अनाज उद्योग पर गहराया संकट, रूस में 35,000 किसान हुए दिवालिया, जानिए क्या है बड़ी वजह

कई किसान अब गेहूं की खेती छोड़कर सूरजमुखी और अन्य लाभकारी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं. हालांकि, यह बदलाव जोखिम भरा भी है क्योंकि लगातार एक ही फसल उगाने से मिट्टी की उर्वरता घट सकती है और कीट व रोगों का खतरा बढ़ सकता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 23 Sep, 2025 | 09:58 AM

Russia Grain Crisis: रूस के अनाज उद्योग पर संकट के बादल गहरे होते जा रहे हैं. पिछले तीन सालों में लगातार गिरावट के बाद गेहूं का उत्पादन कम हुआ है और निर्यात में असामान्य कमी देखने को मिली है. रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले पांच सालों में लगभग 35,000 किसान दिवालिया हो चुके हैं, जिन पर बढ़े हुए निर्यात शुल्क, इनपुट लागत में तेजी और रूबल के उच्च मूल्य का दबाव पड़ा है.

कृषि संकट के कारण

कोविड-19 महामारी के दौरान घरेलू खाद्य कीमतों को स्थिर करने के लिए लगाए गए निर्यात शुल्क को कई बार अस्थायी उपाय के रूप में लागू किया गया था, लेकिन यह अब तक बना हुआ है. इसके चलते किसान भारी वित्तीय दबाव में हैं. 2024 में, इन निर्यात शुल्कों से संघीय बजट को लगभग 133.9 अरब रूबल ($1.60 बिलियन) की आय हुई, और 2025 में यह बढ़कर 187 अरब रूबल ($2.37 बिलियन) तक पहुंचने का अनुमान है.

साथ ही, ईंधन, ऊर्जा और उर्वरक की बढ़ती कीमतों के कारण उत्पादन लागत पिछले एक वर्ष में 20 फीसदी बढ़ गई, जबकि थोक अनाज की कीमतें स्थिर रहीं. मजबूत रूबल ने घरेलू कीमतों को और दबाया, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में रूस के अनाज की प्रतिस्पर्धात्मकता कम हुई.

किसानों का रुख बदलना

कई किसान अब गेहूं की खेती छोड़कर सूरजमुखी और अन्य लाभकारी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं. हालांकि, यह बदलाव जोखिम भरा भी है क्योंकि लगातार एक ही फसल उगाने से मिट्टी की उर्वरता घट सकती है और कीट व रोगों का खतरा बढ़ सकता है.

निर्यात पर असर

रूस के अनाज निर्यात में भारी गिरावट आई है. मई 2025 में रूस ने केवल 18 देशों को अनाज निर्यात किया, जबकि पिछले वर्ष यह संख्या 50 थी. इस साल गेहूं का निर्यात लगभग 41 मिलियन टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल 55 मिलियन टन था. इससे रूस की वैश्विक निर्यात में हिस्सेदारी 28 फीसदी से घटकर 22 फीसदी हो गई है.

अन्य प्रभावित क्षेत्र

कृषि उपकरणों की बिक्री में भी गिरावट आई. 2024 में, रोस्टसेलमाश जैसी कंपनियों ने केवल 3,900 हार्वेस्टर बेचे, जो पिछले दशक में सबसे कम संख्या है. यह स्थिति उद्योग को राज्य समर्थन और संसाधनों में कटौती के लिए मजबूर कर रही है.

भारत को फायदा

रूस के इस संकट का भारत के लिए अवसर भी है. भारत गेहूं के निर्यात और घरेलू आपूर्ति को बढ़ाकर इस कमी को पूरा कर सकता है. इससे भारतीय किसानों और अनाज व्यापारियों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में नए अवसर मिल सकते हैं. सूरजमुखी और अन्य तेलयुक्त फसलों की बढ़ती मांग के कारण भारत अपनी कृषि उत्पादन विविधता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को मजबूत कर सकता है.

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