इस रोग से बदल जाता है दुधारू पशुओं के दूध का रंग.. बरसात में बचाव करना है जरूरी, जानें उपाय

दुधारू पशुओं को थनेला रोग से बचान के लिए पशुपालक कुछ आसान से उपाय कर सकते हैं. सबसे पहले को पशुपालकों को ये सलाह दी जाती है कि अगर पशु में रोग के लक्षम दिखाई दे रहे हैं तो तुरंत पशु चिकित्सक को दिखाकर सलाह लें.

अनामिका अस्थाना
नोएडा | Published: 5 Sep, 2025 | 10:20 PM

बरसात के दिनों में पशुपालकों के सामने अपने पशुओं की सुरक्षा को लेकर कई सारी चुनौतियां खड़ी होती हैं. इन दिनों बारिश होने के कारण कीचड़ और गंदगी के कारण पशुओं में बहुत से कीड़े-मकौड़े और रोग आक्रमण कर देते हैं. ऐसे में अगर किसान समय रहते इन कीटों या रोगों की पहचान कर सही कदम नहीं उठाते हैं तो पशुओं के जीवन पर संकट मडराने लगता है. बरसात के दिनों में दुधारू पशुओं का खास खयाल रखना होता है क्योंकि न केवल पशु बल्कि पशपुालकों की आजाविका भी इससे जुड़ी होती है. इन्हीं रोगों में से एक खतरनाक रोग है थनैला रोग जो कि गंदगी और साफ-सफाई न होने के कारण दुधारू पशुओं को प्रभावित करता है. इस रोग के कारण दूध के उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है. ऐसी स्थिति में बिहार पशु निदेशालय और मत्स्य विभाग ने पशुपालकों के लिए एडवाइजरी जारी की है जिनका पालन कर पशुओं को इस रोग से बचाया जा सकता है.

इन कारणों से होता है थनैला रोग

थनैला रोग जिसे अंग्रेजी में (Mastitis) कहते हैं, पशुओं में कई कारणों से हो सकता है. इस रोग के होने का मुख्य कारण है साफ-सफाई न होना. कई बार पशुओं के आस-पास गंदगी या फिर बरसात के दिनों में कीचड़ के कारण इसका प्रकोप बढ़ जाता है. बता दें कि, गीले और गंदे वातावरण में बैक्टीरिया पनपते हैं जिसके कारण पशुओं में थनैला रोग का संक्रमण हो जाता है. इसके साथ ही अगर पशुपालक गंदे हाथों से दूध दुहते हैं या फिर गंदी बाल्टी या बर्तन का इस्तेमाल करते हैं तो भी पशुओं में इस रोग का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा अगर दूध गलत तरीके से निकाला जाए तो थन को चोट लग सकती है और संक्रमण हो सकता है.

थनैला रोग के लक्षण

बिहार पशु निदेशालय द्वारा सोशल मीडिया पर दी गई जानकारी के अनुसार, जिन पशुओं में थनैला रोग का संक्रमण होता है उनके थनों में सूजन देखने को मिलती है, साथ ही उनके दूध का रंग भी बदलने लगता है और साथ ही दूध पतला, गाढ़ा या फटा हुआ होता है. इसके अलावा प्रभावित पशुओं में इस रोग के कारण तेज बुखार आ जाता है और उनकी भूख में कमी भी आ जाती है. पशुपालक पशुओं के थनों को छूकर भी रोग का अंदाजा लगा सकते हैं. अगर पशुओं के थन फूले या सूजे हुए महसूस हों तो समझ लें कि पशु थनैला रोग से संक्रमित है.

इस तरह करें पशुओं का बचाव

दुधारू पशुओं को थनेला रोग से बचान के लिए पशुपालक कुछ आसान से उपाय कर सकते हैं. सबसे पहले को पशुपालकों को ये सलाह दी जाती है कि अगर पशु में रोग के लक्षम दिखाई दे रहे हैं तो तुरंत पशु चिकित्सक को दिखाकर सलाह लें. इसके साथ ही ये भी सलाह दी जाती है कि दुध दुहने से पहले थन को अच्छे से धोकर पोंछें. अगर पशुशाला में कई पशु बीमार है तो उसका दूख बाकी पशुओं के दूध में न मिलाएं. ऐसी ही कुछ सावधानियां बरतकर पशुपालक अपने दुधारू पशुओं को थनैला रोग के संक्रमण से बचा सकते हैं.

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Published: 5 Sep, 2025 | 10:20 PM

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