सब्जी की खेती करने वाले किसानों के लिए बड़ी खबर है. आने वाले समय में सब्जियां केवल पोषण का साधन नहीं रहेंगी, बल्कि इसकी खेती से किसानों की कमाई में इजाफा होगा और उनकी आजीविका का आधार भी बनेंगी. इसके लिए भविष्य में जीनोमिक्स, एआई आधारित प्रजनन, जलवायु सहनशील किस्में, संरक्षित, शहरी खेत और प्राकृतिक खेती पर काम किया जाएगा. दरअसल, ये कहना है कि भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR) के निदेशक डॉ. राजेश कुमार का. उन्होंने संस्थान के 35वें स्थापना दिवस पर संबोधित करते हुए कहा कि ये सभी प्रयास किसानों के लिए नई तकनीक और लाभकारी मॉडल पेश करेंगे, जिससे उन्हें बेहतर उत्पादन, आय और पोषण मिलेगा.
आईआईवीआर का योगदान
निदेशक डॉ. राजेश कुमार ने कहा कि संस्थान ने अब तक 33 सब्जी फसलों में 133 उन्नत किस्में विकसित की हैं, जिनमें 25 संकर किस्में शामिल हैं. इन उन्नत किस्मों में काशी मनु (कलमी साग), काशी अन्नपूर्णा (पंखिया सेम), काशी उदय, काशी नंदिनी (सब्जी मटर), काशी कंचन (लोबिया), काशी क्रांति (भिंडी), काशी अमन (टमाटर), काशी अनमोल (मिर्च), काशी गंगा (लौकी) और काशी तरु (बैंगन) जैसी लोकप्रिय किस्में शामिल हैं. इन किस्मों की वजह से किसानों की पैदावार बढ़ी है और बाजार में अच्छी कीमत भी मिल रही है. आईआईवीआर ने टोमैटो ग्राफ्टिंग, पोमेटो, ब्रिमेटो और माइक्रोन्यूट्रिएंट फॉर्मुलेशन जैसे तकनीकी मॉडल किसानों तक पहुंचाए हैं. इसके अलावा, एफपीओ आधारित वितरण मॉडल से किसानों की आय में भी बढ़ोतरी हुई है.
मूल्य संवर्धित उत्पादों से ग्रामीण उद्यमिता को नई दिशा
संस्थान ने केवल सब्जी उत्पादन तक सीमित नहीं रहकर मूल्य संवर्धित उत्पादों पर भी काम किया है. हरी मिर्च पाउडर, इंस्टेंट लौकी खीर मिक्स, इंस्टेंट सहजन सूप मिक्स, करेला चिप्स और कद्दू हलवा मिक्स जैसे उत्पादों ने ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा दिया है. इन उत्पादों से छोटे किसानों और ग्रामीण महिलाओं को भी रोजगार और आय का नया जरिया मिला है. इस प्रयास से न केवल किसानों की आय बढ़ी है, बल्कि पोषण और स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ा है. किसान अब पारंपरिक खेती के साथ इन नए उत्पादों के जरिए अतिरिक्त आमदनी भी कमा सकते हैं.
कृषि को समेकित दृष्टिकोण से देखें..
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. मंगला राय, पूर्व सचिव डेयर एवं महानिदेशक, आईसीएआर ने कहा कि आज समय की मांग है कि कृषि को समेकित और समग्र दृष्टिकोण से देखा जाए. उन्होंने कहा कि आईआईवीआर ने सब्जी क्रांति का नेतृत्व करते हुए देश में सब्जियों की उत्पादकता और गुणवत्ता को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. डॉ. राय ने वैज्ञानिकों से अपील की कि मृदा सूक्ष्मजीवों, सेकेंडरी एग्रीकल्चर और मृदा कार्बन तत्वों पर विशेष शोध करें. उनका कहना था कि समेकित शोध और नवाचार से ही भारत की खाद्य सुरक्षा मजबूत हो सकती है.
फल-सब्जियों की उपलब्धता और भविष्य की जरूरतें

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान
विशिष्ट अतिथि डॉ. सुधाकर पांडे, सहायक महानिदेशक, भाकृअनुप, ने बताया कि वर्तमान में लगभग 9 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति माह फल-सब्जी उपलब्ध हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि 25 वर्षों बाद देश में लगभग 592 मिलियन टन फल-सब्जियों और प्रति हेक्टेयर 34 टन उत्पादकता की आवश्यकता होगी. डॉ. पांडे ने कहा कि बहु-रोग प्रतिरोधी किस्मों, सुरक्षित सब्जी उत्पादन और आधुनिक तकनीकों के प्रयोग पर जोर देना होगा. इससे न केवल उत्पादन बढ़ेगा बल्कि किसानों की आय और ग्रामीण आजीविका भी मजबूत होगी.
महिला सशक्तिकरण और तकनीक हस्तांतरण

महिलाओं के प्रशिक्षण कार्यक्रम
इस अवसर पर उत्कृष्ट कार्य करने वाले डॉ. नागेंद्र राय, संजय कुमार यादव, गोपीनाथ, कमलेश मीना और नारायणी सिंह को सम्मानित किया गया. इसके अलावा, जनजातीय उप-योजना के तहत 15 अनुसूचित जनजातीय महिलाओं के प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन भी हुआ. डॉ. मंगला राय और डॉ. सुधाकर पांडे ने महिलाओं को प्रमाण पत्र और सिलाई मशीनें प्रदान कीं. संस्थान ने नेक्सस एग्रो जेनेटिक्स सीड्स, काशी सुहावनी, तेजस्वनी सीड्स, त्रिपाठी बीज उत्पादक समिति, और अन्य किसानों के साथ ब्रिमेटो ग्राफ्टिंग और अन्य तकनीकों के हस्तांतरण के लिए समझौते किए. इससे नई तकनीक किसानों तक पहुंच सकेगी और उनकी आय बढ़ेगी.