सर्दियों में तालाब का तापमान गिरते ही बढ़ जाता है मछलियों पर खतरा, मछली पालकों के लिए जरूरी सलाह

नवंबर में तापमान गिरने से तालाब का पानी जल्दी खराब होता है, जिससे मछलियों की सेहत पर बड़ा असर पड़ता है. इसी को देखते हुए सरकार ने मछली पालकों को पानी की गुणवत्ता और सही देखभाल को लेकर जरूरी सुझाव दिए हैं. इन उपायों से नुकसान कम होगा और उत्पादन सुरक्षित रहेगा.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 22 Nov, 2025 | 04:13 PM

Bihar News : नवंबर में मछली पालन का सीजन सबसे अहम माना जाता है. इस समय तालाब का पानी जल्दी ठंडा होता है और मछलियों की सेहत पर सीधा असर डालता है. ऐसे में थोड़ा-सा ध्यान और सही तरीके अपनाकर मछली पालक अपनी पूरी आमदनी सुरक्षित कर सकते हैं. बिहार सरकार के पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग ने भी नवंबर महीने में कुछ बेहद जरूरी सलाहें जारी की हैं, ताकि मछली पालकों को किसी तरह का नुकसान न हो और तालाब की उत्पादकता बनी रहे. ऐसे में आइए जानते हैं कुछ आसान उपाय के बारे में…

ठंड बढ़ने पर पानी की गुणवत्ता सबसे बड़ी चुनौती

नवंबर में तापमान गिरते ही तालाब का पानी धीरे-धीरे ठंडा होने लगता है. ऐसे में पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और इससे मछलियों की गतिविधि  भी कम हो जाती है. इस मौसम में पानी की गुणवत्ता बनाए रखना सबसे जरूरी होता है, क्योंकि पानी खराब होते ही मछलियां सुस्त पड़ जाती हैं और बीमार होने का खतरा भी बढ़ जाता है. विशेषज्ञों की सलाह है कि इस समय तालाब के पानी को नियमित रूप से जांचते रहें और उसमें किसी तरह की बदबू या रंग बदलने की समस्या को तुरंत ठीक करें.

जलीय प्रोबायोटिक का नियमित प्रयोग करेगा बड़ा काम

मछलियों की सेहत और पानी की सफाई के लिए विभाग ने खास सुझाव दिया है- तालाब के प्रति एकड़ में 400 ग्राम जलीय प्रोबायोटिक का उपयोग करें. प्रोबायोटिक पानी में मौजूद हानिकारक गैसों को कम करता है और अच्छे बैक्टीरिया की संख्या बढ़ाकर पानी को ताजा रखता है. इसका सीधा फायदा यह होता है कि मछलियां स्वस्थ रहती हैं, उनका वजन अच्छा बढ़ता है और अचानक मौत की घटनाएं भी कम हो जाती हैं. कई मछली पालकों के अनुसार, नियमित प्रोबायोटिक डालने से तालाब का पानी पूरे मौसम स्थिर बना रहता है और उत्पादन में 10-15 फीसदी तक बढ़ोतरी होती है.

नियमित निगरानी और संतुलित भोजन से होगी बेहतर कमाई

सर्दी में मछलियां आम दिनों की तुलना में थोड़ा कम खाती हैं, इसलिए इस समय उन्हें जरूरत से ज्यादा चारा नहीं देना चाहिए. बचा हुआ चारा पानी को गंदा कर देता है और बीमारी फैलने का कारण बनता है. रोज शाम या सुबह तालाब का एक चक्कर लगाकर पानी की स्थिति, मछलियों की गतिविधि और चारे के बचे हुए हिस्से को ध्यान से देखना चाहिए. यदि मछलियां ऊपर आकर सांस लेती दिखें, तो यह ऑक्सीजन की कमी का संकेत है, जिसे तुरंत ठीक करना जरूरी है.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

भारत में सबसे पहले सेब का उत्पादन किस राज्य में शुरू हुआ.

Side Banner

भारत में सबसे पहले सेब का उत्पादन किस राज्य में शुरू हुआ.