आज के समय में किसान और पशुपालक अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए अलग-अलग तरह के विकल्प तलाश रहे हैं. गाय, भैंस और मुर्गी पालन तो आम बातें हैं, लेकिन अब बत्तख पालन भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. यह व्यवसाय कम निवेश और कम मेहनत में बेहतरीन मुनाफा देता है. यही कारण है कि किसान ही नहीं, बल्कि नौकरीपेशा लोग भी इसे अपनाने लगे हैं.
क्या है बत्तख पालन?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बत्तख पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसे दुनिया के कई देशों में बड़े पैमाने पर किया जाता है. बत्तखों की कई नस्लें होती हैं और इन्हें अंडे और मांस दोनों के लिए पाला जाता है. खास बात यह है कि बत्तखों को पालने के लिए हमेशा पानी की जरूरत नहीं होती. इन्हें मुर्गियों और अन्य पक्षियों की तरह घर के अंदर भी आसानी से पाला जा सकता है. इससे पालन-पोषण का खर्च कम होता है और आमदनी ज्यादा मिलती है.
बत्तख पालन के फायदे
बत्तख पालन के सबसे बड़े फायदे में से एक यह है कि इन्हें पालने के लिए महंगे आश्रय या बड़े फार्म की जरूरत नहीं होती. झोपड़ी जैसी साधारण जगह पर भी इन्हें आसानी से रखा जा सकता है. बत्तख कठोर और मजबूत स्वभाव वाले पक्षी होते हैं, इसलिए मौसम में बदलाव का ज्यादा असर इन पर नहीं पड़ता. इन्हें महिलाएं और बुजुर्ग भी आसानी से संभाल सकते हैं क्योंकि इनकी देखभाल बहुत आसान है.
इनकी खासियत यह भी है कि बत्तखें अधिकतर सुबह और रात के समय अंडे देती हैं, जिससे अंडों का संग्रह करना सरल हो जाता है. कम जगह में भी इन्हें पाला जा सकता है और अन्य पोल्ट्री पक्षियों की तुलना में ये तेजी से बढ़ती हैं. साथ ही, बत्तखों में बीमारियां कम होती हैं और मृत्यु दर भी बहुत कम होती है, जिससे पालन करने वालों को नुकसान का खतरा बहुत कम रहता है.
चारा और भोजन की व्यवस्था
बत्तख पालन में चारा की समस्या भी नहीं होती क्योंकि यह पक्षी लगभग हर तरह का भोजन कर लेते हैं. वे कीड़े-मकोड़े, घोंघे, कवक और खेतों में मौजूद छोटे-छोटे जीव खा जाते हैं, जिससे किसानों को खेतों में कीट नियंत्रण में भी मदद मिलती है. रसोई का बचा हुआ खाना, चावल और सब्जियों के टुकड़े भी ये बड़े चाव से खा लेते हैं. अगर अंडा उत्पादन बढ़ाना हो तो मकई, फलियां और अन्य अनाज के साथ पौष्टिक आहार देना फायदेमंद होता है. खास बात यह है कि ये पानी में ही नहीं बल्कि जमीन पर भी आराम से भोजन कर लेते हैं.
बत्तख पालन की प्रणालियां
बत्तख पालन कई तरीकों से किया जाता है. सबसे साधारण प्रणाली में बत्तखों को सस्ते बांस या टोकरियों के बने घरों में रखा जाता है और अंडे देने के बाद खुले मैदान या पानी के स्रोतों के पास चरने के लिए छोड़ दिया जाता है. वहीं व्यापक प्रणाली में अंडे सुबह एकत्र किए जाते हैं और उसके बाद बत्तखों को धान के खेतों या जंगलों में छोड़ दिया जाता है. इसके अलावा गहन प्रणाली भी होती है जिसमें बत्तखों को निर्धारित आहार दिया जाता है और उनकी देखभाल व्यवस्थित तरीके से की जाती है. इन तरीकों में से किसे अपनाना है, यह किसान अपनी जरूरत और सुविधा के हिसाब से तय करते हैं.
बत्तखों की नस्लें और उनकी खासियत
बत्तख पालन शुरू करने से पहले नस्ल का चुनाव बेहद जरूरी है. अंडा उत्पादन के लिए भारतीय बतख और खाकी कैंपबेल नस्ल बहुत लोकप्रिय हैं क्योंकि ये साल भर में बड़ी संख्या में अंडे देती हैं. वहीं मांस उत्पादन के लिए मस्कोवी, आयल्सबरी और स्वीडन नस्लें काफी मशहूर हैं. कुछ नस्लें ऐसी भी हैं जो अंडे और मांस दोनों के लिए उपयुक्त होती हैं, जिन्हें दोहरे उद्देश्य वाली नस्ल कहा जाता है. किसानों के लिए यह नस्लें और भी फायदेमंद साबित होती हैं क्योंकि एक ही पक्षी से उन्हें दोनों तरह का लाभ मिलता है.
उत्पादों की बढ़ती मांग
ग्रामीण इलाकों में बत्तख के अंडों की बहुत ज्यादा मांग है. कई लोग इन्हें मुर्गी के अंडों से ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि इनका स्वाद अलग होता है और पोषण भी अच्छा मिलता है. वहीं मांस के रूप में भी बत्तख की खपत लगातार बढ़ रही है. यही कारण है कि बाजार में बत्तख के उत्पाद अच्छे दाम पर बिकते हैं. व्यावसायिक स्तर पर बत्तख पालन करने वालों को इससे लगातार आय का स्रोत मिल जाता है.
किसानों के लिए रोजगार और मुनाफा
बत्तख पालन न सिर्फ मुनाफा देता है, बल्कि स्थानीय रोजगार का भी अच्छा साधन है. अगर कोई किसान व्यावसायिक स्तर पर यह काम शुरू करता है तो उसे स्थायी और मौसमी मजदूरों की भी जरूरत पड़ती है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं. सरकार भी कई जगहों पर बत्तख पालन को प्रोत्साहित कर रही है और प्रशिक्षण उपलब्ध करा रही है. इस व्यवसाय की सबसे बड़ी खूबी यह है कि कम निवेश, कम मेहनत और कम जगह में भी किसान और पशुपालक तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं.