बाढ़ और गरीबी से बाहर निकला बिहार का खगड़िया गांव, मछली पालन ने बदली किसानों की तकदीर

Fish Farming: बिहार के खगड़िया जिला, जो कभी बाढ़ और बेरोजगारी के लिए जाना जाता था, अब मछली उत्पादन में नई पहचान बना रहा है. सरकारी योजनाओं, आधुनिक तकनीक और किसानों की मेहनत से रोजगार बढ़ा है. मछली पालन ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया और जिले की अर्थव्यवस्था को मजबूती दी है.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 14 Dec, 2025 | 11:38 AM

Bihar News : कभी हर साल बाढ़, बेरोजगारी और गरीबी की पहचान रहा खगड़िया जिला अब अपनी नई पहचान बना चुका है. सात नदियों से घिरा यह इलाका अब मछली उत्पादन हब के रूप में उभर रहा है. आधुनिक तकनीक, सरकारी योजनाएं और किसानों की मेहनत ने यहां की तस्वीर पूरी तरह बदल दी है. मछली पालन ने न सिर्फ रोजगार दिया, बल्कि महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना दिया है.

बढ़ा उत्पादन लक्ष्य, दिसंबर तक आधा से ज्यादा हासिल

बिहार पशुपालन विभाग के अनुसार खगड़िया जिले में मछली उत्पादन  (Fish Farming) लगातार बढ़ रहा है. जिला मत्स्य पदाधिकारी लालबहादुर साफी ने बताया कि वर्ष 2024-25 में जिले का मछली उत्पादन लक्ष्य 38.88 हजार मीट्रिक टन था. बेहतर प्रदर्शन को देखते हुए 2025-26 के लिए लक्ष्य बढ़ाकर 41 हजार मीट्रिक टन कर दिया गया है. दिसंबर के दूसरे सप्ताह तक करीब 22 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हो चुका है. विभाग को उम्मीद है कि मार्च तक लक्ष्य आसानी से पूरा हो जाएगा.

सरकारी योजनाओं ने बदली किसानों की किस्मत

राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी मुख्यमंत्री चौर विकास योजना खगड़िया के किसानों के लिए वरदान साबित हुई है. इस योजना में किसान को 5 बीघा चौरनुमा जमीन की जरूरत होती है. ढाई बीघा में तालाब बनाकर मछली पालन किया जाता है और बाकी जमीन को खेती योग्य बनाया जाता है. इसके साथ ही प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना  (PMMSY) के तहत नए तालाब, बायोफ्लॉक यूनिट, आरएएस और केज कल्चर पर 40 से 60 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है. इससे छोटे किसान भी मछली पालन से जुड़ रहे हैं.

आधुनिक तकनीक से कम जमीन में ज्यादा कमाई

खगड़िया में मछली पालन अब पारंपरिक तरीके तक सीमित नहीं रहा. बायोफ्लॉक टेक्नोलॉजी में 8 कट्ठा जमीन पर प्लास्टिक शीट  बिछाकर तालाब बनाया जाता है, जहां एक सीजन में 15-20 टन मछली तैयार होती है. टैंक आधारित बायोफ्लॉक में सिर्फ ढाई कट्ठा जमीन में 4-5 टन मछली का उत्पादन  हो रहा है. जिले में करीब 130 लोग इस तकनीक से लाखों रुपये कमा रहे हैं. आरएएस तकनीक में पानी को 99 प्रतिशत तक रिसाइकिल किया जाता है, जबकि केज कल्चर में गंगा और कोसी जैसी नदियों में जाली के पिंजरों से मछली पालन किया जा रहा है.

महिलाएं बनीं आत्मनिर्भर, हजारों परिवारों को रोजगार

जिले में मत्स्य विभाग ने 180 जलकर मछली पालकों को सौंपे हैं. इनसे मछुआरों के साथ-साथ ट्रांसपोर्ट, आइस फैक्ट्री और बाजार से जुड़े लोगों को भी रोजगार मिल रहा है. एक जलकर से सालाना 50-60 लाख रुपये तक की कमाई हो रही है. मछली पालन में महिलाओं की भागीदारी भी तेजी से बढ़ी है. इसके साथ महिलाएं बायोफ्लॉक और तालाब से सालाना 5-6 लाख रुपये कमा रही हैं. खगड़िया आज साबित कर रहा है कि सही योजना और तकनीक से किस्मत बदली जा सकती है.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

आम धारणा के अनुसार तरबूज की उत्पत्ति कहां हुई?

Side Banner

आम धारणा के अनुसार तरबूज की उत्पत्ति कहां हुई?