Farming Tips: सर्दियों का मौसम जहां एक ओर रबी की फसलों के लिए जरूरी माना जाता है, वहीं दूसरी ओर यही ठंड किसानों के लिए सबसे बड़ा खतरा भी बन जाती है. जब लगातार दो–तीन दिनों तक ठंडी हवाएं चलती हैं और रात के समय तापमान तेजी से गिरने लगता है, तब खेतों में खड़ी फसलों पर पाले का खतरा बढ़ जाता है. पाला एक ऐसी प्राकृतिक मार है, जो बिना शोर किए धीरे-धीरे फसल को नुकसान पहुंचाती है और कई बार पूरी मेहनत पर पानी फेर देती है. खासकर दिसंबर और जनवरी के महीने में किसानों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत होती है.
कैसे और क्यों पड़ता है पाला
पाला तब पड़ता है जब वातावरण में ठंड बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और तापमान 4 डिग्री सेल्सियस से नीचे पहुंचकर शून्य के आसपास या उससे भी कम हो जाता है. साफ आसमान, शांत हवा और अत्यधिक ठंड पाले की संभावना को और बढ़ा देती है. ऐसे मौसम में रात के समय पौधों की सतह पर ओस जम जाती है, जो धीरे-धीरे बर्फ में बदलने लगती है. यही जमी हुई बर्फ फसलों के लिए सबसे खतरनाक साबित होती है.
पाले से फसल को क्यों होता है नुकसान
पाले की स्थिति में पौधों के अंदर मौजूद पानी जम जाता है. पानी के जमने से उसका आकार बढ़ जाता है, जिससे पौधों की कोशिकाएं फटने लगती हैं. इसका असर सबसे पहले पत्तियों पर दिखाई देता है, जो झुलसने लगती हैं. धीरे-धीरे पौधे का विकास रुक जाता है, फूल और फल गिरने लगते हैं और उपज पर सीधा असर पड़ता है. अगर पाले की स्थिति ज्यादा समय तक बनी रहे, तो पौधे पूरी तरह नष्ट भी हो सकते हैं.
खेत में नमी रखना क्यों है जरूरी
पाले से बचाव का सबसे आसान और कारगर तरीका खेत में उचित नमी बनाए रखना है. जब खेत में हल्की सिंचाई की जाती है, तो मिट्टी से निकलने वाली ऊष्मा रात के समय तापमान को थोड़ा ऊपर बनाए रखती है. इससे पाले का असर काफी हद तक कम हो जाता है. खासकर जिन इलाकों में पाले की आशंका ज्यादा रहती है, वहां समय-समय पर सिंचाई बहुत फायदेमंद साबित होती है.
धुएं से भी मिलती है राहत
पुराने समय से किसान पाले से बचाव के लिए धुएं का सहारा लेते आए हैं. खेत की मेड़ों पर कूड़ा-कचरा, सूखी घास या उपले जलाकर धुआं किया जाता है. यह धुआं खेत के ऊपर एक परत बना देता है, जिससे तापमान गिरने की रफ्तार धीमी हो जाती है. खासतौर पर रात के 2 से 3 बजे के बीच धुआं करना ज्यादा असरदार माना जाता है, क्योंकि इसी समय पाले का प्रभाव सबसे अधिक होता है.
छोटे पौधों को ढकना भी है असरदार उपाय
बागवानी फसलों और नर्सरी में लगे छोटे पौधे पाले से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. ऐसे पौधों को ढककर भी सुरक्षित रखा जा सकता है. सूखे पुआल, बाजरे के डंठल या बोरे का इस्तेमाल करके पौधों को चारों ओर से ढक दिया जाता है. ध्यान रहे कि पौधों को पूरी तरह बंद न किया जाए, ताकि दिन में धूप मिलती रहे और पौधे सांस ले सकें.
किन फसलों पर ज्यादा होता है पाले का असर
पाले का सबसे ज्यादा असर सरसों, चना और सब्जियों की नर्सरी पर देखा जाता है. छोटी अवस्था में लगे पौधे ठंड सहन नहीं कर पाते और जल्दी खराब हो जाते हैं. यही कारण है कि इन फसलों में ठंड के दिनों में अतिरिक्त सावधानी बेहद जरूरी होती है.
समय रहते कदम उठाना ही है बचाव
पाले से होने वाला नुकसान अचानक जरूर लगता है, लेकिन अगर मौसम पर नजर रखी जाए और समय रहते जरूरी कदम उठा लिए जाएं, तो फसल को काफी हद तक बचाया जा सकता है. थोड़ी सी समझदारी और सतर्कता से किसान अपनी मेहनत और फसल दोनों को सुरक्षित रख सकते हैं. सर्दी के इस मौसम में सावधानी ही सबसे बड़ा हथियार है, जो पाले की मार से खेतों को बचा सकता है.