पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने और मॉनिटर करने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने 22 वैज्ञानिकों की एक विशेष टीम तैनात की है. यह कदम पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB), वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) और कृषि विभाग के साथ हुई समीक्षा बैठक के बाद उठाया गया है.
अधिकारियों के अनुसार, 15 अक्टूबर से 15 नवंबर का समय सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इस अवधि में अधिकांश धान की कटाई होती है और इसलिए पराली जलाने की घटनाओं में भी बढ़ोतरी की आशंका रहती है. सितंबर 30 तक पंजाब में पहले ही 95 फसल आग की घटनाएं दर्ज की जा चुकी हैं.
वैज्ञानिकों की भूमिकाएं और कार्य
तैनात की गई टीम आकस्मिक फील्ड सर्वेक्षण करेगी और PPCB, पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर (PRSC) तथा कृषि विभाग के साथ समन्वय बनाए रखेगी. इनका मुख्य उद्देश्य फसल जलाने के प्रभाव को मापना और क्षेत्रीय वायु प्रदूषण पर इसके असर का आंकलन करना है. अक्टूबर मध्य में मौसमी परिस्थितियों के कारण धुआं और धूल जमी हुई हवा में फंस सकती है, जिससे वायु गुणवत्ता और खराब हो जाती है.
पराली जलाने के हॉटस्पॉट और जिला विवरण
पिछले तीन सालों के आंकड़ों के आधार पर पंजाब ने 663 हॉटस्पॉट गांव चिन्हित किए हैं, जो आठ जिलों में स्थित हैं: संगरूर, फतेहपुर, बठिंडा, मोगा, बर्नाला, मानसा, तरनतारन और फरिदकोट. जबकि पटियाला और लुधियाना में हाल के वर्षों में सुधार देखा गया है. 2024 में पंजाब में रिपोर्ट किए गए 10,909 फसल आग में से 6,815 घटनाएं इन आठ जिलों में हुईं, जो राज्य के कुल मामलों का लगभग दो-तिहाई है.
पराली सुरक्षा बल और निगरानी प्रणाली
पंजाब सरकार ने पराली जलाने पर रोक के लिए 8,000 कर्मियों की “पराली सुरक्षा बल” बनाई है. इसमें 5,000 नोडल अधिकारी, 1,500 क्लस्टर समन्वयक और 1,200 फील्ड ऑफिसर शामिल हैं, जो 11,624 गांवों में सक्रिय हैं. ये टीम घटनाओं की जांच करती है और एक्शन टेकन रिपोर्ट (ATR) ऐप के माध्यम से रोजाना अपडेट दर्ज करती है.
बढ़ते पराली जलाने के मामले
PPCB के विशेषज्ञ के अनुसार, अमृतसर में आलू और सब्जियों की जल्दी कटाई के कारण हाल ही में फसल आग की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है. आने वाले दिनों में मलवा क्षेत्र में फसलों के पकने के साथ यह संख्या और बढ़ सकती है. विशेषज्ञों ने किसानों से अपील की है कि फसल अवशेष को जलाने के बजाय उचित निपटान और तकनीकी उपायों का पालन करें, ताकि वायु प्रदूषण को कम किया जा सके और स्वास्थ्य पर बुरा असर न पड़े.
पंजाब सरकार और केंद्रीय बोर्ड का यह प्रयास राज्य में फसल जलाने की घटनाओं को नियंत्रित करने और हवा की गुणवत्ता में सुधार लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.