Bargur Buffalo : भारत में हर राज्य की अपनी खास पशु परंपरा है. तमिलनाडु की बरगुर भैंस भी ऐसी ही अनोखी नस्ल है. इसे स्थानीय लोग मलाई एरुमई या मलाई एम्मई भी कहते हैं. मलाई का मतलब पहाड़ और ‘एरुमई’ का मतलब भैंस है. यह नस्ल मुख्य रूप से तमिलनाडु के एरोड जिले के अंथियूर तालुक और बारगुर हिल्स में पाई जाती है. बरगुर भैंस अपनी चुस्ती, सहनशक्ति और पौष्टिक दूध के लिए प्रसिद्ध है. आइए जानते हैं इस नस्ल के बारे में विस्तार से.
बरगुर भैंस कहां पाई जाती है?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बरगुर भैंस मुख्य रूप से अंथियूर तालुक की बारगुर पहाड़ियों के गांवों में पाई जाती है. इस क्षेत्र की जलवायु और भूगोल इस नस्ल के लिए बिल्कुल उपयुक्त है. पहाड़ी और हरियाली वाले इलाकों में यह भैंस आसानी से चराई कर सकती है. स्थानीय किसान इसे जंगल में चरने के लिए छोड़ देते हैं और यह स्थायी जगह पर ज्यादा नहीं रहती. यही वजह है कि बरगुर भैंस की पहचान अन्य नस्लों से अलग होती है.
बरगुर भैंस का मुख्य उपयोग और उत्पत्ति
बरगुर भैंस का मुख्य उद्देश्य दूध और गोबर का उत्पादन है. दूध का इस्तेमाल मुख्यतः घर में छाछ और दही बनाने के लिए किया जाता है. यह नस्ल क्षेत्रीय है और इसे वर्षों से स्थानीय लोग पारंपरिक तरीकों से पाला-पोसा कर संवर्धित करते आ रहे हैं. Bargur नाम उसी स्थान से लिया गया है जहां यह भैंस पाई जाती है. इसकी खासियत यह है कि यह नस्ल कठिन और पहाड़ी इलाके में भी आसानी से जीवित रह सकती है.
- पशुपालकों के लिए रोजगार का नया मौका, केवल दूध ही नहीं ऊंट के आंसुओं से भी होगी कमाई
- बरसात में खतरनाक बीमारी का कहर, नहीं कराया टीकाकरण तो खत्म हो जाएगा सब
- पशुपालक इन दवाओं का ना करें इस्तेमाल, नहीं तो देना पड़ सकता है भारी जुर्माना
- 2000 रुपये किलो बिकती है यह मछली, तालाब में करें पालन और पाएं भारी लाभ
बरगुर भैंस की पहचान
बरगुर भैंस का रंग भूरा-काला होता है. इसके दो सींग पीछे की ओर मुड़े होते हैं. नर भैंस की औसत ऊंचाई 108.27 सेमी और लंबाई 94.87 सेमी है, जबकि मादा भैंस की ऊंचाई 102.83 सेमी और लंबाई 93.33 सेमी होती है. इसका सीना (Heart Girth) 149.8 सेमी तक पहुंचता है. पूंछ, थूथन और आंखों की पलकों का रंग काला होता है और खुर ग्रे रंग के होते हैं. यह भैंस दिखने में मजबूत और चुस्त होती है, जो इसे जंगल में चराई के लिए उपयुक्त बनाती है.
पालन-पोषण कैसे करें
बरगुर भैंसों को ज्यादातर जंगल में चराई के लिए छोड़ा जाता है. इन्हें बाड़े या जंगल के किनारे रखा जाता है ताकि वे प्राकृतिक रूप से चर सकें. प्रजनन के लिए स्थानीय सांड़ Konaan का इस्तेमाल किया जाता है. इस नस्ल की देखभाल में ज्यादा संसाधन की जरूरत नहीं पड़ती. किसान इन्हें कम संसाधनों में भी पाल सकते हैं, जिससे यह आदिवासी और सीमांत किसानों के लिए आदर्श बनती है.
दूध उत्पादन क्षमता
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बरगुर भैंस का दूध उत्पादन अन्य नस्लों की तुलना में कम होता है, लेकिन इसका फैट कंटेंट बहुत अधिक होता है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यह भैंस रोजाना औसतन 6-7 लीटर दूध देती है. एक ब्यांत में 700-1200 किलोग्राम तक दूध का उत्पादन संभव है. इसके दूध में फैट 8.59 फीसदी तक होता है, जिससे दही, मट्ठा और अन्य डेयरी उत्पाद बहुत पौष्टिक बनते हैं. पहली ब्यांत की औसत उम्र 46 महीने होती है और ब्यांत का अंतराल 16-18 महीने तक रहता है.
बरगुर भैंस की खास विशेषताएं
बरगुर भैंस की सबसे बड़ी खासियत इसका दुग्ध वसा प्रतिशत है. यह भैंस केवल वन क्षेत्रों में चराई के लिए अनुकूल है. कठोर जलवायु और पहाड़ी इलाकों में यह आसानी से जीवित रह सकती है. कम संसाधनों में पालन संभव होने के कारण यह आदिवासी और सीमांत किसानों के लिए बेहद लाभकारी है. अगर इसका वैज्ञानिक रूप से संवर्धन किया जाए, तो यह नस्ल पशुपालन में स्थायी और मजबूत विकल्प बन सकती है. बरगुर भैंस न केवल तमिलनाडु की सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत का हिस्सा है, बल्कि यह किसानों को पौष्टिक दूध और गोबर के रूप में स्थायी आय भी देती है. इसकी देखभाल आसान और उत्पादन गुणवत्ता बेहतरीन होने के कारण यह क्षेत्रीय डेयरी उद्योग में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है.