नीली रवि और मुर्रा भैंस पालन से कमाई बढ़ा सकते हैं किसान, मिलेगा 3500 लीटर दूध

ये भैंसें प्रति साल 3000-3500 लीटर दूध देती हैं. यह नस्ल रोग प्रतिरोधक, मजबूत और उच्च दूध वाली है. संतुलित आहार, वैक्सीनेशन और देखभाल से किसान अच्छी आमदनी और आर्थिक सुरक्षा हासिल कर सकते हैं.

Kisan India
नोएडा | Published: 26 Oct, 2025 | 08:36 PM

Dairy Farming : किसानों की जिंदगी सिर्फ खेत और फसल तक सीमित नहीं रह गई है. अब वे पशुपालन के जरिए भी अच्छी आमदनी कमा सकते हैं. नीली रवि और मुर्रा नस्ल की भैंसें इस काम में किसानों की सबसे बड़ी मदद बन गई हैं. यह नस्ल सिर्फ अधिक दूध देती ही नहीं, बल्कि लंबे समय तक स्वस्थ और रोगमुक्त रहती है. अगर सही देखभाल और पोषण किया जाए, तो यह भैंसें किसानों को लाखों रुपये का लाभ भी पहुंचा सकती हैं.

उच्च दूध उत्पादन वाली नस्लें

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नीली रवि और मुर्रा भैंसें खासतौर पर दूध उत्पादन  के लिए मशहूर हैं. यह नस्ल हर 12 से 15 महीने में बछड़ा देती है, जिससे दूध देने की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है. इनके दूध में फैट की मात्रा 6.5 फीसदी से 8 प्रतिशत तक होती है. इसका मतलब यह है कि बाजार में यह दूध सामान्य दूध की तुलना में अधिक कीमत पर बिकता है. किसान इस नस्ल की भैंसों को पालकर अपनी आमदनी में शानदार बढ़ोतरी कर सकते हैं.

मौसम और स्वास्थ्य में मजबूत

नीली रवि और मुर्रा भैंसें गर्मी और सर्दी, दोनों मौसम में आसानी से ढल जाती हैं. इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अच्छी होती है, जिससे बीमार पड़ने की संभावना कम होती है. यह नस्ल मजबूत शरीर वाली होती है और लंबे समय तक स्वस्थ रहती है. किसान को इन पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता और दूध उत्पादन नियमित रहता है. इस वजह से यह नस्ल छोटे और बड़े सभी किसान के लिए लाभकारी साबित होती है.

संतुलित आहार और देखभाल

भैंसों को स्वस्थ और ज्यादा दूध देने के लिए संतुलित आहार  देना बहुत जरूरी है. इन्हें हरा चारा, चोकर, दाना और मिनरल मिक्सचर समय पर देना चाहिए. गर्मियों में पर्याप्त पानी और ठंडी छांव सुनिश्चित करें, ताकि भैंसों को गर्मी से परेशानी न हो. बाड़े को हवादार और साफ-सुथरा बनाए रखना जरूरी है. नियमित स्नान और साफ-सफाई से संक्रमण का खतरा  कम होता है और भैंसें लंबे समय तक स्वस्थ रहती हैं.

वैक्सीनेशन और दूध निकालने का समय

भैंसों को समय-समय पर टीकाकरण  करना बहुत जरूरी है. यह उन्हें संक्रामक रोगों से बचाता है और दूध उत्पादन को प्रभावित नहीं होने देता. दूध निकालने  का समय निश्चित रखें, सुबह और शाम एक ही समय पर दूध निकालें. ऐसा करने से दूध की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार देखा गया है. नियमित देखभाल, सफाई और संतुलित पोषण से भैंसें लंबे समय तक स्वस्थ और अधिक दूध देने वाली रहती हैं.

आर्थिक लाभ और किसानों की आमदनी

एक स्वस्थ नीली रवि और मुर्रा भैंस सालभर में लगभग 3000 से 3500 लीटर दूध देती है. रोजाना 8-12 लीटर दूध मिलने से किसान को सालभर में 80,000 से 1 लाख रुपये तक अतिरिक्त आमदनी हो सकती है. यदि किसान 3-4 भैंसों का पालन करता है, तो सालाना तीन से चार लाख रुपये का शुद्ध लाभ आसानी से मिल सकता है. यही वजह है कि किसान इसे कुबेर का खजाना कहने लगे हैं. आज के समय में जब खेती का मुनाफा कम हो रहा है, नीली रवि और मुरहा नस्ल की भैंसें किसानों के लिए स्थायी और लाभकारी विकल्प बनकर उभरी हैं. इनके दूध का मूल्य बाजार में उच्च रहता है और डेयरी कंपनियों में भी इनकी अच्छी मांग रहती है. सरकार की पशुपालन योजनाओं का लाभ लेकर किसान इस व्यवसाय को और भी लाभकारी बना सकते हैं.

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Published: 26 Oct, 2025 | 08:36 PM

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