कटहल के पत्तों पर दिख रहे धब्बे? तुरंत अपनाएं ये जैविक और रासायनिक उपाय

कटहल के फल, बीज, पत्तियां और यहां तक कि छाल भी कई प्रकार के घरेलू और औद्योगिक उपयोग में आते हैं. लेकिन कटहल की खेती कई रोगों और कीटों के हमले की वजह से प्रभावित होती है. इनमें सबसे गंभीर और आम रोग है पत्ती धब्बा रोग, जो फसल की पैदावार और गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर डालता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 8 Sep, 2025 | 10:08 AM

भारत में कटहल (Artocarpus heterophyllus) का उत्पादन उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से होता है. यह फल न केवल स्वाद और पोषण का खजाना है, बल्कि व्यापारिक दृष्टि से भी किसानों के लिए बेहद लाभकारी है. कटहल के फल, बीज, पत्तियां और यहां तक कि छाल भी कई प्रकार के घरेलू और औद्योगिक उपयोग में आते हैं. लेकिन कटहल की खेती कई रोगों और कीटों के हमले की वजह से प्रभावित होती है. इनमें सबसे गंभीर और आम रोग है पत्ती धब्बा रोग, जो फसल की पैदावार और गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर डालता है.

पत्ती धब्बा रोग क्यों होता है?

पत्ती धब्बा रोग मुख्य रूप से फफूंद (फंगल) संक्रमण के कारण होता है. यह रोग तब ज्यादा फैलता है जब वातावरण गर्म और नम होता है, लगातार बारिश होती है या खेत में पानी का ठहराव रहता है. इसके अलावा, संक्रमित पौध सामग्री का उपयोग, खराब कृषि तकनीक और पौधों के बीच कम हवा का संचार भी इसे बढ़ावा देता है.

रोग के लक्षण

इस रोग के कारण पत्तियों पर छोटे भूरे या काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जिनके चारों ओर हल्की पीली आभा रहती है. धीरे-धीरे ये धब्बे बड़े होकर एक-दूसरे से मिल जाते हैं और पत्तियां मुरझाकर गिरने लगती हैं. संक्रमण लंबे समय तक रहता है, तो पौधों की वृद्धि रुक जाती है और फल भी कम आते हैं.

बचाव और नियंत्रण के नए तरीके

खेत की तैयारी और कृषि उपाय- पौधों की नियमित छंटाई करें और रोगग्रस्त पत्तियों को तुरंत नष्ट करें. खेत में उचित जल निकासी और नमी नियंत्रण आवश्यक है. इसके अलावा, पौधों के बीच पर्याप्त दूरी रखकर हवा का संचार बढ़ाएं. कुछ किसान अब कटहल के लिए उठाए गए बॉटल ट्रे या पॉलीहाउस तकनीक में पौधों को उगा रहे हैं, जिससे फफूंद और कीटों का खतरा कम होता है.

जैविक नियंत्रण- ट्राइकोडर्मा, बायोफंगस और स्यूडोमोनास जैसे जैविक एजेंटों का छिड़काव फफूंद को रोकने में कारगर होता है. नीम के अर्क, हल्दी और लहसुन का घोल भी प्राकृतिक कीटनाशक और फफूंदनाशक के रूप में उपयोगी है. कुछ किसान अब कंपोस्ट और जैविक खाद का मिश्रण करके मिट्टी की उर्वरता बढ़ा रहे हैं, जिससे पौधे रोगों के प्रति मजबूत बनते हैं.

रासायनिक नियंत्रण- यदि रोग अधिक फैल चुका है, तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड, बोर्डो मिश्रण, मैंकोजेब या हेक्साकोनाजोल का छिड़काव फायदेमंद होता है. किसानों को ध्यान रखना चाहिए कि छिड़काव समय पर और सही मात्रा में हो, ताकि पौधों पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े.

नवीनतम तकनीकें- कुछ किसान अब स्मार्ट सेंसर्स और ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे न केवल पानी की बचत होती है, बल्कि पौधों की नमी नियंत्रित रहती है, जिससे फफूंद का खतरा कम होता है. इसके अलावा, शोधकर्ता अब रोग प्रतिरोधी कटहल प्रजातियों पर काम कर रहे हैं, जिन्हें भविष्य में किसानों के लिए और भी लाभकारी बनाया जाएगा.

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Published: 8 Sep, 2025 | 10:01 AM

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