पूजा सामग्री इस्तेमाल के बाद कचरा बनकर बर्बाद हो जाती थी, इसे अब रिसाइकिल करके जैविक खाद समेत अन्य उत्पादों के रूप में तैयार किया जा रहा है. मध्य प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के अनुसार महिलाएं इस कचरे से जैविक खाद के अलावा अगरबत्ती, धूपबत्ती, हवन सामग्री और कई तरह के प्राकृतिक रंग भी बनाकर आत्मनिर्भर बनी हैं. इस काम में जुटी महिलाओं की आमदनी भी बढ़ी है.
मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में बने तीर्थ स्थल श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में महिला सशक्तीकरण के लिए अनोखी पहल की गई है. महिला सशक्तीकरण के साथ-साथ पर्यावरण का भी खास खयाल रखा जा रहा है. बता दें कि यहां पर मंदिर में चढ़ाए जाने वाल फूल और पूजा सामग्री का इस्तेमाल कर महिलाएं कई जरूरी उत्पादों को तैयार कर रही हैं. जिससे न केवल पर्यावरण सुधर रहा है बल्कि महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन रही हैं. ये पहल मंदिर ट्रस्ट ने जिला प्रशासन और ‘पुष्पांजलि इकोनिर्मित’संस्था की साझेदारी से शुरु की है.
महिलाएं बना रहीं प्राकृतिक खाद और रंग
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में हर दिन चढ़ाए जाने फूल और पूजा की सामग्री को इकट्ठा कर मंदिर ट्रस्ट स्थानीय महिला सहायता समूहों को दे देता है. इन समूहों से जुड़ी महिलाएं फूल और पूजा की सामग्री को रिसाइकल करके नए उत्पाद बनाती हैं. बता दें कि ‘पुष्पांजलि इकोनिर्मित’ संस्था इन महलाओं को तकनीकी ट्रेनिंग, मशीनें और जरूरी मदद देती है. इसी की मदद से ये महिलाएं मंदिर से मिलने वाली सामग्री से अगरबत्ती, धूपबत्ती, हवन सामग्री और यहां तक कि प्राकृतिक खाद और रंग भी बनाती है
स्थानीय बाजारों में उपलब्ध हैं ये उत्पाद
स्व-सहायता समूह की महिलाएं मंदिर से मिलने वाले सामान से जो उत्पाद बनाती हैं वो न केवल मंदिर परिसर बल्कि जिले के स्थानीय बाजारों में भी लोगों के लिए उपलब्ध हैं. इनकी बिक्री से महिलाओं की आमदनी में बढोतरी हो रही है. रिसाइकल्ड उत्पाद बनाकर ये महिलाएं केवल खुद को आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि पर्यावरण को भी सुरक्षित करने का काम कर रही हैं. मंदिर में चढ़ावे के फूलों को भगवान का प्रसाद मानकर उपयोगी संसाधन में बदलकर यह मॉडल ‘स्वच्छ भारत मिशन’ को भी सशक्त रूप से समर्थन दे रहा है.
जिला प्रशासन का है पूरा समर्थन
मंदिर ट्रस्ट और ‘पुष्पांजलि इकोनिर्मित’ संस्था की इस पहल को जिला प्रशासन का भी पूरा समर्थन मिला है. श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में जिस तरह महलिाएं इस्तेमाल की गई सामग्री को दोबार से एक नए उत्पाद का रूप दे रही हैं और आमदनी कर रही हैं. वह इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि अगर कोशिश की जाए तो महिलाएं सच में नारी शक्ति का स्वरूप हैं. इस पहल से यह भी साबित हो गया कि आस्था और पर्यावरण दोनों साथ-साथ चल सकते हैं.