Pulse cultivation: पंजाब, हरियाणा और पश्चमी उत्तर प्रदेश में धान की कटाई शुरू हो गई है, लेकिन बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में फसल पकने के अंतिम चरण में है. यानी कटाई शुरू होने में अभी कम से कम 20 दिन लगेंगे. इसके बाद कि किसान रबी फसल की बुवाई करने की तैयार में लग जाएंगे. ऐसे में किसानों को धान कटाई के बाद रबी बुवाई करने के लिए बहुत कम सयम मिलता है. लेकिन अगर किसान पारंपरिक तरीके से उतरा फसल की बुवाई कर सकते हैं, तो कम लागत में डबल मुनाफा होगा.
दरअसल, उतेरा फसल एक पारंपरिक खेती का तरीका है, जिसमें धान की खड़ी फसल में ही अगली फसल यानी रबी की फसल के बीज छिड़के जाते हैं. यह बीज धान की कटाई से करीब 10 से 15 दिन पहले खेत में डाले जाते हैं. धान के खेत में उस समय मिट्टी में नमी रहती है, जिसका उपयोग बीज के अंकुरण (उगने) के लिए किया जाता है. जब तक धान की फसल काटी जाती है, तब तक ये बीज अंकुरित होकर उगने लगते हैं और खेत में नई फसल तैयार होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
इन फसलों की करेंगे खेती
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, उतेरा विधि से किसान धान की खड़ी फसल में दलहनी और तिलहनी फसलें उगा सकते हैं. इसके अलावा किसान तिल, उड़द, मूंग, ग्वार, अलसी जैसी दूसरी फसलें भी इस तकनीक से बो सकते हैं. इन फसलों को बोने के लिए खेत की जुताई या ज्यादा तैयारी की जरूरत नहीं होती, बस सही समय पर बीज का छिड़काव करना होता है.
बढ़ जाएगी खेत की उर्वरा शक्ति
उतेरा फसल तकनीक अपनाने से किसान अपने खेत की उर्वरा शक्ति (fertility) को बढ़ा सकते हैं. दरअसल, धान एक अनाज वाली फसल है. जबकि उतेरा विधि में बोई जाने वाली दलहनी फसलों में राइजोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है. यह जीवाणु वातावरण से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी में मिलाता है, जिससे मिट्टी ज्यादा उपजाऊ बनती है. इससे खेत में फसल विविधता आती है और मिट्टी की गुणवत्ता सुधरती है.
उतेरा विधि से खेती के फायदे
उतेरा विधि खासतौर पर उन क्षेत्रों में बहुत उपयोगी है जहां सिंचाई के साधन सीमित हैं. इस तकनीक से मिट्टी का क्षरण (erosion) कम होता है और फसलों की उत्पादकता बेहतर होती है. साथ ही खेती की लागत भी घटती है और किसानों की आय में बढ़ोतरी होती है. इस तरह उतेरा विधि एक सरल, सस्ती और टिकाऊ खेती का तरीका है, जो कम संसाधनों में भी अच्छे परिणाम दे सकती है.