106°F बुखार और गले से आवाजें? तो समझ जाएं गलाघोंटू रोग की चपेट में है आपका पशु, ऐसे करें बचाव

मानसून के दौरान गाय-भैंसों में गला-घोंटू जैसी जानलेवा बीमारी फैलने का खतरा बढ़ जाता है. समय पर टीकाकरण और उचित देखभाल से इस रोग से बचाव संभव है. पशुपालकों को सतर्क रहकर साफ-सफाई और रोकथाम पर विशेष ध्यान देना चाहिए.

Kisan India
नोएडा | Published: 3 Aug, 2025 | 08:20 PM

बरसात का मौसम सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं, पशुओं के लिए भी चुनौतियों भरा होता है. इस मौसम में नमी और गंदगी के कारण जानवरों में गला-घोंटू जैसी संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा काफी बढ़ जाता है. यह बीमारी खासकर गाय और भैंसों को प्रभावित करती है, लेकिन भैंसों में इसका असर ज्यादा गंभीर देखा गया है.

समय पर टीकाकरण है सबसे बड़ा बचाव

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह रोग यदि समय पर पहचाना न जाए और इलाज में देरी हो जाए, तो यह जानलेवा साबित हो सकता है. ऐसे में जरूरी है कि किसान समय रहते अपने पशुओं का टीकाकरण करवाएं. इससे बीमारी की रोकथाम की जा सकती है और पशुओं का स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है. जागरूकता और सतर्कता ही मानसून में पशुपालकों के लिए सबसे बड़ा हथियार है.

गला‑घोंटू रोग क्या है और क्यों खतरनाक है?

यह एक संक्रामक जीवाणु आधारित रोग है जो जानवरों के गले को प्रभावित करता है. शुरुआत में गले से घर्र-घर्र की आवाज सुनाई देती है, इसलिए इसे मल्टी नाम से जाना जाता है. रोग कुछ ही दिनों में जानलेवा हो सकता है अगर समय पर इलाज न हो.

प्रमुख लक्षण: समय रहते पहचानें

गला‑घोंटू के लक्षण मानसून में खासतौर पर दिखाई देते हैं. किसान और पशु पालक निम्न बातों पर ध्यान दें-

  • बुखार 106°F तक पहुंच सकता है.
  • आंखें लाल व सूजी हुई होती हैं, नाक, मुंह और आंखों से खून आ सकता है.
  • सिर, गर्दन और आगे की टांगों में सूजन दिखाई दे सकती है.
  • मांसपेशियों में दर्द और गड़गड़ाहट जैसी आवाज (groaning) उत्पन्न होती है.
  • सांस लेने में तकलीफ होती है, जिससे पशु कमजोर हो जाता है.
  • समय रहते इन लक्षणों को पहचानना जीवनरक्षक हो सकता है.

फायदे का टीकाकरण और देखभाल कैसे करें?

  • मानसून से पहले गला‑घोंटू का टीकाकरण अति आवश्यक है.
  • यदि कोई पशु संक्रमित हो जाए, तो उसे तुरंत घरेलू जानवरों से अलग रखें.
  • संक्रमित पशु को साफ पानी और हरा चारा दें, जिससे उसकी आत्म-प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे.
  • यदि किसी पशु की मृत्यु हो जाती है, तो उसे नमक व चूना मिलाकर गड्ढे में दफनाएं, ताकि संक्रमण न फैले.

किसान और पशुधन विभाग के बीच तालमेल जरूरी

  • सरकार की ओर से समय‑समय पर टीकाकरण शिविर आयोजित किए जाते हैं.
  • किसान को पशु चिकित्सा केंद्र से संपर्क कर टीकाकरण और स्वास्थ्य जांच करानी चाहिए.
  • स्थानीय अधिकारी ट्रैकर होंगे-यदि किसी खेत में संक्रमण की सूचना मिले, तो विभाग तुरंत कदम उठाए.
  • अभियानों में पशु स्वामियों को जानकारी और जागरूकता दी जा रही है कि संक्रमण की स्थिति में कैसे प्रतिक्रिया दें.

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Published: 3 Aug, 2025 | 08:20 PM

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