रिटायरमेंट के बाद अपनाई वैज्ञानिक खेती, किसान रामरतन ने धान उगाने में बनाया कीर्तिमान

रिटायर के बाद किसान रामरतन निकुंज ने वैज्ञानिक खेती अपनाकर धान उत्पादन में नया रिकॉर्ड बनाया. उनकी मेहनत, वर्मी ग्रिड पद्धति और सरकारी सहयोग से खेती को व्यवसायिक मॉडल का रूप मिला और किसानों के लिए प्रेरणा बनी.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 9 Sep, 2025 | 02:46 PM

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के झगरहा गांव के किसान रामरतन निकुंज ने साबित कर दिया है कि मेहनत, नई सोच और वैज्ञानिक पद्धतियों के मेल से खेती को लाभकारी और सफल व्यवसाय बनाया जा सकता है. 67 साल की उम्र में उन्होंने ग्रिड पद्धति से धान की खेती कर 106 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का रिकॉर्ड उत्पादन हासिल किया. यह उपलब्धि न सिर्फ उनकी मेहनत का नतीजा है, बल्कि प्रदेश के किसानों के लिए प्रेरणा भी है.

सेवानिवृत्ति के बाद चुनी खेती की राह

रामरतन निकुंज पहले दक्षिण पूर्वी कोलफील्ड्स लिमिटेड में फोरमेन इंचार्ज थे. साल 2018 में रिटायर होने के बाद उन्होंने फैसला किया कि अपनी जमीन पर कुछ नया प्रयोग करेंगे. पांच एकड़ भूमि पर उन्होंने खेती का मॉडल खेत बनाया और धीरे-धीरे परंपरागत खेती से हटकर आधुनिक तकनीकों को अपनाना शुरू किया. शुरुआत कतार बोनी विधि से हुई और फिर उन्होंने वर्मी ग्रिड मैथड अपनाया.

रिटायरमेंट के बाद खेती की राह चुनी.

क्या है वर्मी ग्रिड मैथड?

  • इस पद्धति में खेत को छोटे-छोटे ग्रिड में बांटकर हर हिस्से में वर्मी कम्पोस्ट यानी केचुआ खाद डाला जाता है.
  • इससे मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है.
  • पौधों को संतुलित पोषण मिलता है.
  • खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक दवाओं की जगह वीडर का इस्तेमाल होता है.
  • उत्पादन ज्यादा और लागत कम होती है.
  • इसी पद्धति से रामरतन ने 2024 में हाइब्रिड धान की खेती कर रिकॉर्ड पैदावार पाई.

106 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की ऐतिहासिक उपज

रामरतन निकुंज की मेहनत और नई तकनीक ने उन्हें प्रदेश स्तर पर पहचान दिलाई. उन्होंने प्रति हेक्टेयर 106 क्विंटल धान का उत्पादन लेकर नया रिकॉर्ड बना दिया. इतना ही नहीं, उन्होंने सुगंधित धान की किस्म देवमोगरा पर भी प्रयोग किया और अच्छे नतीजे पाए. उनका कहना है कि सही तकनीक और वैज्ञानिक सोच के साथ खेती करना अब स्टार्टअप जैसा अवसर बन गया है. खेती सिर्फ गुजारे का साधन नहीं रही, बल्कि बड़े स्तर पर व्यवसायिक मॉडल बन सकती है.

प्रशासन और कृषि विभाग का सहयोग

  • रामरतन की इस सफलता के पीछे जिला प्रशासन और कृषि विभाग का भी बड़ा योगदान है.
  • कृषि अधिकारी कंवर और विस्तार अधिकारी संजय पटेल ने उन्हें लगातार मार्गदर्शन दिया.
  • सरकार की योजनाओं से उन्हें वर्मी कम्पोस्ट, उन्नत बीज और प्रशिक्षण की सुविधाएं मिलीं.
  • नियमित निरीक्षण और तकनीकी सलाह ने उन्हें नई पद्धति अपनाने में आत्मविश्वास दिया.
  • इस सहयोग ने न सिर्फ उनकी आमदनी बढ़ाई, बल्कि उनके प्रयोग को सफल मॉडल बना दिया.

आसपास के किसानों के लिए प्रेरणा

रामरतन निकुंज अब अपने गांव और आसपास के किसानों को भी नई तकनीक से खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. वे उन्हें बताते हैं कि जैविक खाद का इस्तेमाल मिट्टी और फसलों दोनों के लिए बेहतर है. साथ ही, युवाओं को खेती को स्टार्टअप की तरह अपनाने की सलाह देते हैं. उनका मानना है कि परंपरागत तरीकों से आगे बढ़कर यदि किसान वैज्ञानिक खेती अपनाएं तो वे कम समय में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.

नई सोच से बदल रही खेती की तस्वीर

रामरतन निकुंज की कहानी यह संदेश देती है कि उम्र कभी बाधा नहीं बनती, यदि इरादा मजबूत हो. उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद नई पद्धति से खेती कर यह दिखा दिया कि खेती केवल पारंपरिक काम नहीं है, बल्कि यह भी एक आधुनिक और टिकाऊ व्यवसाय बन सकता है. उनकी सफलता से यह साफ है कि मेहनत, वैज्ञानिक तकनीक और सरकारी योजनाओं का सही इस्तेमाल कर खेती को लाभकारी बनाया जा सकता है. उनकी उपलब्धि व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत है.

 

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