भारत के उस सुदूर पूर्वी कोने से, जहां पहाड़ बादलों से बातें करते हैं, जहां हर सुबह की पहली किरण भारत की धरती को प्यार से जगाती है, उसी अरुंणाचल में किसान धरती मां की गोद में केचुओं की मदद से सोना उगा रहे हैं. यहां एक हरित क्रांति खामोशी से पनप रही है. वर्मीकंपोस्टिंग की यह जादुई कहानी है, जो हर बंजर को हरा भरा कर रही है. यहां वर्मीकंपोस्टिंग न केवल मिट्टी को उपजाऊ बना रही है, बल्कि ग्रामीण जीवन में एक उम्मीद की नई सुबह भी ला रही है. बात अप्रैल 2023 की जब राज्य सरकार किसानों को सशक्त करने के लिए एक छोटा सा कदम लिया जिसके कारण सियांग जिले के पंगिन और मोरुक गांव में चुपचाप हरित क्रांती का जन्म हुआ. शुरुआती समय में प्रायोगिक रुप में इस वर्मीकंपोस्टिंग परियोजना की शुरुआत हुई थी. लेकिन अब इस पहल ने दर्जनों किसानों खासकर महिलाओं के जीवन को जबर्दस्त रुप से बदल दिया है, जिससे उन्हें स्थायी रुप से आय, आत्मनिर्भरता और पर्यावरण जागरुकता का एक नया स्त्रोत मिला है.
आपको बता दें कि इस परियोजना की सफलता से देश भर के किसान प्रेरणा ले रहे हैं, साथ ही साथ प्राकृतिक खेती और आत्मनिर्भरता की इस कहानी से किसानों को आर्थिक रुप से सशक्त होने की राह दिख रही है. यदि आप भी वर्मीकंपोस्टिंग करना चाह रहे हैं तो इस कहानी से आपको जरुर कुछ सिखना चाहिए. इस खबर में हम आपको वर्मीकंपोस्टिंग की संपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं.
इनका मिला साथ
राज्य सरकार में मंत्री ओजिंग तासिंग की दूरदर्शिता और अरुणाचल राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के कार्यान्वयन सहयोग से, इस पहल ने पांच स्वयं सहायता समूहों – न्यूबो अने, मिटुंग अने, नाने अने, लूने, नाने और अने सियांग को जैविक कचरे को काले सोना में बदलने के लिए सशक्त बनाया. आपको बता दें कि पासीघाटी बागवानी एवं वानिकी महाविद्दालय एवं पूर्वी सियांग कृषि विज्ञान केंद्र ने तकनीकी प्रशिक्षण में महत्तवपूर्ण योगदान दिया है. इन दोनों संस्थान के मदद से महिलाओं को वर्मी बेड, लाल विगलर कृमि और टेकनिकल मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है.
मुनाफे का पूरा गणित
आज की तारिख तक स्वयं सहायता समूहों ने नौ कटाई चक्र पूरे कर लिए हैं, जिससे कुल 8,440 किलोग्राम उन्नत किस्म के वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन हुआ है और लगभग 4.22 लाख रुपए की कुल आय हुई है. आपको बता दें कि लाभ को संचालन का विस्तार करने, सामाग्री की पूर्ती करने और उद्दम को और अधिक पेशेवर बनाने के लिए पुनर्निवेशित किया गया है- जिससे इसकी लॉंग टाइम तक की स्थिरता सुनिश्चित हुई है. मौद्रिक मुनाफे के अलावे इस योजना ने महिला किसानों में एक नया आत्मविश्वास पैदा किया है और इसके साथ इनको प्रबंधन में भी माहिर बना दिया है. महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के जरिए अब उत्पादन का प्रबंधन करती है, व्हाट्सएप के जरिए ऑर्डर संभालती है और आस-पास के गांवों को भी मार्गदर्शन देती है. मीडिया से बात करते समय नाने की एक समूह की सदस्य ने बताया कि इस आय से बच्चों की शिक्षा और घरेलू जरुरतें पूरी हुई है, जिससे परिवारों को आर्थिक सुरक्षा मिली है.
प्रेरित होकर की नई शुरुआत
पंगिन की सफलता से प्रेरित होकर केबांग सोले गांव ने फरवरी 2025 में स्वच्छ आदर्श ग्राम पहल के तहत एक कूड़े के गड्ढे को प्राप्त को किया और उसे कृमि बेड में बदल दिया. पंगिन बीएमएमयू के तकनीकी सहयोग और न्योबे एने एसएचजी की एक सदस्य के कुशल मार्गदर्शन से, गांव ने 7 जुलाई को अपनी पहली 78 किलोग्राम खाद तैयार की, जिससे 3,900 की कमाई हुई.