो गया है, जो पिछले नौ सालों में सबसे अधिक है.

आगे की योजना

सरकार ‘दालों में आत्मनिर्भरता’ के लक्ष्य को लेकर गंभीर है और इसके लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रही है. इस योजना के तहत, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के फॉर्मूले को सुधारा जाएगा ताकि किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल सके. इसके साथ ही, किसानों को बेहतर गुणवत्ता वाले बीज और आधुनिक तकनीक उपलब्ध कराई जाएगी, जिससे दालों की पैदावार बढ़ सके.

सरकार अरहर की खेती को विशेष प्रोत्साहन देगी, क्योंकि इसकी मांग सबसे ज्यादा है. किसानों को उनकी फसल के सही दाम मिलें, इसके लिए क्षेत्र विशेष की खरीद नीति बनाई जाएगी. इसके अलावा, दालों की आपूर्ति श्रृंखला को भी मजबूत किया जाएगा ताकि दालों की बर्बादी कम हो और वे आसानी से बाजार तक पहुंच सकें.