भारत की ओडिशा में स्थित चिल्का झील अपनी खूबसूरती और जैव विविधता के लिए बहुत मशहूर है. अब यह झील एक नए मुकाम की ओर बढ़ रही है. यहां के कीचड़ केकड़ा मछली पालन को दुनिया की सबसे बड़ी स्थिरता यानी टिकाऊपन की मान्यता (सर्टिफिकेट) दिलाने की तैयारी चल रही है. इसका मतलब है कि झील से मछली पकड़ने का तरीका ऐसा होगा, जो पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए और मछुआरे भी अच्छी कमाई कर सकें.
मिलकर काम कर रहे बड़े संस्थान
इस काम में कई बड़ी संस्थाएं साथ मिलकर काम कर रही हैं. जैसे कि ICAR-CIFRI, जो मछली पालन के लिए रिसर्च करता है, चिल्का विकास प्राधिकरण और सस्टेनेबल सीफूड नेटवर्क ऑफ इंडिया. इन सभी ने मिलकर योजना बनाई है कि चिल्का झील के कीचड़ केकड़े को “मरीन स्टुअर्डशिप काउंसिल” की स्थिरता प्रमाणपत्र दिलाई जाए. यह प्रमाणपत्र पूरे विश्व में माना जाता है और इससे मछली की कीमत और मांग दोनों बढ़ जाते हैं.
यह प्रमाणपत्र क्यों जरूरी है?
यह प्रमाणपत्र इसलिए जरूरी है ताकि मछली पकड़ने का काम सही तरीके से हो. मतलब मछली या केकड़ा ज्यादा मात्रा में पकड़ने से बचा जाए ताकि झील की जैव विविधता बनी रहे. इससे मछुआरों की आजीविका भी लंबे समय तक सुरक्षित रहती है. जब मछली टिकाऊ तरीके से पकड़ी जाएगी, तो बाजार में उसकी कद्र बढ़ेगी और मछुआरों को भी ज्यादा फायदा मिलेगा.
मछुआरों को होगा फायदा
इस योजना से चिल्का झील का पर्यावरण तो सुरक्षित रहेगा ही, साथ ही स्थानीय मछुआरों की जिंदगी भी बेहतर होगी. क्योंकि इस योजना के तहत मछुआरों को मछली पकड़ने और केकड़ा पालन करने के सही तरीके सिखाए जाएंगे. इससे वे बिना झील के संसाधनों को नुकसान पहुंचाए, ज्यादा और बेहतर गुणवत्ता वाली मछलियां और केकड़े पकड़ पाएंगे.
इसके अलावा, चिल्का झील के कीचड़ केकड़ों को ग्लोबल सस्टेनेबिलिटी सर्टिफिकेट मिलने से इनका मूल्य अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ जाएगा. इसका मतलब है कि अब इनके उत्पाद को विदेशों में भी अच्छी कीमत मिलेगी. इससे मछुआरों की आमदनी में सुधार होगा और उनका आर्थिक स्तर मजबूत होगा.
यह योजना मछुआरों को नई तकनीकों और संसाधनों से लैस करेगी, जिससे वे अधिक उत्पादन कर सकेंगे और अपनी मछली पालन प्रक्रिया को पर्यावरण के अनुकूल बनाए रखेंगे. इससे मछुआरों को रोजगार की स्थिरता मिलेगी और वे लंबे समय तक अपनी आजीविका चला सकेंगे.