Chickpea cultivation: मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार सहित लगभग सभी राज्यों में चने की बुवाई समाप्त हो गई है. अब बीज अंकुरित होकर पौधे बन गए हैं. इसके साथ ही चने की फसल में रोग लगने की संभवना भी बढ़ गई है. खासकर दीमक लगने का खतरा कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. अगर किसान समय रहते ध्यान नहीं देते हैं, तो पैदावार में 40 से 50 फीसदी तक गिरावट आ सकती है. इसलिए किसानों को रोग लगने से पहले ही चने के खेत में देसी उपाय करने चाहिए, ताकि फसलों को रोग लगने से बचाया जा सके.
कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक, बीज उपचार, जैविक फफूंदनाशक, खेत में सही नमी और दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरोपाइरीफॉस या नीम-आधारित उपाय बहुत प्रभावी माने जाते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि अधिक उत्पादन के लिए बुवाई के लगभग एक महीने बाद निराई-गुड़ाई जरूर करनी चाहिए. इस समय खरपतवार पौधों से पोषक तत्व, नमी और जगह छीन लेते हैं, जिससे फसल कमजोर हो जाती है. निराई-गुड़ाई से खेत साफ रहता है और चने के पौधे मजबूत होकर बढ़ते हैं.
कब करें पहली सिंचाई
अगर खरपतवार ज्यादा हों या पहली निराई के बाद फिर से घास उग आए, तो जरूरत पड़ने पर दूसरी निराई-गुड़ाई भी करनी चाहिए. इससे मिट्टी भुरभुरी रहती है, जड़ों को हवा मिलती है और पौधों की बढ़वार तेज होती है. चने की फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 40 से 45 दिन बाद करना सबसे सही माना जाता है. इस समय पौधे फूल आने की अवस्था में होते हैं और उन्हें नमी की जरूरत होती है. समय पर सिंचाई करने से फूल कम झड़ते हैं और दाने अच्छे से भरते हैं.
दीमक से फसलों को नुकसान
एग्रीकल्चर एक्सपर्ट के अनुसार, चने में दीमक का प्रकोप उपज को काफी नुकसान पहुंचा सकता है. इससे बचाव के लिए क्लोरपायरीफॉस 20 EC की 3 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर सिंचाई के पानी में मिलाकर दें. इससे मिट्टी में मौजूद दीमक नियंत्रित होती है और फसल सुरक्षित रहती है. चने की बुवाई के 21 से 25 दिन बाद की अवस्था को ‘क्राउन रूट स्टेज’ कहा जाता है, जो फसल के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है. इस समय पहली सिंचाई जरूर करनी चाहिए, ताकि पौधों की जड़ें मजबूत बन सकें. जिन खेतों में दीमक की समस्या ज्यादा हो, वहां क्लोरपायरीफॉस 10 EC की 2 लीटर मात्रा 20 किलो मिट्टी में मिलाकर खेत में डालें और तुरंत सिंचाई करें.
फसल को फफूंद वाली बीमारियों से बचाना जरूरी
इसके अलावा चने की फसल को फफूंद वाली बीमारियों से बचाना भी बहुत जरूरी है. अगर पौधों पर फफूंद का असर दिखे, तो कार्बेन्डाजिम 50 फीसदी WP या थायोफिनेट मिथाइल 70 फीसदी WP की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. समय पर किया गया यह स्प्रे फसल को रोगों से बचाता है और उपज बढ़ाने में मदद करता है.