इस सब्जी की खेती से किसान हो गए मालामाल, लागत कम और मुनाफा होगा दोगुना

शलजम की खेती के लिए मार्च से अगस्त का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है. इसकी खासियत यह है कि यह फसल जल्दी तैयार हो जाती है. सिर्फ 35 से 60 दिनों में खेत से उत्पादन मिलना शुरू हो जाता है.

नई दिल्ली | Published: 8 Sep, 2025 | 03:37 PM

आज के समय में खेती सिर्फ गुजारे का जरिया नहीं रही, बल्कि सही फसल का चुनाव करके किसान अपनी आमदनी को कई गुना बढ़ा सकते हैं. ऐसी ही एक फसल है शलजम (Turnip). यह फसल न केवल स्वाद और सेहत दोनों में काम की है, बल्कि बाजार में इसकी अच्छी खासी मांग भी रहती है. खास बात यह है कि शलजम की खेती में लागत बहुत कम आती है और मुनाफा लाखों तक पहुंच सकता है.

शलजम क्यों है खास?

शलजम एक जड़ वाली सब्जी है जो विटामिन, मिनरल्स और फाइबर से भरपूर होती है. इसे सब्जी, अचार, सलाद और सूप जैसे कई तरीकों से इस्तेमाल किया जाता है. यही वजह है कि इसकी मार्केट डिमांड सालभर बनी रहती है. इसके दाम भी अच्छे मिलते हैं, जिससे किसान को फसल बेचने में कोई दिक्कत नहीं आती.

शलजम की खेती का सही समय

शलजम की खेती के लिए मार्च से अगस्त का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है. इसकी खासियत यह है कि यह फसल जल्दी तैयार हो जाती है. सिर्फ 35 से 60 दिनों में खेत से उत्पादन मिलना शुरू हो जाता है. प्रति हेक्टेयर किसान को लगभग 350 से 400 क्विंटल तक उपज मिल सकती है.

खेती का तरीका

शलजम की खेती शुरू करने से पहले खेत की सही तैयारी करना बहुत जरूरी है. अच्छी तैयारी से बीज जल्दी अंकुरित होते हैं और फसल मजबूत बनती है.

खेत की तैयारी

सबसे पहले खेत की दो से तीन बार गहरी जुताई करें. जुताई करते समय मिट्टी को भुरभुरी और नरम बना लें ताकि बीज अच्छे से अंकुरित हो सकें. जुताई के बाद खेत को समतल कर दें और नमी बनाए रखें. शलजम की फसल के लिए दोमट और रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है.

बीज की बुवाई

शलजम की बिजाई सीधे बीज बोकर की जाती है. बीज बोने से पहले उन्हें फफूंदनाशी दवा से उपचारित करना बेहतर होता है ताकि पौधों में रोग न लगें. प्रति हेक्टेयर लगभग 3 से 4 किलो बीज पर्याप्त होता है. बीजों को कतारों में बोना चाहिए और कतार से कतार की दूरी करीब 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी लगभग 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए.

सिंचाई

शलजम की फसल में नमी बनाए रखना जरूरी है. पहली सिंचाई बीज अंकुरण के तुरंत बाद करें. इसके बाद हर 15–20 दिन में सिंचाई करते रहें. गर्मी या सूखे की स्थिति में पानी की आवश्यकता और बढ़ सकती है. ध्यान रखें कि खेत में पानी ज्यादा देर तक जमा न हो, वरना फसल खराब हो सकती है.

खाद और उर्वरक

शलजम की अच्छी पैदावार के लिए जैविक खाद का प्रयोग करना लाभकारी है. बुवाई से पहले प्रति हेक्टेयर लगभग 15–20 टन गोबर की खाद खेत में डालें. इसके अलावा रासायनिक उर्वरक के रूप में नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश संतुलित मात्रा में दें. बुवाई के 25–30 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में यूरिया डालना भी फायदेमंद होता है.

देखभाल

फसल के दौरान खेत की निराई-गुड़ाई समय-समय पर करते रहें ताकि खरपतवार न पनपे. पौधों की बढ़वार के समय इनकी छंटाई और दूरी बनाए रखना भी जरूरी है. इससे पौधों को पर्याप्त जगह और पोषण मिलता है.

लागत और मुनाफा

शलजम की खेती की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें लागत बहुत कम आती है. बीज की लागत और खाद-पानी का खर्चा जोड़ लें तो भी यह काफी किफायती रहती है. वहीं, शलजम का बाजार भाव ₹2500 प्रति क्विंटल तक मिलता है. अगर किसान को प्रति हेक्टेयर 350–400 क्विंटल उत्पादन मिलता है, तो आसानी से लाखों रुपये की कमाई हो सकती है.

किसानों के लिए वरदान

आज जब किसान महंगी खेती से परेशान हैं, शलजम जैसी फसलें उनके लिए कमाई का बेहतर साधन साबित हो रही हैं. कम लागत, जल्दी तैयार होने और बाजार में पक्की डिमांड होने की वजह से किसान इस फसल को अपनाकर अपनी आय को बढ़ा सकते हैं.