भारत में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) ने बड़ी भूमिका निभाई है. इस योजना ने पिछले 5 वर्षों में मछली उत्पादन और किसानों की कमाई में जबरदस्त इजाफा किया है. आज भारत न सिर्फ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक बन चुका है, बल्कि यहां लोगों की मछली खाने की खपत भी दोगुनी हो गई है.
योजना का शुरुआत और लक्ष्य
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का शुभारंभ 10 सितंबर 2020 को किया गया था. इसका मकसद मछली पालन को आधुनिक तकनीक से जोड़ना, उत्पादन बढ़ाना, नुकसान कम करना और किसानों की आमदनी में इजाफा करना था. यह योजना मत्स्य क्षेत्र को पर्यावरण के अनुकूल, आर्थिक रूप से मजबूत और सामाजिक रूप से सभी वर्गों को शामिल करने वाला बनाने की दिशा में काम कर रही है.
पांच साल में उपलब्धियां
पांच सालों में इस योजना ने शानदार परिणाम दिए. फरवरी 2025 तक भारत में मत्स्य पालन की उत्पादकता 3 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 4.7 टन प्रति हेक्टेयर हो गई. रोजगार के क्षेत्र में भी बड़ी उपलब्धि हासिल हुई. दिसंबर 2024 तक इस योजना ने 55 लाख रोजगार सृजित करने का लक्ष्य पार कर लिया और 58 लाख से अधिक लोगों को काम मिला.
महिलाओं को मिला सशक्तिकरण
इस योजना के जरिए न सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाएं भी आत्मनिर्भर बनी हैं. 2020-21 से 2024-25 के बीच कुल 4,061.96 करोड़ रुपये के निवेश से 99,018 महिलाओं को मछली पालन से जोड़कर सशक्त बनाया गया. इससे ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की आय बढ़ी और परिवारों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई.
उत्पादन में बड़ी छलांग
भारत में मछली उत्पादन नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है. 2024-25 में देश ने 195 लाख टन मछली उत्पादन किया. इस उपलब्धि के साथ भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक बन गया. इससे किसानों और मछुआरों की आमदनी में भारी बढ़ोतरी हुई.
खपत और गुणवत्ता में सुधार
पहले जहां भारत में प्रति व्यक्ति मछली खपत 5 से 6 किलो थी, वहीं फरवरी 2025 तक यह बढ़कर 12 से 13 किलो तक पहुंच गई. इसके साथ ही मछली पालन में आधुनिक तकनीक और बेहतर बुनियादी ढांचे की वजह से कटाई के बाद होने वाले नुकसान में 10 फीसदी – 15 प्रतिशत की कमी आई.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिला सहारा
पीएमएमएसवाई ने न केवल मछली पालन को आधुनिक बनाया बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती दी. इससे जुड़े लाखों परिवारों की आमदनी बढ़ी. खासकर छोटे किसानों और मछुआरों को इस योजना से सबसे ज्यादा लाभ हुआ. कम लागत में बेहतर उत्पादन और बाजार तक पहुंच ने उनकी जिंदगी आसान बना दी है.