वैश्विक झींगा बाजार से भारत के लिए एक राहत भरी और उत्साहजनक खबर सामने आई है. लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय कीमतों के दबाव और कड़ी प्रतिस्पर्धा से जूझ रहे भारतीय झींगा उद्योग के लिए हालात अब धीरे-धीरे अनुकूल होते दिख रहे हैं. InCred Equities की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक कीमतों में संतुलन लौटने और प्रमुख प्रतिस्पर्धी देशों की लागत बढ़ने से भारत को एक बार फिर प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलने की संभावना है. विशेषज्ञ मानते हैं कि सबसे कठिन दौर अब पीछे छूट रहा है.
वैश्विक कीमतों में संतुलन से बदले हालात
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में अंतरराष्ट्रीय झींगा बाजार में कीमतों का संतुलन बिगड़ा हुआ था. इसका सबसे बड़ा कारण कुछ देशों द्वारा कम लागत पर बड़े पैमाने पर आपूर्ति करना रहा. इससे भारतीय किसानों और निर्यातकों को भारी दबाव का सामना करना पड़ा. लेकिन अब रिपोर्ट संकेत देती है कि यह असंतुलन धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. वैश्विक मांग और आपूर्ति के बीच बेहतर तालमेल बनने लगा है, जिससे कीमतें स्थिर हो रही हैं और भारत जैसे देशों को फिर से मजबूत स्थिति मिल रही है.
इक्वाडोर का लागत लाभ हुआ कमजोर
रिपोर्ट में बताया गया है कि बीते वर्षों में इक्वाडोर ने झींगा बाजार में आक्रामक रणनीति अपनाई थी. वहां बिजली सब्सिडी, टैक्स में छूट और सस्ती फंडिंग के सहारे उत्पादन तेजी से बढ़ाया गया. इससे अंतरराष्ट्रीय कीमतें नीचे चली गईं और भारतीय झींगा उद्योग की प्रतिस्पर्धा क्षमता प्रभावित हुई. अब इक्वाडोर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने से वहां सरकार को कई सब्सिडी वापस लेनी पड़ी हैं. इसका सीधा असर उत्पादन लागत पर पड़ा है और वहां की फार्म-गेट कीमतें भारत के करीब आ गई हैं. इससे भारत पर बना सबसे बड़ा दबाव कम हुआ है.
भारतीय झींगा उद्योग की बढ़ती मजबूती
InCred Equities की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय झींगा उद्योग अब पहले से कहीं ज्यादा संगठित और मजबूत है. बड़े पैमाने पर उत्पादन, बेहतर गुणवत्ता नियंत्रण, ट्रेसेबिलिटी सिस्टम और प्रोसेसिंग क्षमता ने भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भरोसेमंद देश बना दिया है. कीमतों में संतुलन लौटने से भारत की यह संरचनात्मक मजबूती अब बेहतर नतीजे देने लगी है.
संभावित व्यापार समझौतों से नए अवसर
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्रस्तावित भारत-यूरोपीय यूनियन और भारत-यूके व्यापार समझौते झींगा उद्योग के लिए नए दरवाजे खोल सकते हैं. अब तक इन बाजारों में ऊंचे टैरिफ और सख्त नियम भारतीय निर्यातकों के लिए चुनौती बने हुए थे. अगर ये समझौते होते हैं तो प्रीमियम और वैल्यू-एडेड झींगा उत्पादों में भारत की पहुंच बढ़ेगी और अमेरिका पर निर्भरता भी कम होगी.
अमेरिकी बाजार में भारत की मजबूत पकड़
अमेरिका अब भी भारत का सबसे बड़ा झींगा बाजार है. रिपोर्ट के मुताबिक, गर्म पानी के झींगे के मामले में अमेरिका के पास भारत का कोई मजबूत विकल्प नहीं है. इससे वहां भारत की हिस्सेदारी सुरक्षित बनी हुई है और कीमत तय करने की क्षमता भी मजबूत रहती है.
मुनाफे और निर्यात में सुधार के संकेत
बीते वर्षों में झींगा फीड और कच्चे माल की लागत बढ़ने से किसानों और कंपनियों के मुनाफे पर असर पड़ा था. अब कच्चे माल की कीमतों में स्थिरता आने से मार्जिन में सुधार दिख रहा है. निर्यात वॉल्यूम भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है. रिपोर्ट का अनुमान है कि आने वाले समय में भारत वैश्विक झींगा बाजार में फिर से एक प्रमुख और भरोसेमंद सप्लायर के रूप में उभरेगा.