राजस्थान के श्रीगंगानगर में देशभर के उम्दा नस्ल के करोड़ों की कीमत वाले घोड़े अश्व मेला में पहुंच रहे हैं. राष्ट्रीय स्तर के अश्व मेला में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश समेत अन्य राज्यों से कई नस्लों के घोड़े पहुंचे हैं. मेला में बकरियों, मुर्गियों और कुत्तों को लाया गया है और उनकी खरीद बिक्री शुरू हो चुकी है. 30 बीघा क्षेत्र में फैले मेले में घोड़ों समेत अन्य पशुओं की देखरेख के लिए खास टेंट बनाए गए हैं. साथ ही पशु चिकित्सकों की टीम भी तैनात की गई है.
देशभर के अश्व प्रेमियों का संगम है 23वां अश्व मेला
देशभर के अश्व प्रेमियों का संगम बना श्रीगंगानगर का अश्व मेला कई उम्दा नस्ल के घोड़ों और अन्य पशुओं की वजह से चर्चा में है. महाराणा प्रताप अश्व पालक समिति के तत्वावधान में सूरतगढ़–पदमपुर बाइपास पर शुरू हुआ 23वां अश्व मेला देशभर के घोड़ा प्रेमियों के लिए किसी महोत्सव से कम नहीं है. मेला में राज विराट नाम का घोड़ा, बाहुबली घोड़ा से लेकर अरमान घोड़ा समेत अन्य करोड़ों रुपये की कीमत वाले घोड़ों को देखने के लिए लोंगों की भीड़ जुट रही है. 11 नवंबर को रोमांचक घुड़दौड़ व अश्व नृत्य प्रतियोगिता होगी.
कई राज्यों से उम्दा नस्लों के घोड़ा-घोड़ी पहुंचे
समिति के मुख्य संरक्षक हरजीत सिंह बराड़ ने प्रेस वार्ता में बताया कि पहले ही दिन रणदीप सिंह बराड़ की घोड़ी नखरो और घोड़ा राज विराट ने दर्शकों का दिल जीत लिया है. वहीं, मेले में बाहुबली घोड़ा, जोरा, दरया, मुराद और अमृतसर से आया बिलावल जैसे नामी घोड़े अपने शाही ठाठ से लोगों को चकित कर रहे हैं. इकबाल सिंह भंडाल का घोड़ा करतार भी विशेष ध्यान खींच रहा है. अश्व मेला में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व हिमाचल सहित कई राज्यों से आए अश्व पालक अपने नायाब नस्लों के घोड़े-घोड़ियां लेकर पहुंचे हैं. मेले में नुकरा नस्ल, मारवाड़ी, चम्बी और सिंधी नस्लों के घोड़े लोगों के लिए मुख्य आकर्षण बने हुए हैं.
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उम्दा किस्मों के घोड़े पहुंचे.
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक की नस्ल के घोड़ों की डिमांड
हरजीत सिंह बराड़ ने कहा कि मारवाड़ी नस्ल भारतीय गौरव की पहचान है. महाराणा प्रताप का चेतक इसी नस्ल का था, जो आज भी शौर्य और वफादारी की मिसाल है. उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में और भी प्रसिद्ध नस्लों के अश्व मेले में पहुंचेंगे. उन्होंने कहा कि करीब 30 बीघा क्षेत्र में फैले इस विशाल मेले में 150 से अधिक टेंट लगाए गए हैं, जहां हर घोड़ों के लिए सुरक्षित और आरामदायक व्यवस्था की गई है. हर टेंट के सामने ओपन एरिया बनाया गया है ताकि लोग घोड़ों की चाल, नृत्य और स्वभाव को नजदीक से देख सकें.
नुकरा नस्ल के घोड़े की मांग, मर्गे-बकरियों और कुत्तों की बिक्री
रणदीप सिंह बराड़ ने कहा कि इस बार नुकरा नस्ल की मांग सबसे अधिक है. उन्होंने बताया कि पुष्कर, मुक्तसर और श्रीगंगानगर देश के प्रमुख अश्व मेलों में गिने जाते हैं और श्रीगंगानगर का यह मेला अब राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुका है. मेले में घोड़ों के साथ-साथ मुर्गे, बकरियां, श्वान की खरीद-फरोख्त भी हो रही है. साथ ही, घोड़ों की सजावट के घुंघरू, रंगीन रस्सियां, माला, नाल और सीटों की स्टॉलें भी लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही हैं.

उम्दा नस्ल के घोड़े.
अश्व नृत्य-चाल और दौड़ प्रतियोगिता होगी
11 नवंबर को मेले का भव्य समापन समारोह होगा, जिसमें अश्व चाल, नृत्य, नस्ल और घुड़दौड़ प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी. विजेता अश्व मालिकों को नकद पुरस्कार और प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा. यह मेला केवल व्यापार का मंच नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा, ग्रामीण संस्कृति और चेतक की विरासत का उत्सव बन गया है, जहां हर कदम पर राजस्थान की शौर्यगाथा झलकती है. घोड़े काफी महंगे होते हैं आने जाने पर अक्सर पानी की कमी हो जाती है और मौसम भी परिवर्तनशील है इसलिए अश्व पलकों को हर प्रकार की सहायता के लिए डॉक्टर मौजूद हैं.