किसी भी किसान के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि उसके पौधे का विकास अच्छे से हो और उन्हें पैदावार भी अच्छी मिले. पौधों की अच्छी ग्रोथ के लिए किसान बाजार से महंगे-महंगे उर्वरक खरीदते हैं और फसलों पर उनका इस्तेमाल करते हैं. लेकिन बाजार में मिलने वाले उर्वरक अकसर नकली या मिलावटी होते हैं, जिसके कारण फसलों को फायदा पहुंचने की जगह इन उर्वरकों से नुकसान होता है. ऐसे में न केवल किसानों की फसल बर्बाद होती है बल्कि उन्हें कई तरह की गंभीर समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है. यही कारण है कि आज के समय में किसानों को जैविक खेती के लिए बढ़ावा दिया जाता है, जहां फसलों की बेहतरी के लिए किसान जैविक खाद बनाकर उनका इस्तेमाल करते हैं. ऐसी ही एक लिक्विड खाद है जिसे आसानी से किसान मात्र 3 दिनों में तैयार कर सकते हैं. किसान इस जैविक खाद को अमृतजल कहते हैं.
क्यों खास है अमृतजल
अमृतजल इसलिए खास है क्योंकि ये पौधों के लिए टॉनिक का काम करता है. यह एक तरह का जैविक घोल है जिसे किसान आसानी से अपने घर में प्राकृतिक चीजों से तैयार कर सकते हैं. इसे पौधों के लिए संजीवनी बूटी माना जाता है क्योंकि इसमें पौधों के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम भरपूर मात्रा में होते हैं. साथ ही इसमें सूक्ष्मजीवों की संख्या ज्यादा होती है. बता दें कि, ये सूक्ष्मजीव मिट्टी में जाकर उसे और ज्यादा उपजाऊ बनाते हैं, जिससे पौधों की ग्रोथ पर भी असर पड़ता है.
इस विधि से तैयार करें जैविक घोल
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमृतजल तैयार करना आसान है और ये केवल 3 दिनों में ही इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाता है. अमृतजल तैयार करने के लिए सबसे पहले किसी बड़े बर्तन में 10 लीटर पानी लें, उसमें 1 किलोग्राम ताजा गोबर, 50 ग्राम चने का आटा और 50 ग्राम गुड़ मिलाएं. इसके बाद एक लकड़ी की छड़ी लेकर इस सभी चीजों को अच्छे से मिलाएं. इसके बाद बर्तन को ढककर 3 दिनों के लिए किसी छांव वाली जगह पर रख दें. ध्यान रहे कि दिन में 2 बार घोल को लकड़ी की छड़ी से जरूर हिलाएं. इस पूरी प्रक्रिया के बाद 3 दिन के अंदर अमृतजल तैयार हो जात है. बता दें कि, अमृतजल को पौधों पर सीधे जड़ों में डाल सकते हैं या फिर स्प्रे के रूप में भी पौधों पर इसका छिड़काव किया जा सकता है. अच्छे परिणाम के लिए पौधों पर हर 15 दिन में इसका इस्तेमाल करें.
अमृतजल के फायदे
अमृतजल के फायदों की बात करें तो इसके इस्तेमाल से पौधों की ग्रोथ तेजी से होती है और उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है. साथ ही इसके इस्तेमाल से फसलों में होने वाले रोगों का खतरा भी कम होता है. इसके इस्तेमाल से किसानों को केमिकल उर्वरकों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है और उनकी लागत भी कम होने के साथ-साथ उत्पादन बढ़ने लगता है. इस तरह किसीनों की आमदनी में बढ़ोतरी होती है.