भारत और अमेरिका दोनों बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं, लेकिन व्यापारिक रिश्ते हमेशा सरल नहीं रहे. खासकर जब बात आती है कृषि, डेयरी और जीएम (GM) फसलों की, तो दोनों देशों की सोच एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है.
बुधवार को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आने वाले कई कृषि उत्पादों पर 25 फीसदी टैरिफ (Import Duty) लगाने का ऐलान किया है. अमेरिका का यह कदम सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि एक राजनीतिक दबाव रणनीति भी मानी जा रही है. तो चलिए विस्तार से समझते हैं कि अमेरिका ने भारत पर भारी भरकम टैरिफ क्यों लगाया?
क्या भारत की “ना” से अमेरिका नाराज है?
बिलकुल. अमेरिका लगातार भारत पर दबाव बना रहा है कि वह अपने बाजार को अमेरिकी कृषि और खाद्य उत्पादों के लिए और ज्यादा खोल दे. इसमें खास तौर पर जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) मक्का और सोयाबीन जैसे फसलें, डेयरी उत्पाद जैसे दूध और घी, और प्रोसेस्ड फूड शामिल हैं. लेकिन भारत का स्पष्ट कहना है कि अगर इन उत्पादों को बिना किसी रोक-टोक के देश में आने दिया गया, तो इससे देश के करोड़ों छोटे किसान, पशुपालक और घरेलू खाद्य उद्योग बुरी तरह प्रभावित होंगे. इसी कारण भारत हर अमेरिकी मांग के आगे झुकने को तैयार नहीं है. साथ ही, ट्रंप की नाराजगी की एक बड़ी वजह भारत के रूस के साथ गहरे सैन्य और ऊर्जा संबंध भी हैं.
“नॉन-वेज मिल्क” पर विवाद
नॉन-वेज मिल्क उस दूध को कहा जा रहा है, जो उन गायों से आता है जिनको मांस आधारित चारा खिलाया जाता है-जैसे जानवरों की हड्डी, खून या मांस के अवशेष. अमेरिका और यूरोप में ऐसा चारा देना आम बात है, लेकिन भारत में यह धार्मिक भावनाओं से जुड़ा मामला है. गाय को मां का दर्जा दिया जाता है, और उसका दूध पवित्र माना जाता है. भारत का दावा है कि उसके यहां पशु चारे में मांस या हड्डी की मिलावट नहीं होती. अमेरिकी सरकार इसे एक बहाना मान रही है ताकि भारतीय बाजार में अमेरिकी डेयरी उत्पादों को रोका जा सके.
GM फसलों को लेकर विवाद क्या है?
GM यानी Genetically Modified फसलें वे होती हैं, जिनमें वैज्ञानिक तरीके से जीन में बदलाव करके उन्हें ज्यादा उत्पादन देने वाली या कीटों से बचाव करने वाली बनाई जाती है. अमेरिका चाहता था कि भारत उसके GM मक्का, सोयाबीन और कई प्रोसेस्ड फूड्स को अपने बाजार में जगह दे. लेकिन भारत का मौजूदा कानून इन GM फसलों और खाद्य उत्पादों के आयात की अनुमति नहीं देता.
लेकिन भारत की कई गंभीर चिंताएं हैं, जैसे कि इनका मानव स्वास्थ्य पर संभावित बुरा असर, देश की जैव विविधता को खतरा, और बीजों को लेकर बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर किसानों की निर्भरता बढ़ना. भारत ने अभी तक सिर्फ BT कपास को ही एकमात्र GM फसल के रूप में मंजूरी दी है. बाकी सभी GM फसलें और GM आधारित फूड्स देश में फिलहाल प्रतिबंधित हैं.
अमेरिका का तर्क क्या है?
अमेरिका का कहना है कि भारत अपने कृषि उत्पादों पर औसतन 39 फीसदी टैरिफ लगाता है, जबकि अमेरिका केवल 5 फीसदी शुल्क लेता है. अमेरिकी सरकार इसे “असमान व्यापार” यानी Unfair Trade Practice मानती है और मांग करती है कि भारत अपने टैरिफ को कम करे ताकि अमेरिकी उत्पादों को भारतीय बाजार में बेहतर पहुंच मिल सके.
लेकिन भारत का पक्ष इससे बिल्कुल अलग है. भारत का कहना है कि उसकी लगभग 50 फीसदी आबादी सीधे या परोक्ष रूप से खेती पर निर्भर है. यहां कृषि केवल एक व्यापार नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की आजीविका, खाद्य सुरक्षा और सामाजिक संरचना से जुड़ा हुआ क्षेत्र है. अगर बाजार पूरी तरह विदेशी उत्पादों के लिए खोल दिया गया, तो इससे देश के छोटे किसान, दुग्ध उत्पादक और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गहरा नुकसान हो सकता है. यही कारण है कि भारत सतर्कता से काम ले रहा है और हर मांग को आंख मूंदकर नहीं स्वीकार रहा.
साल 2024-25 में अमेरिका के साथ व्यापार
भारत और अमेरिका के बीच कृषि व्यापार में बड़ा असंतुलन है, जो अब एक कूटनीतिक मुद्दा बनता जा रहा है. भारत ने 2023-24 में अमेरिका को करीब 6.25 अरब डॉलर (6250 मिलियन डॉलर) का कृषि निर्यात किया इसमें बासमती चावल, मसाले, फलों के रस, कैश्यू, ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स जैसी वस्तुएं शामिल हैं.
इसके मुकाबले भारत ने अमेरिका से केवल 373 मिलियन डॉलर का कृषि उत्पाद आयात किया. यह व्यापारिक अंतर अमेरिका को खटक रहा है. उसका मानना है कि भारत अपनी नीतियों से अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार सीमित कर रहा है. इसलिए अमेरिका लगातार भारत पर दबाव बना रहा है कि वह अपने आयात नियमों को आसान बनाए, खासकर GM फूड्स, प्रोसेस्ड मीट और डेयरी जैसे उत्पादों के लिए.
क्या यह मामला सिर्फ व्यापार का है?
यह मामला सिर्फ व्यापार का नहीं, बल्कि कहीं ज्यादा राजनीतिक रणनीति से जुड़ा है. अमेरिका की असली चिंता भारत के वैश्विक रिश्तों और रणनीतिक झुकाव को लेकर है. वह चाहता है कि:
- भारत रूस से सस्ता तेल और हथियार खरीदना कम करे
- अमेरिका से ज्यादा रक्षा उपकरण और तकनीक खरीदे
- BRICS, खासकर चीन से अपनी दूरी बनाए
लेकिन भारत इन शर्तों को पूरी तरह स्वीकार नहीं कर रहा. वह अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखना चाहता है, जहां अमेरिका से भी रिश्ते मजबूत रहें, लेकिन रूस और BRICS जैसे मंचों से भी जुड़ाव बना रहे.
यही कारण है कि अमेरिका अब टैरिफ और कृषि व्यापार को एक राजनीतिक दबाव के हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है. कृषि उत्पादों के टैरिफ को लेकर जो नाराजगी दिखाई जा रही है, वह असल में भारत पर भूराजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश का हिस्सा है.
भारत क्या कर रहा है?
भारत ने अमेरिका के साथ संबंधों को संतुलित करने की दिशा में कुछ अहम कदम उठाए हैं:
- ऊर्जा और रक्षा सौदों में भारत ने अमेरिका से खरीद बढ़ाई है, जैसे तेल, गैस और हाईटेक रक्षा उपकरण.
- डिजिटल व्यापार और डेटा लोकलाइजेशन जैसे आधुनिक मुद्दों पर भी बातचीत हुई है.
- भारत ने अब तक कृषि और डेयरी सेक्टर को एफटीए (Free Trade Agreement) से जानबूझकर बाहर रखा है.
भारत का तर्क है कि ये सेक्टर गरीब किसानों और छोटे उत्पादकों से सीधे जुड़े हैं. ये पर्यावरणीय संतुलन और स्थानीय खाद्य संप्रभुता के लिए बेहद अहम हैं. अगर इन्हें बिना सुरक्षा के वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए खोला गया, तो करोड़ों ग्रामीण परिवारों की आजीविका पर संकट आ सकता है. इसलिए भारत चाहता है कि व्यापारिक सहयोग बढ़े, लेकिन कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील सेक्टरों को विशेष संरक्षण भी मिले.
किसानों और छोटे कारोबारियों पर क्या असर पड़ सकता है?
- झींगा और चावल जैसे उत्पादकों को ऑर्डर मिलने में दिक्कत हो सकती है.
- ऑर्गेनिक किसानों को अमेरिका के सख्त प्रमाणन नियमों के कारण लागत बढ़ेगी.
- छोटे प्रोसेसर्स GM लेबलिंग की शर्तें पूरी नहीं कर पाएंगे, जिससे उनका बाजार सिमट सकता है.
टैरिफ ऐलान के कुछ घंटों बाद बदली रणनीति
भारत से होने वाले सभी आयातों पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी देने के कुछ ही घंटों बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सुर अचानक नरम हो गए हैं. कुछ घंटों बाद जब उनसे पूछा गया कि क्या वह भारत से बातचीत के लिए तैयार हैं, तो ट्रंप ने कहा “हम अभी उनसे बात कर रहे हैं, देखते हैं क्या होता है.” ट्रंप ने यह भी कहा कि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा टैरिफ लगाने वाले देशों में एक है. लेकिन अब अमेरिका यह देखना चाहता है कि इस मामले में आगे क्या होता है.
यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत ने साफ कर दिया है कि वह टैरिफ जैसे मुद्दों पर अपने हितों से कोई समझौता नहीं करेगा. भारत सरकार का रुख यह है कि बातचीत के लिए दरवाजे खुले हैं, लेकिन दबाव की राजनीति को स्वीकार नहीं किया जाएगा.
अगर दोनों देशों के बीच तालमेल नहीं बनता तो, इस ‘टैरिफ स्ट्राइक’ का सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है, खासकर उन क्षेत्रों पर जो अमेरिका को सबसे ज्यादा निर्यात करते हैं, जैसे कृषि, स्मार्टफोन, दवाइयां, कपड़ा, रत्न-आभूषण और ऑटो पार्ट्स. इससे रुपये की कीमत पर दबाव बढ़ सकता है.