मध्य प्रदेश के खेतों में इन दिनों मूंग की फसल पक चुकी है, लेकिन उसके साथ ही एक बड़ा खतरा भी पनप रहा है, ऐसा खतरा जो सीधे आपकी सेहत पर वार कर सकता है. दरअसल, फसल को जल्दी सुखाने के लिए जहरीले रसायनों का इस्तेमाल किया जा रहा है. सिर्फ तीन महीने में रबी और खरीफ के बीच मूंग की फसल निकालने की लालसा में किसान पैरा-क्वाट डाइक्लोराइड जैसे घातक रसायन का छिड़काव कर रहे हैं. यह रसायन भारत में प्रतिबंधित है, फिर भी यह बाजार में खुलेआम बिक रहा है, वो भी अलग-अलग नामों से.
तीन फसलों की चाहत, जहर की राह
मध्यप्रदेश के किसान रबी और खरीफ की फसल के बीच के तीन महीनों में मूंग उगाते हैं, ताकि साल में तीन बार उत्पादन लिया जा सके. लेकिन यह फसल जल्दी काटने के चक्कर में वो इसे कृत्रिम रूप से सुखाने के लिए पैराक्वाट डाइक्लोराइड का छिड़काव करते हैं. इससे फसल तो सूखती है, लेकिन मूंग अंदर से कच्ची और जहरीली हो जाती है.
यह रसायन क्यों है खतरनाक?
पैराक्वाट डाइक्लोराइड बेहद जहरीला हर्बीसाइड है. इसकी थोड़ी-सी मात्रा ही इंसान के शरीर में पहुंच जाए तो श्वसन तंत्र, फेफड़ों और किडनी पर बुरा असर डाल सकती है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो इस जहर से फेफड़ों में फाइब्रोसिस हो सकता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है. साथ ही यह रसायन पार्किंसन और कैंसर जैसी बीमारियों की वजह बन सकता है.
2024 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एपिडेमियोलॉजी में प्रकाशित शोध के अनुसार, पार्किंसन की बीमारी के बढ़ते मामलों में इस रसायन की अहम भूमिका मानी गई है.
सरकारी नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियां
भारत में यह रसायन प्रतिबंधित है. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि यह बाजार में खुलेआम दूसरे ब्रांड नामों से बेचा जा रहा है और किसानों को यह बताया जाता है कि इससे फसल जल्दी सूखेगी और आसानी से बिकेगी. परिणामस्वरूप, किसान अनजाने में जहर खेतों में फैला रहे हैं और वही जहर हमारे घरों की थाली में पहुंच रहा है.
जमीन भी हो रही जहरीली
पैराक्वाट का असर केवल फसल तक ही सीमित नहीं है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक यह मिट्टी को भी विषैला बना देता है, जिससे उसकी उर्वरता धीरे-धीरे खत्म होती जाती है. फसल चाहे तैयार हो जाए, लेकिन खेत आने वाले वर्षों के लिए बंजर बनता जा रहा है.
मूंग का बड़ा रकबा, बड़ा खतरा
प्रदेश में करीब 14.35 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मूंग की खेती होती है और सालाना उत्पादन लगभग 20 लाख टन है. यह आंकड़ा बताता है कि अगर बड़ी संख्या में किसान इस खतरनाक रसायन का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो यह सेहत के लिए एक सामूहिक खतरा बन सकता है.