करेला की खेती की नायाब तकनीक: अब न होगा फसल का नुकसान, न आवारा जानवरों का डर

करेला सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि सेहत का खजाना है. इसमें फाइबर, विटामिन-C, और आयरन की भरपूर मात्रा होती है. यह ब्लड शुगर कंट्रोल करने में मदद करता है, लिवर डिटॉक्सिफिकेशन में कारगर है और इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाता है. इसी वजह से बाजार में करेले की मांग सालभर बनी रहती है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 11 Nov, 2025 | 04:00 PM

Farming Tips: ग्रामीण भारत में जहां किसान अक्सर अपनी मेहनत की फसल को आवारा जानवरों से बचाने की चिंता में रहते हैं, वहीं कुछ किसानों ने एक ऐसी तकनीक खोज निकाली है जो न सिर्फ सुरक्षा देती है बल्कि कम लागत में ज्यादा मुनाफा भी. जी हां, हम बात कर रहे हैं करेला (Bitter Gourd) की खेती की, जिसे अगर आधुनिक और वैज्ञानिक तरीके से किया जाए तो यह “छोटे किसानों के लिए बड़ी कमाई का जरिया” बन सकती है.

किसानों के लिए मुनाफे का सौदा

करेला की खेती फरवरी से मार्च तक बोई गई फसल मई-जून में तैयार हो जाती है, जबकि खरीफ की बुवाई जून-जुलाई में होती है और उपज अगस्त-सितंबर में मिलती है.

करेले की बेल को अगर मचान (trellis) पर चढ़ाया जाए तो बेलें जमीन से ऊपर रहती हैं और नमी, कीट या सड़न की समस्या नहीं होती. इससे फसल की क्वालिटी और पैदावार दोनों बढ़ जाते हैं.

खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और तापमान

करेला की खेती के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी सबसे बेहतर होती है. खेत में पानी का जमाव बिल्कुल नहीं होना चाहिए क्योंकि करेले की जड़ें बहुत नाजुक होती हैं. अच्छी वृद्धि के लिए 25 से 35°C का तापमान सही रहता है. बीजों के अंकुरण के लिए 22–25°C का तापमान सर्वोत्तम माना जाता है.

बीज बुवाई और तैयारी की नई तकनीक

  • करेले की बुवाई से पहले खेत को दो-तीन बार जुताई कर समतल करें.
  • बुवाई से पहले बीजों को 24 घंटे पानी में भिगोना चाहिए, जिससे अंकुरण तेज होता है.
  • एक एकड़ में लगभग 500 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं.

बीज को बुवाई से पहले बाविस्टीन (2 ग्राम प्रति किलो बीज) के घोल में भिगोकर उपचारित करना जरूरी है, ताकि फफूंदीजनित रोगों से बचाव हो सके. नर्सरी विधि में, बीजों को कोकोपीट और वर्मीकुलाइट के मिश्रण में बोकर पौध तैयार किए जा सकते हैं. 15–20 दिनों बाद जब पौधे मजबूत हो जाएं, तो उन्हें खेत में रोप दें.

मचान विधि: फसल सुरक्षा का सबसे असरदार तरीका

मचान विधि से करेला की खेती के कई फायदे हैं —

  • बेलें जमीन से ऊपर रहती हैं, जिससे फसल 90 फीसदी तक सुरक्षित रहती है.
  • कीट और फफूंदी का असर कम होता है, फल सीधे धूप में अच्छे रंग और स्वाद के साथ तैयार होते हैं.
  • मचान बांस, लोहे के तार या प्लास्टिक जाल से बनाया जा सकता है.

करेले की प्रमुख किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार —पूसा हाइब्रिड-2, कल्याणपुर बारहमासी, काशी उर्वशी, अर्का हरित, पंजाब करेला-1, और पूसा विशेष किस्में किसानों के बीच सबसे लोकप्रिय हैं. ये किस्में रोग-प्रतिरोधक हैं और अच्छी पैदावार देती हैं.

करेला – सेहत और समृद्धि दोनों का साथी

करेला सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि सेहत का खजाना है. इसमें फाइबर, विटामिन-C, और आयरन की भरपूर मात्रा होती है. यह ब्लड शुगर कंट्रोल करने में मदद करता है, लिवर डिटॉक्सिफिकेशन में कारगर है और इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाता है. इसी वजह से बाजार में करेले की मांग सालभर बनी रहती है, चाहे स्वास्थ्य के प्रति जागरूक ग्राहक हों या हर्बल उत्पाद बनाने वाली कंपनियां.

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