पोल्ट्री उद्योग में बढ़ती लागत से हड़कंप, जानिए क्यों GM मक्का आयात की मांग हुई तेज?

लगातार बढ़ती लागत, कच्चे माल की सीमित उपलब्धता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा ने पोल्ट्री उद्योग पर भारी दबाव डाल दिया है. भारत का यह 3 लाख करोड़ रुपये का उद्योग करोड़ों लोगों के भोजन और लाखों परिवारों की रोजी-रोटी से जुड़ा है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 27 Nov, 2025 | 11:51 AM

poultry farming: देश का पोल्ट्री उद्योग इन दिनों एक बड़े संकट के दौर से गुजर रहा है. लगातार बढ़ती लागत, कच्चे माल की सीमित उपलब्धता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा ने इस क्षेत्र पर भारी दबाव डाल दिया है. भारत का यह 3 लाख करोड़ रुपये का उद्योग करोड़ों लोगों के भोजन और लाखों परिवारों की रोजी-रोटी से जुड़ा है. ऐसे में मक्का की बढ़ती कीमतें और एथेनॉल उद्योग से प्रतिस्पर्धा, पोल्ट्री सेक्टर को एक नाजुक मोड़ पर खड़ा कर रही हैं. इसी कारण अब उद्योग संगठनों ने सरकार से जीएम (जेनिटिकली मॉडिफाइड) मक्का के आयात की अनुमति देने की मांग शुरू कर दी है, ताकि उत्पादन लागत पर काबू पाया जा सके.

मक्का की कमी से बढ़ा संकट

भारत में हर साल लगभग 420 लाख टन मक्का का उत्पादन होता है, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा दो क्षेत्रों में भारी मात्रा में इस्तेमाल हो जाता है-

एथेनॉल उद्योग: 120–150 लाख टन

पोल्ट्री उद्योग: 250 लाख टन

इन दोनों क्षेत्रों के बीच मांग बढ़ने से मक्का की कीमतें तेजी से ऊपर पहुंच गई हैं. पोल्ट्री उद्योग के अनुसार, दाने की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी ने फीड की लागत को कई गुना बढ़ा दिया है, जिससे अंडे, चिकन और अन्य पोल्ट्री उत्पादों का उत्पादन महंगा पड़ रहा है.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की कमजोरी

हैदराबाद में आयोजित पोल्ट्री इंडिया एक्सपो 2025 में उद्योग नेताओं ने खुलकर कहा कि भारत की उत्पादन लागत ब्राजील और थाईलैंड जैसे देशों के मुकाबले कहीं अधिक है.ये देश बड़े पैमाने पर जीएम मक्का का उपयोग करते हैं, जिससे उनकी फीड लागत कम और उत्पादन सस्ता होता है. भारतीय प्रतिनिधियों ने चेतावनी दी कि “उच्च लागत के चलते भारत वैश्विक बाजार में प्रतियोगिता से बाहर होता जा रहा है.”

किसानों और उद्योग दोनों की चुनौती

पोल्ट्री उद्योग का कहना है कि यह क्षेत्र देश में 60 लाख लोगों को रोजगार देता है और प्रोटीन का सबसे किफायती स्रोत उपलब्ध कराता है. इसके बावजूद, किसानों की आमदनी अस्थिर बनी हुई है.

उद्योग के अनुसार किसान 52 में से सिर्फ 22 हफ्तों में ही ठीक-ठाक मुनाफा कमा पाते हैं. बाकी समय वे या तो घाटे में रहते हैं या लागत बराबर भी नहीं निकाल पाते. इसलिए उद्योग चाहता है कि सरकार विभिन्न मंत्रालयों की नीतियों में सामंजस्य लाए, ताकि यह क्षेत्र आर्थिक रूप से टिकाऊ बन सके.

निर्यात पर भी असर

भारत अंडे और चिकन उत्पादों के निर्यात में लगातार अपना दायरा बढ़ा रहा है.वर्तमान में मिडिल ईस्ट को बड़ी मात्रा में टेबल एग्स,जापान और यूरोपीय संघ को एग पाउडर, कई देशों को रेडी-टू-कुक चिकन उत्पाद निर्यात होते हैं, लेकिन उच्च उत्पादन लागत भारत की प्रतिस्पर्धा क्षमता को कम कर रही है. इसलिए उद्योग ने सरकार से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में रोड शो, प्रमोशन और सहायता योजनाओं की मांग की है.

उद्योग का बड़ा आग्रह

पोल्ट्री को अभी ‘एनिमल हसबेंड्री’ श्रेणी में गिना जाता है.उद्योग का कहना है कि इससे उनकी समस्याओं को उतनी प्राथमिकता नहीं मिलती जितनी जरूरी है. इंडियन पोल्ट्री इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (IPEMA) ने सुझाव दिया कि पोल्ट्री को अलग विभाग के रूप में पहचाना जाए, उद्योग आधारित नीतियां बनें, जीएम मक्का आयात पर निर्णय जल्द लिया जाए.

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