International Tiger Day: भारत ने बाघों की संख्या दोगुनी कर रचा इतिहास, बना ग्लोबल लीडर

"प्रोजेक्ट टाइगर", जो 1973 में शुरू हुआ था, उसका विस्तार हुआ और इसे और सख्ती से लागू किया गया. भारत में अब 53 टाइगर रिजर्व हैं, जिनमें मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बाघों की संख्या सबसे ज्यादा है.

नई दिल्ली | Published: 29 Jul, 2025 | 10:50 AM

हर साल 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है-एक ऐसा दिन जो हमें याद दिलाता है कि जंगल का राजा आज खुद संकट में है. बाघों की संख्या में गिरावट ने दुनियाभर के पर्यावरण प्रेमियों को चिंता में डाल दिया था, लेकिन भारत ने पिछले एक दशक में एक अनोखी मिसाल कायम की है. आज जब हम बाघ दिवस 2025 मना रहे हैं, तो यह गर्व की बात है कि भारत ने पिछले 10 वर्षों में अपनी बाघ जनसंख्या को दोगुना कर दिया है.

क्यों मनाते हैं इंटरनेशनल टाइगर डे?

2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुए एक सम्मेलन में यह फैसला लिया गया कि टाइगर की घटती संख्या पर लगाम लगाई जाए. तभी से 29 जुलाई को इंटरनेशनल टाइगर डे मनाया जाने लगा. इसका मकसद है- बाघों के संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाना और लोगों को समझाना कि इनका बचना क्यों जरूरी है.

क्यों जरूरी हैं बाघ?

बाघ सिर्फ एक खूबसूरत जानवर नहीं है, वो जंगल का संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है. बाघ शीर्ष शिकारी (top predator) होता है, यानी वो पूरी फूड चेन के ऊपर होता है. अगर बाघ कम होंगे तो हिरण जैसे शाकाहारी जानवरों की संख्या बढ़ेगी, जिससे जंगल का संतुलन बिगड़ सकता है. इसीलिए बाघ को “umbrella species” कहा जाता है, यानी अगर हम बाघ की सुरक्षा करते हैं तो उसके साथ पूरे जंगल और उसमें रहने वाले सैकड़ों जीव-जंतु भी सुरक्षित हो जाते हैं.

भारत ने कैसे किया कमाल?

भारत में कभी बाघों की संख्या चिंताजनक रूप से कम हो गई थी. साल 2006 में यह संख्या सिर्फ 1,411 थी. लेकिन अब 2022-2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 3,682 तक पहुंच गई है. यह सफलता रातों-रात नहीं आई. इसके पीछे कई योजनाएं, जागरूकता अभियान, संरक्षित वन क्षेत्रों की सुरक्षा और स्थानीय समुदायों का सहयोग है.

“प्रोजेक्ट टाइगर”, जो 1973 में शुरू हुआ था, उसका विस्तार हुआ और इसे और सख्ती से लागू किया गया. भारत में अब 53 टाइगर रिजर्व हैं, जिनमें मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बाघों की संख्या सबसे ज्यादा है.

टेक्नोलॉजी से भी मिली मदद

भारत ने बाघों की निगरानी के लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल शुरू किया. कैमरा ट्रैप्स, सैटेलाइट इमेजिंग, ड्रोन सर्विलांस, और GPS कॉलर जैसे साधनों ने बाघों की गिनती और उनके मूवमेंट को ट्रैक करना आसान बना दिया.

बाघों की संख्या क्यों घटती है?

  • जंगलों की कटाई-इंसानी बस्तियों के लिए जंगल कम हो रहे हैं.
  • अवैध शिकार- बाघों की खाल, हड्डी और अंगों की तस्करी आज भी चिंता का विषय है.
  • भोजन की कमी- हिरण जैसे शाकाहारी जानवरों की घटती संख्या बाघों के लिए खतरा है.
  • मानव-बाघ टकराव- जंगल कम होने से बाघ इंसानी इलाकों की ओर आने लगे हैं.

चुनौतियां अभी बाकी हैं

भले ही भारत ने बाघों की संख्या बढ़ाने में सफलता पाई है, लेकिन बाघों के लिए खतरे अभी भी मौजूद हैं- जैसे जंगलों की कटाई, इंसान-बाघ टकराव, अवैध शिकार, और जलवायु परिवर्तन. कई बार बाघ अपने प्राकृतिक आवास से निकलकर गांवों की ओर चले जाते हैं, जिससे उनके जीवन को खतरा होता है.