Darjeeling Mandarin Oranges: जब भी संतरे की बात होती है, तो लोगों के जेहन में सबसे पहले नागपुर का नाम उभरकर सामने आता है. लोगों को लगता है कि सबसे स्वादिष्ट संतरे की खेती केवल महाराष्ट्र के नागपुर जिले में ही होती है, लेकिन ऐसी बात नहीं है. पश्चिम बंगाल में भी विश्व प्रसिद्ध ‘दार्जिलिंग मंदारिन संतरे’ की खेती होती है. यहां के ‘दार्जिलिंग मंदारिन संतरे’ की मांग केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में है. यही वजह है कि ‘दार्जिलिंग मंदारिन संतरे’ को पिछले महीने जीआई टैग मिल गया. जीआई टैग मिलते ही ‘दार्जिलिंग मंदारिन संतरे’ की खेती करने वाले किसानों की कमाई में बढ़ोतरी की उम्मीद बढ़ गई है. कहा जा रहा है कि अब किसान पहले से ज्यादा रकबे में संतरे की खेती करेंगे. तो आइए जानते हैं दार्जलिंग में उगाए जाने वाले इस संतरे की खासियत के बारे में.
दार्जिलिंग मंदारिन संतरे का स्वाद और रस भारत के किसी भी दूसरे संतरे से बेहतर होता है. यह नागपुर के संतरे से भी ज्यादा मीठा है. जीआई टैग मिलने से देश और विदेश में इसके बाजार को बढ़ावा मिलेगा, जिससे किसानों को बेहतर दाम मिल सकेंगे. पहाड़ी इलाकों में संतरे की खेती को फिर से मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार ‘मिशन संतरा’ के तहत विशेष आर्थिक मदद दे रही है. इस योजना में नए पौधे, तकनीकी मार्गदर्शन, रोग नियंत्रण और नए बाग लगाने के लिए सहायता शामिल है.
संतरे का उत्पादन 19,000 मीट्रिक टन से ज्यादा
हालांकि, इस साल अक्टूबर में भूस्खलन और बाढ़ के बावजूद इस सर्दी में दार्जिलिंग पहाड़ियों में संतरे का उत्पादन बेहतर रहने की उम्मीद है. दार्जिलिंग मंदारिन संतरे को 24 नवंबर को जीआई टैग मिला है. जिला बागवानी विभाग के अनुसार, पिछले साल पहाड़ियों में संतरे का उत्पादन 19,000 मीट्रिक टन से ज्यादा रहा था और इस साल यह आंकड़ा और बढ़ने की उम्मीद है, क्योंकि प्राकृतिक आपदा के बावजूद उत्पादन स्थिर बना रहा.
4,800 फीट की ऊंचाई पर किसान करते हैं खेती
सिलीगुड़ी से करीब 50 किलोमीटर दूर, 4,800 फीट की ऊंचाई पर स्थित सिवितार एक छोटा गांव है, जहां 150 से ज्यादा किसान दार्जिलिंग मंदारिन की खेती करते हैं. यहां के ज्यादातर पौधे करीब 10 साल पुराने हैं. जीआई टैग मिलने के बाद दार्जिलिंग मंदारिन की मांग तेजी से बढ़ी है, क्योंकि यह दूसरे संतरे की तुलना में ज्यादा रसदार और आकार में छोटा होता है. खास बात यह है कि दार्जिलिंग मंदारिन संतरे की खरीद राज्य सरकार खुद करती है. इस साल सरकार किसानों से 135 रुपये प्रति किलो की दर से संतरे की खरीद करेगी. जबकि, बाजार में 140 रुपये प्रति किलो की कीमत पर बेचा जाएगा.
जीआई टैग के लिए अगस्त 2022 में किया गया आवेदन
दार्जिलिंग मंदारिन संतरा स्थानीय संस्कृति का हिस्सा रहा है और यह पीढ़ियों से यहां की अर्थव्यवस्था में योगदान देता आया है. बड़ी बात यह है कि मंदारिन दार्जिलिंग और कलिम्पोंग की 11वीं कृषि फसल है जिसे GI टैग मिला है. इसके लिए आवेदन अगस्त 2022 में किया गया था. उत्तर बंगाल कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तुलसी शरण घिमिरे ने पूरी प्रक्रिया का नेतृत्व किया, दस्तावेज, वैज्ञानिक जानकारी और फील्ड सर्वेक्षण जुटाए. इसमें पश्चिम बंगाल स्टेट काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी और पेटेंट इंफॉर्मेशन सेंटर ने मदद की. वहीं, जीआई टैग मिलने के बाद अब किसानों को मंदारिन की खेती के बारे में और जानकारी दी जाएगी. ताकि, किसान उन्नत तकनीक का इस्तेमाल कर पाएं और सरकार से आसानी से मदद ले सकेंगे.
15 सालों में मंदारिन संतरे की खेती कम हो गई
पिछले 15 सालों में विषाणु और कीटों के हमलों के कारण दार्जिलिंग में मंदारिन संतरे की खेती कम हो गई है. अगले चरण में दार्जिलिंग और कलिम्पोंग के सभी किसानों को ‘अधिकृत उपयोगकर्ता’ के रूप में पंजीकृत किया जाएगा, ताकि वे कानूनी तरीके से GI टैग का इस्तेमाल कर सकें और अपनी उपज का सही दाम पा सकें.
GI मतलब जियोग्राफिकल इंडिकेशन होता है, जो एक एक खास पहचान वाला लेबल होता है. यह किसी चीज को उसके इलाके से जोड़ता है. आसान भाषा में कहें तो ये GI टैग बताता है कि कोई प्रोडक्ट खास तौर पर किसी एक तय जगह से आता है और वही उसकी असली पहचान है. भारत में साल 1999 में ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट’ लागू हुआ था. इसके तहत किसी राज्य या इलाके के खास प्रोडक्ट को कानूनी मान्यता दी जाती है. जब किसी प्रोडक्ट की पहचान और उसकी मांग देश-विदेश में बढ़ने लगती है, तो GI टैग के जरिए उसे आधिकारिक दर्जा मिल जाता है. इससे उसकी असली पहचान बनी रहती है और वह नकली प्रोडक्ट्स से सुरक्षित रहता है.
खबर से जुड़े रोचक आंकड़े
- दार्जिलिंग मंदारिन संतरे को 24 नवंबर 2025 को मिला जीआई टैग
- साल 2022 में जीआई के लिए किया गया था आवेदन
- पिछले साल पहाड़ियों में संतरे का उत्पादन 19,000 टन हुआ उत्पादन
- 4,800 फीट की ऊंचाई पर होती है इसकी खेती
- 150 से ज्यादा किसान कर रहे हैं इसकी खेती