किसानों के लिए सुनहरा मौका! बकरी पालन से हर साल 6 गुना तक बढ़ सकती है आमदनी

बकरी पालन अब सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि एक आधुनिक व्यवसाय बन गया है. वैज्ञानिक तरीके से अगर किसान पालन करें, तो उनकी आमदनी कई गुना बढ़ सकती है. सरकार भी इस दिशा में नई योजनाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों से किसानों को प्रोत्साहित कर रही है.

Kisan India
नोएडा | Published: 2 Nov, 2025 | 06:56 PM

Goat Farming : अगर आप खेती के साथ कोई ऐसा काम करना चाहते हैं, जिससे पूरे साल स्थायी आमदनी हो, तो बकरी पालन आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प है. पहले लोग बकरियां केवल दूध और मांस के लिए पारंपरिक तरीके से पालते थे, लेकिन अब इसका रूप वैज्ञानिक व्यवसाय (Scientific Goat Farming) बन गया है. अगर किसान बकरी पालन को वैज्ञानिक विधि से करें तो उन्हें पारंपरिक तरीके की तुलना में 5 से 6 गुना तक अधिक मुनाफा हो सकता है. आइए जानते हैं, बकरी पालन को वैज्ञानिक तरीके से कैसे किया जा सकता है.

क्यों फायदेमंद है वैज्ञानिक बकरी पालन

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बकरी पालन  देश में तेजी से बढ़ता हुआ व्यवसाय है, क्योंकि बकरी के दूध, मांस और गोबर की मांग हमेशा बनी रहती है. आज के दौर में बाजार में बकरी के मांस की कीमत 800 से 1000 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुकी है, जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (ICAR-CIRG) के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसान कम से कम 100 बकरियां पालते हैं और वैज्ञानिक तरीके अपनाते हैं, तो उनकी आय दोगुनी नहीं, बल्कि कई गुना बढ़ सकती है. इस पद्धति में बकरियों की सेहत बेहतर रहती है, बच्चों की मृत्यु दर घटती है और दूध व मांस उत्पादन दोनों में सुधार होता है.

सही नस्ल का चयन सफलता की कुंजी

वैज्ञानिक बकरी पालन की शुरुआत अच्छी नस्ल से होती है. बकरी स्वस्थ, मजबूत और स्थानीय जलवायु  के अनुसार होनी चाहिए. भारत में कई उन्नत नस्लें हैं जैसे जमुनापारी, सिरोही, बरबरी, बीटल और ब्लैक बंगाल, जो अधिक दूध और मांस देती हैं. नस्ल चुनते समय ध्यान दें कि बकरी की ऊंचाई और वजन सही हो, उसका प्रजनन चक्र (दो ब्यातों के बीच अंतराल) छोटा हो और जुड़वा बच्चों को जन्म देने की दर (twinning rate) अधिक हो. वैज्ञानिकों का कहना है कि सही नस्ल चुनने से उत्पादन क्षमता में 40 फीसदी तक बढ़ोतरी हो सकती है.

संतुलित आहार से बढ़ेगा उत्पादन

बकरी पालन में सबसे महत्वपूर्ण चीज है संतुलित पोषण  (Balanced Nutrition). नवजात बच्चों को जन्म के 30 मिनट के भीतर मां का पहला दूध (खीस) जरूर पिलाना चाहिए, इससे उनमें जीवनभर रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है. 15 दिन के बाद बच्चों को हरा चारा और सूखा मिश्रण देना शुरू करें. तीन महीने बाद मां का दूध छुड़ा दें. वयस्क बकरियों और दूध देने वाली बकरियों को प्रतिदिन 250 से 500 ग्राम रातब मिश्रण देना चाहिए. इस मिश्रण में मक्का, जौ, गेहूं, मूंगफली की खल, अलसी और खनिज लवण शामिल होने चाहिए. हरे चारे के साथ सूखा चारा देना भी जरूरी है. आहार अचानक न बदलें और अधिक गीला चारा  देने से बचें, क्योंकि इससे पाचन समस्या हो सकती है.

बकरियों के लिए साफ और सुरक्षित आवास

स्वस्थ बकरी पालन के लिए उनका घर यानी शेड (Goat Shelter) साफ, हवादार और सुरक्षित होना चाहिए. पशु गृह में धूप और ताजी हवा का आना जरूरी है. सर्दियों में ठंड से और बरसात में नमी से बचाने की व्यवस्था करें. फर्श पर सूखी घास या पुआल बिछाएं और हर तीन दिन में बदलते रहें ताकि बकरियां गंदगी से दूर रहें. छोटे मेमनों, गर्भवती और प्रजनन वाले बकरे को अलग-अलग स्थानों पर रखें. एक बकरी को लगभग 3-4 वर्ग मीटर खुली जगह और 1-2 वर्ग मीटर छायादार क्षेत्र की आवश्यकता होती है. शेड की दीवारें ऐसी हों जो हवा आने-जाने दें, लेकिन ठंडी हवाओं से बचाव करें.

स्वास्थ्य और बाजार प्रबंधन से मिलेगा दोगुना लाभ

वैज्ञानिक बकरी पालन में स्वास्थ्य प्रबंधन बेहद जरूरी है. साल में दो बार कृमिनाशक दवा दें. बीमार बकरियों  को तुरंत अलग करें और समय पर PPR, FMD, ET और Pox जैसी बीमारियों के टीके लगवाएं. गर्मी के मौसम में बकरियों को ब्यूटाक्स (1 फीसदी) के घोल से नहलाएं ताकि बाहरी कीड़े न लगें. हर महीने मल परीक्षण कराएं ताकि किसी छिपी बीमारी का समय रहते पता चल सके. बाजार में बेचने के लिए बकरियों को उनके वजन और उम्र के अनुसार बेचना चाहिए. मांस के लिए पाले गए नरों को 10-12 महीने की उम्र में बेचना सबसे फायदेमंद रहता है. त्योहारी सीजन जैसे ईद या दुर्गा पूजा के समय बकरियों की मांग और दाम दोनों बढ़ जाते हैं. अगर किसान संगठित होकर बेचें तो उन्हें थोक में बेहतर कीमत मिल सकती है.

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