हिमालय की बर्फ पर मंडरा रहा है काले कार्बन का खतरा, पिघलने लगे ग्लेशियर

हालिया अध्ययन से पता चला है कि वर्ष 2000 से 2023 के बीच हिमालय की बर्फीली सतह का औसत तापमान करीब 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है. जहां पहले यह तापमान -11.27°C हुआ करता था, अब यह घटकर -7.13°C रह गया है.

नई दिल्ली | Updated On: 31 May, 2025 | 01:08 PM

सोचिए, वो हिमालय जिसकी ऊंचाइयों पर बर्फ की सफेद चादरें सालों-साल तक नहीं पिघलती थीं, आज गर्म हो रही हैं. और इसके पीछे सिर्फ सूरज की तपिश नहीं, बल्कि इंसानी गतिविधियों से निकलने वाला “काला कार्बन” है. हाल ही में दिल्ली की रिसर्च संस्था Climate Trends की एक रिपोर्ट सामने आई है, जो बताती है कि पिछले 23 वर्षों में हिमालय की बर्फीली सतह का औसत तापमान 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है. और इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है Black Carbon, यानी काला कार्बन.

काला कार्बन क्या है और क्यों है खतरनाक?

काला कार्बन धुएं में मौजूद एक महीन कण होता है, जो बायोमास (जैसे लकड़ी या फसल के अवशेष) जलाने, गाड़ियों से निकलते धुएं और कोयले जैसे जीवाश्म ईंधनों से बनता है. जब यह कण बर्फ पर जमता है, तो उसकी सफेदी कम हो जाती है, जिससे बर्फ सूरज की किरणों को पहले की तरह परावर्तित नहीं कर पाती और खुद गर्म होने लगती है. जिसकी वजह से बर्फ तेजी से पिघलने लगती है और ग्लेशियर सिकुड़ने लगते हैं.

दो दशकों में 4°C बढ़ा तापमान

हालिया अध्ययन से पता चला है कि वर्ष 2000 से 2023 के बीच हिमालय की बर्फीली सतह का औसत तापमान करीब 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है. जहां पहले यह तापमान -11.27°C हुआ करता था, अब यह घटकर -7.13°C रह गया है. इस बदलाव का सबसे ज्यादा असर पूर्वी हिमालय में देखा गया है, जहां काले कार्बन (Black Carbon) का स्तर सबसे अधिक पाया गया. काले कार्बन के जमाव से बर्फ की परावर्तन क्षमता (albedo) कम हो रही है, जिससे बर्फ अधिक तेजी से सूरज की गर्मी को सोखती है और जल्दी पिघलती है. इसका सीधा असर हिमालय की नदियों जैसे सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र पर पड़ रहा है, जिनका जलस्तर और प्रवाह भविष्य में संकट में पड़ सकता है.

ग्लेशियर पिघलने से क्या होगा?

ICIMOD के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ. फारूक आजम बताते हैं, “2022 ग्लेशियरों के लिए सबसे बुरा साल रहा. हिमाचल का छोटा शिग्री ग्लेशियर दो मीटर तक पिघल गया. और अब 2024 में तापमान 1.5°C की उस सीमा को पार कर गया है, जिसे हम जलवायु संकट की चेतावनी मानते हैं.”

पिघलते ग्लेशियरों का क्या मतलब है?

ग्लेशियरों का पिघलना सिर्फ बर्फ के खत्म होने की कहानी नहीं है, बल्कि ये हमारे जीवन से जुड़ी एक गंभीर चेतावनी है. जैसे-जैसे बर्फ तेजी से पिघलती है, नदियों में बाढ़ आने का खतरा बढ़ जाता है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान हो सकता है. पीने और सिंचाई के लिए पानी की कमी होना तय है, क्योंकि हिमालय की नदियां करोड़ों लोगों की जल-जरूरतों को पूरा करती हैं और सबसे बड़ी बात, किसानों, मछुआरों और जल-आधारित आजीविका पर निर्भर करोड़ों लोगों की जिंदगी इस संकट से प्रभावित हो सकती है. यानि, अगर ग्लेशियर यूं ही पिघलते रहे, तो आने वाले सालों में हम एक अभूतपूर्व जल संकट की ओर बढ़ सकते हैं.

क्या है समाधान?

अच्छी बात ये है कि काला कार्बन ज्यादा देर वायुमंडल में नहीं टिकता है, ये कुछ दिन या हफ्तों में खत्म हो जाता है. यानी अगर इसके उत्सर्जन को रोका जाए, तो कुछ ही सालों में इसका असर कम किया जा सकता है.

कैसे कम करें Black Carbon?

  • रसोई में स्वच्छ ईंधन (LPG) का इस्तेमाल
  • फसल जलाने की जगह वैकल्पिक तकनीक अपनाना
  • डीजल वाहनों की जगह इलेक्ट्रिक या CNG वाहन
  • औद्योगिक प्रदूषण पर सख्त निगरानी

Climate Trends की निदेशक आरती खोसला कहती हैं, “काले कार्बन को कम करना जलवायु संकट से निपटने का तेज और असरदार तरीका है. इससे न सिर्फ बर्फ बचेगी, बल्कि हमारी हवा भी साफ होगी.” यह कोई दूर की बात नहीं है. काला कार्बन हमारे चूल्हों, खेतों और गाड़ियों से निकलकर सीधे हिमालय की बर्फ पर असर डाल रहा है. और अगर आज कदम नहीं उठाए, तो कल हमारे पास पीने को पानी भी नहीं बचेगा. इसलिए समय है सोच बदलने का, तकनीक अपनाने का और प्रकृति को बचाने का.

Published: 31 May, 2025 | 01:07 PM