देश के तुअर (अरहर) दाल उत्पादक किसानों के लिए राहत भरी खबर आई है. सालों से किसानों की मेहनत पर पानी फेरने वाली खतरनाक स्टरलिटी मोजेक बीमारी (SMD) का तोड़ अब मिल गया है. इस बीमारी से फसल की पैदावार 90 फीसदी तक घट सकती थी, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान होता था. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने एक खास जीन Ccsmd04 खोज लिया है, जो पौधों को इस बीमारी से लड़ने की ताकत देगा. इससे फसल का नुकसान कम होगा, उत्पादन बढ़ेगा और किसानों की आमदनी में सुधार होगा.
कैसे मिली ये यह सफलता?
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, इस बड़ी खोज के पीछे देश के कई प्रमुख कृषि अनुसंधान संस्थानों की मेहनत है. आईसीआरआईएसएटी (अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर, उत्तर प्रदेश), डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (बिहार) और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई, असम) के वैज्ञानिकों ने मिलकर इस पर काम किया. टीम ने उन्नत जीनोमिक्स, फीनोमिक्स और हाई-पावर कंप्यूटेशनल एनालिसिस तकनीकों का उपयोग करके ‘आशा’ (ICPL 87119) नाम की आईसीआरआईएसएटी द्वारा विकसित तुअर किस्म में यह जीन खोजा.
क्यों है यह खोज खास?
आईसीआरआईएसएटी के महानिदेशक हिमांशु पाठक के मुताबिक, “स्टरलिटी मोजेक बीमारी का असर भारत के कई इलाकों में बेहद गंभीर है. यह खोज न केवल मौजूदा बीमारी से बचाएगी, बल्कि भविष्य में और भी ज्यादा रोग-प्रतिरोधक किस्में बनाने में मदद करेगी.”
दरअसल, यह बीमारी एक वायरस और उसे फैलाने वाले माइट नामक कीट से होती है. पिछले कई दशकों से इस बीमारी के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्में विकसित करने के प्रयास होते रहे, लेकिन वायरस और माइट में लगातार बदलाव होने के कारण पूरी तरह सफलता नहीं मिल पाई.
क्या मिलेगा किसानों को फायदा?
मुख्य वैज्ञानिक मनीष के. पांडे ने बताया कि टीम ने न सिर्फ एक प्रतिरोधक जीन की पहचान की है, बल्कि SMD प्रतिरोध से जुड़े चार InDel मार्कर्स भी प्रमाणित किए हैं. इन मार्कर्स का इस्तेमाल तुअर की नई किस्मों की शुरुआती चयन प्रक्रिया में किया जा सकता है. इससे फसल सुधार का काम तेजी से होगा और जीन एडिटिंग के जरिए बेहतर किस्में तैयार की जा सकेंगी.
खत्म होगी बीमारी
अब वैज्ञानिक जंगली प्रजातियों समेत और अधिक प्रतिरोधक जीन खोजने पर काम कर रहे हैं, ताकि किसानों के खेतों में इस बीमारी से स्थायी बचाव हो सके. अगर यह प्रयास सफल रहा तो भारत में तुअर उत्पादन नई ऊंचाइयों पर पहुंच सकता है, और किसानों को इस बीमारी का डर हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा.