ये हैं देश की टॉप 2 देसी गायें, A2 कैटेगरी में है इनका दूध..पालन करते ही बदल जाएगी किस्मत!

भारत की देसी और विदेशी गायें किसानों के लिए आर्थिक वरदान साबित हो रही हैं. इस नस्ल की गाय ज्यादा दूध देती हैं और ग्रामीण व व्यावसायिक डेयरी उद्योग में आमदनी बढ़ा रही हैं.

Kisan India
नोएडा | Published: 29 Sep, 2025 | 07:30 PM

Animal Husbandry: भारत में दूध उत्पादन और पशुपालन हमेशा से किसानों के लिए महत्वपूर्ण रहा है. खासकर देसी और विदेशी गायों ने किसानों की आमदनी बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया है. ये गायें न केवल ज्यादा दूध देती हैं, बल्कि कम देखभाल में भी फायदेमंद साबित होती हैं. ग्रामीण इलाकों में इन गायों का पालन तेजी से बढ़ रहा है और यह किसानों की आमदनी का बड़ा जरिया बन चुकी हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि देसी नस्लें किसानों के लिए सबसे अच्छे विकल्प हैं. ये गायें कम देखभाल में भी ज्यादा दूध देती हैं और बीमारियों से लड़ने में सक्षम होती हैं. ग्रामीण इलाकों में साहीवाल, गिर, हरियाणा, थारपारकर और ड्यूनी जैसी नस्लों का पालन तेजी से बढ़ रहा है.

साहीवाल और गिर नस्ल सबसे ज्यादा लोकप्रिय

  • साहीवाल पंजाब की मशहूर नस्ल है.
  • गिर गाय मूल रूप से गुजरात से आती है.

इन गायों का दूध A2 मिल्क श्रेणी का होता है, जो सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद  माना जाता है. एक गाय एक बार में 14 से 15 लीटर तक दूध दे सकती है. यही कारण है कि ये गायें किसानों और छोटे डेयरी फार्मों के लिए वरदान साबित हो रही हैं.

ज्यादा उत्पादन और व्यावसायिक फायदा

विदेशी नस्लें जैसे कि होल्स्टीन फ्रीजियन (एचएफ), जर्सी और हॉल्सटीन फ्रीजियन-क्रॉस भी दूध उत्पादन में काफी लोकप्रिय हैं. इनमें से एचएफ नस्ल एक बार में 20 लीटर तक दूध देने में सक्षम होती है. बड़े डेयरी फार्म और व्यावसायिक दूध उत्पादन के लिए ये नस्लें बेहद लाभकारी हैं. विदेशी नस्लें ज्यादा दूध देती हैं और व्यावसायिक स्तर पर अधिक आमदनी का साधन बनती हैं. यही वजह है कि इनकी मांग लगातार बढ़ रही है.

नई नस्लों का विकास और तकनीकी सुधार

हाल ही में गिर नस्ल  के जीन में सुधार करके एक नई नस्ल विकसित की गई है. यह नई नस्ल 15 से 25 लीटर दूध देने में सक्षम है. इस तरह के वैज्ञानिक प्रयास किसानों के लिए और ज्यादा लाभ का साधन बन रहे हैं. सरकार भी देसी नस्लों के संरक्षण और प्रोत्साहन पर लगातार काम कर रही है. पशु चिकित्सालयों में साहीवाल और गिर नस्लों का सीमन स्टोर किया जाता है, ताकि किसानों को बेहतर प्रजनन सुविधा आसानी से मिल सके.

किसानों के लिए फायदे और आमदनी

देसी और विदेशी नस्लों का संतुलित पालन किसानों की आमदनी  बढ़ाने में मदद करता है. देसी नस्लें लंबा जीवन, बीमारियों से लड़ने की क्षमता और टिकाऊपन देती हैं. विदेशी नस्लें ज्यादा दूध देती हैं और व्यावसायिक उत्पादन के लिए फायदेमंद होती हैं. किसान दोनों का संतुलित पालन करके अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं और व्यवसायिक डेयरी फार्म भी सफल बना सकते हैं. ग्रामीण इलाकों में यह संतुलन धीरे-धीरे अपनाया जा रहा है और किसान इससे फायदा उठा रहे हैं.

दूध की गुणवत्ता और स्वास्थ्य लाभ

साहीवाल और गिर जैसी देसी नस्लों का दूध A2 मिल्क श्रेणी का होता है. यह स्वास्थ्य के लिए ज्यादा फायदेमंद माना जाता है. A2 मिल्क के नियमित सेवन से पाचन बेहतर रहता है और शरीर को पोषण मिलता है. विदेशी नस्लों  का दूध भी पोषण से भरपूर होता है और बड़े फार्मों में इसे व्यावसायिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इससे किसानों की आमदनी में सुधार होता है और डेयरी व्यवसाय में विस्तार संभव होता है.

भविष्य में पशुपालन की संभावनाएं

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में पशुपालन  का भविष्य उज्ज्वल है. देसी और विदेशी नस्लों का संतुलित पालन, आधुनिक तकनीक और नई नस्लों का विकास किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद करेगा. सरकार के संरक्षण प्रयास, वैज्ञानिक सुधार और डेयरी उद्योग की बढ़ती मांग से किसानों के लिए यह क्षेत्र और लाभकारी बन रहा है. छोटे और बड़े फार्मों में दोनों नस्लों का पालन करके किसान अपने व्यवसाय को मजबूत बना सकते हैं. कुल मिलाकर, दूध देने वाली गायें सिर्फ किसानों की आमदनी ही नहीं बढ़ातीं बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करती हैं. आधुनिक तकनीक और संतुलित पालन से किसान अपनी आमदनी को लगातार बढ़ा सकते हैं.

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Published: 29 Sep, 2025 | 07:30 PM

किस देश को दूध और शहद की धरती (land of milk and honey) कहा जाता है?

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