झींगा व्यापार पर मंडराया अमेरिकी टैरिफ का खतरा, 40 काउंट के रेट 365 रुपये किलो तक गिरे

बीते हफ्ते झींगा की फार्म गेट कीमतों में 6 फीसदी से 19 फीसदी तक की गिरावट आई है. सबसे ज्यादा असर अमेरिका को भेजी जाने वाली झींगा किस्मों पर पड़ा है. सबसे आम 40 काउंट के झींगे की कीमत 365 रुपये प्रति किलो तक गिर गई है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 8 Aug, 2025 | 03:33 PM

भारत के झींगा उत्पादक किसानों के लिए यह समय चुनौती भरा है. झींगा यानी प्रॉन की कीमतों में बीते कुछ दिनों में जबरदस्त गिरावट आई है. वजह है अमेरिका द्वारा भारी टैरिफ (शुल्क) लगाना. इस एक कदम के डर ने ही पूरे झींगा बाजार को हिला कर रख दिया है.

झींगा भारत का सबसे अहम समुद्री निर्यात उत्पाद है और इसकी खेती से लाखों लोग जुड़े हुए हैं. लेकिन अब कीमतों में गिरावट से उनकी आमदनी पर असर पड़ रहा है.

कीमतें क्यों गिरीं?

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीते हफ्ते झींगा की फार्म गेट कीमतों में 6 फीसदी से 19 फीसदी तक की गिरावट आई है. सबसे ज्यादा असर अमेरिका को भेजी जाने वाली झींगा किस्मों पर पड़ा है. सबसे आम 40 काउंट के झींगे की कीमत 365 रुपये प्रति किलो तक गिर गई है. यह कीमत पिछले हफ्ते की तुलना में 19 फीसदी कम है. यह गिरावट केवल छोटे झींगों में नहीं, बल्कि सभी साइज के झींगों में देखी गई है.

अमेरिका पर सबसे ज्यादा असर

भारत हर साल लगभग 60,000 से 62,000 करोड़ रुपये के समुद्री उत्पादों का निर्यात करता है, जिसमें अकेले अमेरिका की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है. अगर केवल झींगा की बात करें, तो यह समुद्री उत्पाद निर्यात में सबसे बड़ा योगदान देता है, कुल मूल्य का लगभग 66 फीसदी और वॉल्यूम का करीब 41 फीसदी झींगा के हिस्से आता है. लेकिन अब अगर अमेरिका वाकई में 50 फीसदी टैरिफ लगा देता है, तो अनुमान है कि 24,000 से 25,000 करोड़ रुपये तक का कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो सकता है. इससे भारतीय समुद्री निर्यात उद्योग, खासकर झींगा पालन से जुड़े किसानों और निर्यातकों को बड़ा झटका लग सकता है.

झींगा किसानों की कम होती कमाई

‘फार्म गेट प्राइस’ वह कीमत होती है जो किसान को अपने फार्म पर ही मिलती है- यानी इसमें मार्केटिंग, ट्रांसपोर्ट आदि की लागत शामिल नहीं होती. कीमतें गिरने से किसानों की आमदनी सीधे प्रभावित हुई है.

कुछ राज्य सरकारें कंपनियों से कह रही हैं कि वे किसानों के लिए फीड यानी झींगा चारे की कीमतें घटाएं, ताकि उनकी लागत कुछ कम हो सके.

क्या है आगे का रास्ता?

नए निर्यात बाजारों की तलाश: यूरोप, जापान, दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे देशों की ओर उम्मीदें बढ़ रही हैं.

घरेलू खपत को बढ़ाना: देश में झींगा खपत अब भी सीमित है, लेकिन इसे बढ़ाना जरूरी होगा.

नीति बदलाव की जरूरत: विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार को निर्यात नीति में लचीलापन लाना होगा, जिससे भारत का समुद्री व्यापार ज्यादा स्थिर और प्रतिस्पर्धी बन सके.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ? दिव्य कुमार गुलाटी, अध्यक्ष, कंपाउंड लाइवस्टॉक फीड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन का कहना है कि “इस तरह के शुल्क तटीय और ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों लोगों की आजीविका पर सीधा असर डालते हैं. टैरिफ प्रतिस्पर्धा को बुरी तरह प्रभावित करते हैं.”

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